गोपाल बाबू गोस्वामी उत्तराखण्ड राज्य के एक सुविख्यात व लोकप्रिय कुमाऊँनी लोकगायक थे।

 Uttarakhand Hero गोपाल बाबू गोस्वामी

गोपाल बाबू गोस्वामी (1941 - 1996) उत्तराखण्ड राज्य के एक सुविख्यात व लोकप्रिय कुमाऊँनी लोकगायक थे।

गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म संयुक्त प्रांत के अल्मोड़ा जनपद के पाली पछांऊॅं क्षेत्र में मल्ला गेवाड़ के चौखुटिया तहसील स्थित चांदीखेत नामक गॉंंव में 2 फरवरी 1941 को मोहन गिरी एवम् चनुली देवी के घर हुआ था। गोपाल बाबु ने प्राइमरी शिक्षा चौखुटिया के सरकारी स्कूल से प्राप्त की। 5वीं पास करने के बाद मिडिल स्कूल में उन्होंने नाम तो लिखवाया, परन्तु 8वीं उत्तीर्ण करने से पूर्व ही उनके पिता का देहावसान हो गया। इसके बाद गोस्वामी जी नौकरी करने पहाड़ के बेरोजगार युवाओं की परम्परानुसार दिल्ली चले गये। वहां वह कई वर्षों तक नौकरी की तलाश में रहे, पहले एक प्राइवेट नौकरी की, कुछ वर्ष डी. जी. आर. में आकस्मिक कर्मचारी के रूप में कार्यरत भी रहे परन्तु स्थाई नहीं हो सके। इस दौरान वे दिल्ली, पंजाब तथा हिमांचल में रहे। पक्की नौकरी न मिल सकने के कारण बाद में उन्हें गाँव वापस आना पड़ा, जहां वह खेती के कार्यों में लग गये।

Uttarakhand Hero गोपाल बाबू गोस्वामी


1970 में उत्तर प्रदेश राज्य के गीत और नाटक प्रभाग का एक दल किसी कार्यक्रम के लिये चौखुटिया आया था, जहाँँ उनका परिचय गोपाल बाबू गोस्वामीजी से हुआ। तत्पश्चात् नाटक प्रभाग से आये हुए एक व्यक्ति ने उन्हें नैनीताल केन्द्र का पता दिया और नाटक प्रभाग में भर्ती होने का आग्रह किया। 1971 में उन्हें गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति मिल गई।

प्रभाग के मंच पर कुमाऊँनी गीत गाने से उन्हें दिन-प्रतिदिन सफलता मिलती रही और धीरे धीरे वे चर्चित होने लगे। इसी दौरान उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ में अपनी स्वर परीक्षा करा ली। वे आकाशवाणी के गायक भी हो गये। लखनऊ में ही उन्होंने अपना पहला गीत "कैले बजैइ मुरूली ओ बैणा" गया था। आकाशवाणी नजीबाबाद व अल्मोड़ा से प्रसारित होने पर उनके इस गीत के लोकप्रियता बढ़ने लगी। 1976 में उनका पहला कैसेट एच. एम. वी ने बनाया था। उनके कुमाऊँनी गीतों के कैसेट काफी प्रचलित हुए। पौलिडोर कैसेट कंपनी के साथ उनके गीतों का एक लम्बा दौर चला। उनके मुख्य कुमाऊँनी गीतों के कैसेटों में थे - "हिमाला को ऊँचो डाना प्यारो मेरो गाँव", "छोड़ दे मेरो हाथा में ब्रह्मचारी छों", "भुर भुरु उज्याव हैगो", "यो पेटा खातिर", "घुगुती न बासा", "आंखी तेरी काई-काई", तथा "जा चेली जा स्वरास"। उन्होंने कुछ युगल कुमाऊँनी गीतों के कैसेट भी बनवाए। गीत और नाटक प्रभाग की गायिका श्रीमती चंद्रा बिष्ट के साथ उन्होंने लगभग 15 कैसेट बनवाए।

हालांकि नाटक प्रभाग में नियुक्ति से पहले भी गोपाल बाबू छोटे-मोटे कार्यक्रमों में कुमाऊँनी गीत गाते थे, परन्तु वह चर्चित गायकों में से नहीं थे। गोस्वामी जी के मधुर कंठ को लोगों ने भी बहुत पसंद किया था। उनमें यह विशेषता भी थी की वे उच्च पिच के गीतों को भी बड़े सहज ढंग से गाते थे। उनके गाये अधिकांश कुमाऊँनी गाने स्वरचित थे। प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगाथाओं, जैसे मालूशाही तथा हरूहीत के भी उन्होंने कैसेट बनवाए थे।

Uttarakhand Hero गोपाल बाबू गोस्वामी

गोस्वामी जी ने कुछ कुमाऊँनी तथा हिंदी पुस्तकें भी लिखी थी। जिसमें से "गीत माला (कुमाऊँनी)" "दर्पण" "राष्ट्रज्योति (हिंदी)" तथा "उत्तराखण्ड" आदि प्रमुख थी। एक पुस्तक "उज्याव" प्रकाशित नहीं हो पाई। 55 बर्ष की आयु में उन्होंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे। 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया था। उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में आपरेशन भी करवाया। परन्तु वे स्वस्थ नहीं हो सके। 26 नवम्बर 1996 को उनका असामयिक निधन हो गया।

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