भगवान शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र का इकलौता मंदिर.. जहाँ शिव को समर्पित की थी अपनी हड्डियां..

भगवान शिव जी के ज्येष्ठ पुत्र का इकलौता मंदिर.. जहाँ शिव को समर्पित की थी अपनी हड्डियां..

देवभूमि उत्तराखंड धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में सबसे खास माना जाता है। विश्व भर के पर्यटकों का यहां आने का एक उद्देश्य आत्मिक व मानसिक शांति भी होता है। हरी-भरी वनस्पतियों से भरे पहाड़, घाटियां, हिमालय की बर्फीली चोटियां, नदी-झरने इस स्थल को एक अद्भुत रूप प्रदान करते हैं। कार्तिक स्वामी, रुद्रप्रयाग जिले के पवित्र पर्यटक स्थलों में से एक है। रुद्रप्रयाग शहर से 38 किमी की दूरी पर स्थित इस जगह पर भगवान शिव के पुत्र, भगवान कार्तिकेय, को समर्पित एक मंदिर है। समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। रुद्रप्रयाग – पोखरी मार्ग पर स्थित इस मंदिर तक कनक चौरी गांव से 3 किमी की ट्रेकिंग के द्वारा पहुंचा जा सकता है।


The only temple of the eldest son of Lord Shiva.. where he had dedicated his bones to Shiva..

भगवान कार्तिक की पूजा उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी की जाती है, जहां उन्हें कार्तिक मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां की शाम की आरती या संध्या आरती बेहद खास होती है, इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है। बीच-बीच में यहां महा भंडारा भी आयोजित किया जाता है, जो पर्यटकों और श्रद्दालुओं को काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है।
इस मंदिर से एक महत्वपूर्ण पौराणिक घटना भी जुड़ी है, माना जाता है कि कार्तिक ने इस जगह अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित की थी। किवदंती के अनुसार एक दिन भगवान शिव ने अपने दो पुत्र गणेश और कार्तिक से कहा कि तुम में से जो ब्रम्हांड के सात चक्कर पहले लगाकर आएगा उसकी पूजा सभी देवी-देवताओं से पहले की जाएगी। कहे अनुसार कार्तिक ब्रम्हांड के साच चक्कर लगाने के लिए निकल गए, लेकिन दूसरी ओर गणेश ने भगवान शिव और माता पार्वती के चक्कर लगा लिए और कहा कि मेरे लिए तो आप दोनो ही संपूर्ण ब्रम्हांड हो। भगवान शिव बाल गणेश से काफी खुश हुए और उन्हे सौभाग्य प्रदान करा कि आज से तुम्हारी पूजा सबसे पहले की जाएगी। लेकिन जब कार्तिक ब्रम्हांड का चक्कर लगाकर आए और उन्हें जब सब बातों का पता चला तो उन्होंने अपना शहीर त्याग दिया और अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित कर दीं।

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