आधुनिक शिक्षा का विकास
ट्रेल महोदय लिखते है कि "कुमाऊँ में आम स्कूल नहीं हैं और निजी स्कूलों में केवल उच्च वर्ण के लोगों को ही शिक्षा मिलती है। पढ़ाने का कार्य ब्रह्मण करते है। उच्च शिक्षा के लिए काशी भेजे जाते है। हिन्दू शिक्षा पद्धति के अनुसार ही शिक्षा दी जाती है।" गोरखा काल में शिक्षा का ह्यस हआ फिर भी अंग्रेजी आधिपत्य के समय कुमाऊँ में 129 हिन्दी व संस्कृत की पाठशलाएँ थी। सर्वप्रथम अंग्रेजों ने एक स्कूल श्रीनगर गढ़वाल में 1840 ई0 में शुरू किया। कालान्तर में कलकत्ता शिक्षा समिति की सिफारिश पर दो और स्कूल भी खुले। 1841 ई0 में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई और कई स्कूलों की स्थापना हुई।
आधुनिक शिक्षा का विकास |
सर्वप्रथम 1871 ई0 में प० बुद्धिबल्लभ पंत शिक्षा इन्सपैक्टर बने। उनके काल में शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस काल में 2 मिडिल स्कूल 166 स्कूल खुले जिनमें छात्र संख्या 8488 थी। कुमाऊँ में आधुनिक शिक्षा की जड़ जमाने में बुद्धिबल्लभ का बड़ा योगदान है। 1844 में एक मिशन स्कूल खुला जो 1871 ई0 में रामजे कालेज बना। यही स्कूल कुमाऊँ में अंग्रेजी शिक्षा का श्रीगणेश करने वाला स्कूल है। रामजे महोदय कामचलाऊ शिक्षा दिए जाने के पक्षधर थे। 1923 ई0 के पश्चात् स्वराज दल के सदस्य शिक्षा बोर्ड में शामिल हुए। अब शिक्षा के प्रसार में तेजी आई। चूंकि नैनीताल का जिले के रूप में गठन 1841 ई0 हुआ। इसके पश्चात् ही यहाँ शिक्षा का विकास संभव हो पाया।
संक्षेप में, उत्तराखण्ड में आधुनिक प्रशासनिक, न्यायिक, राजस्व एवं शिक्षा व्यवस्था का विकास अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ ही हुआ। इस प्रकिया से धीरे-धीरे इस क्षेत्र की जनता में जागरूकता आई और प्राशसनिक कुप्रबन्ध, जंगलात कानून, बुरी व्यवस्थाओं के विरूद्ध जनता ने आवाज उठानी शुरू की। राजनीतिक संस्थाओं का विकास हुआ। राष्ट्रीय आन्दोलन में भागीदारी प्रारम्भ हुई। काग्रेंस की स्थापना इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास था। वर्तमान उत्तराखण् राज्य में अधिकांश व्यवस्थाओं का श्रीगणेश इसी काल में हुआ।
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