उत्तराखंड का रघुनाथ मंदिर रावण वध के बाद जहां भगवान राम ने तप किया

उत्तराखंड का रघुनाथ मंदिर रावण वध के बाद जहां भगवान राम ने तप किया 

राजनीतिक सत्ता और उसके संघर्ष ने भारत की सीमाओं को हमेशा अदला -बदला, लेकिन धार्मिक परंपराओं से भारत के एक राष्ट्र के रूप में विकास में आदि गुरु शंकराचार्य का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. Raghunath Mandir Uttarakhand
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उन्होंने नवीं शताब्दी के प्रारंभ में देश के चार दिशाओं में चार धाम उत्तर में केदारनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में श्रृंगेरी मठ की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने कर, भौगोलिक सीमाओं को काफी हद तक सुनिश्चित करने के साथ ही, देशवासियों से इन चारों धामों का तीर्थाटन करने का आवाह्न किया जिससे राष्ट्रीय एकता को बल मिला.
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आदि गुरु शंकराचार्य ने इन चार धामों के अतिरिक्त 108 विश्वमूर्ति यानि ऐसे विराट मंदिरों की स्थापना की जिनके मंदिर के रूप में भगवान द्वारा स्वयं स्थापित होने की मान्यता है. उत्तराखंड में ऐसे 3 मंदिर हैं रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग, नरसिंह मंदिर जोशीमठ और भगवान श्री बद्रीनाथ इन स्थानों पर भगवान ने स्वयं प्रकट होकर स्थान को सिद्ध किया, इन 108 मंदिरों में एक मंदिर भारत के बाहर नेपाल में मुक्तिनाथ का मंदिर है. जिसकी झील से शालिग्राम भगवान की पिंडिया निकलती है.
देवप्रयाग जहां भागीरथी और अलकनंदा नदी मिलकर गंगा नाम धारण करती हैं. इस संगम तट पर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान लंबा प्रवास किया और इस स्थान पर पूर्व से भगवान श्री रघुनाथ जोकि रावण वध के बाद रावण के एक ब्राह्मण होने के कारण ब्राह्मण हत्या के अभिशाप से ग्रस्त थे. उसकी मुक्ति के लिए इस स्थान पर भगवान श्री रामचंद्र जी ने कठोर तप किया, यहां भगवान की मूर्ति अकेले ही है यहां न सीता माता है न हनुमान है. Raghunath Mandir Uttarakhand
हनुमान जैसे सच्चे सेवक कहां साथ छोड़ते हैं. वह प्रभु की इच्छा के बगैर यहां देवप्रयाग भी पहुंचे और जिस स्थान पर भगवान राम तपस्या में लीन थे उसके ठीक पीछे छिप कर बैठ गए इसीलिए रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग के ठीक पीछे हनुमान जी का मंदिर भी है.

द्रविड शैली में बना रघुनाथ मंदिर, देवप्रयाग में 11 वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही यहां विशिष्टा द्वैतवाद के जनक रामानुजाचार्य जी जिनकी भक्ति परंपरा में रामानंद और कबीर दास जैसे संत हुए,ने भी कुछ समय यहां रुक कर तपस्या की और भगवान श्री रघुनाथ जी, देवप्रयाग, संगम तथा देवभूमि उत्तराखंड के आध्यात्मिक महत्व का वर्णन करते हुए 11 पदों की रचना की. सभी पद तमिल भाषा में रघुनाथ मंदिर की दीवारों पर शिला-पट के रूप में आज भी चस्पा हैं. भविष्य में पदों का अनुवाद प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा.

देवप्रयाग एक छोटा मगर रमणीक और ऐतिहासिक कस्बा है. यहां के अधिकांश ब्राह्मण शंकराचार्य जी के साथ केरल से यहां बद्रीनाथ बद्रीनाथ की पूजा के प्रयोजन से यहां आए. जो शीतकाल में देवप्रयाग तथा ग्रीष्म में बद्रिकाश्रम में प्रवास करते हैं. Raghunath Mandir Uttarakhand

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