कास्मोपोलिटिन (साप्ता), निर्बल सेवक (साप्ता),विशाल कीर्ति,शक्ति (साप्ताहिक),

कास्मोपोलिटिन (साप्ता), निर्बल सेवक (साप्ता),विशाल कीर्ति,शक्ति (साप्ताहिक)

  • कास्मोपोलिटिन (साप्ता), 1910


देहरादून में कांग्रेस के सूत्रधार रहे बैरिस्टर बुलाकी राम ने सन् 1910 में यहाँ कचहरी रोड़ पर भास्कर नामक प्रेस खोली। यहीं से बैरिस्टर साहब ने कास्मोफेलिटिन नाम से एक अंग्रेजी सप्ताहिक का मुद्रण किया। यह देहरादून से प्रकाशित होने वाला पहला आंग्ल भाषी साप्ताहिक समाचार पत्र था। बुलाकी राम स्वाधीनता के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने अपने इस समाचार पत्र के माध्यम से राष्ट्रीय विचारों की आग में घी डालने का कार्य करते हुए ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों की घोर आलोचना की। फलतः आपके इस समाचार-पत्र को एक-दो बार अंग्रेजी सरकार के कोप का भाजन बनना पड़ा। परन्तु बुलाकी राम ने हार नहीं मानी। सन् 1920-22 तक यह समाचार पत्र नियमित-अनियमित रूप से चलता रहा। इस बीच सन् 1913 में 'कुमाऊँ केसरी' बद्रीदत्त पाण्डेय ने भी इस समाचार पत्र के सम्पादकीय में काम किया। सन् 1923 में बैरिस्टर साहब अपने पैतृक निवास पंजाब (पाकिस्तान) लौट गये।

  • निर्बल सेवक (साप्ता), 1913


वृन्दावन रियासत के तात्कालिक राजा महेन्द्र प्रताप ने सन् 1913 में देहरादून से 'निर्बल सेवक' नाम के साप्ताहिक समाचार पत्र का सम्पादन व प्रकाशन प्रारम्भ किया। राजा साहब प्रारम्भ से ही उग्र क्रान्तिकारी विचारों के थे। अतः उनके अखबार 'निर्बल सेवक' में भी उग्र क्रान्तिकारी विचारों वाले लेख व सम्पादकीय होते थे। उन दिनों हवाई डाक सेवा न होने के कारण इस समाचार पत्र की कुछ प्रतियाँ समुद्र पार, जहाज से अप्रवासी भारतीय क्रान्तिकारियों को भी भेजी जाती थी। आदर से लोग राजा साहब को 'फकीर' कहकर बुलाते थे।

विशाल कीर्ति, 1913

पौड़ी गढ़वाल से सबसे पहले प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में विशाल कीर्ति का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। पौडी में ब्रहमानन्द थपलियाल की बदरी-केदार प्रेस से फरवरी 1913 में विशाल कीर्ति का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इसके सम्पादक सदानन्द कुकरेती थे। पुस्तक के आकार वाला यह पत्र मासिक छपता था जिसमें गढ़वाली साहित्य के अतिरिक्त राजनीतिक व्यंग्य प्रमुखता से छपते थे। फरवरी 1913 से दिसम्बर 1915 तक नियमित अंक छपने के बाद आर्थिक अभाव के कारण यह बंद हो गया।
गढ़वाल समाचार, 1902 ई0-बीसवीं सदी के प्राराम्भिक दौर में जब उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में पत्रकारिता के विषय में लोगों को ना के समान जानकारी थी तब गिरिजादत्त नैथाणी ने 1902 में लैन्सडौन से 'गढ़वाल समाचार' नाम से एक मासिक का प्रकाशन प्रारम्भ कर गढ़वाल को पत्रकारिता की ताकत से परिचित कराया। इसीलिए उन्हें गढ़वाल में पत्रकारिता का जनक कहा जाता है।


यह समाचार-पत्र फुलस्कैप साइज में 16 पृष्ठों का होता था। प्रारम्भ में इसे मुरादाबाद से मुद्रित किया जाता था। जनसामान्य की सुविधा को देखते हुए बाद में वे कोटद्वार आ गये तथा अक्टूबर 1902 में 'गढ़वाल समाचार' का छठा अंक यही से प्रकाशित हुआ परन्तु आर्थिक अभाव के कारण यह पत्र दो वर्ष भी न चल सका। गिरिजादत्त नैथाणी को पत्रकारिता से अत्यधिक लगाव होने के कारण वे अधिक दिन इससे दूर न रह सके तथा सन् 1912 में उन्होंने दुगड़डा में एक प्रेस की स्थापना की और फरवरी 1913 में इसी प्रेस से 'गढ़वाल समाचार' का पुनः प्रकाशन प्रारम्भ किया। अपने जीवन काल की दूसरी पाली में भी गढ़वाल समाचार अधिक लम्बा सफर तय नहीं कर सका। दिसम्बर 1914 तक यह नियमित रूप से चलता रहा। वे स्वाधीनता के परमसमर्थक थे, साथ ही वे तत्कालिक सामाजिक समस्याओं से भी भलीभाँति अवगत थे। उन्होंने अपने तीखे, साहसी व निष्पक्ष लेखन से अंग्रेजी प्रशासन के अत्याचारों का विरोध करने के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं पर भी गढ़वाली समाचार के माध्यम से प्रकाश डाला।

शक्ति (साप्ताहिक), 1918 ई0

प्रथम चरण के प्रमुख समाचार पत्र 'अल्मोड़ा अखबार' के बन्द होने पर इसके द्वारा अधूरे छोड़े गये कार्यों को पूर्ण करने के उद्देश्य से सन् 1918 में देशभक्त प्रेस की स्थापना हुई तथा 18 अक्टूबर 1918 को विजयदशमी के अवसर पर बद्रीदत्त पाण्डे के सम्पादन में 'शक्ति' का पहला अंक प्रकाशित हुआ। 'शक्ति' ने 'अल्मोड़ा अखबार' के उद्देश्य को पूर्ण करने साथ ही राष्ट्रीय नेतृत्व व सामान्य जन के मध्य एक सेतु की भूमिका को बखूबी निभाया। स्वतंत्रता आन्दोलन के अन्तिम चरण के साक्षी रहे इस समाचार पत्र ने न केवल असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन जैसे- राष्ट्रीय स्तर के बड़े संघर्षो को ही महत्ता नहीं दी वरन् इसने क्षेत्रीय समस्याओं को भी प्रमुखता से उजागार करने के साथ ही इन समस्याओं के समाधान हेतु चलाये जाने वाले क्षेत्रीय आन्दोलनों का भी पुरजोर समर्थन किया। सन् 1942-45 के मध्य शक्ति का प्रकाशन बन्द रहा। 1946 में इसका प्रकाशन पुनः प्रारम्भ हुआ। 'शक्ति' में गौर्दा, श्यामचरण पंत, रामलाल वर्मा के अतिरिक्त सुमित्रा नन्दन पंत, हेमचन्द्र जोशी तथा इलाचन्द्र जोशी जैसे तात्कालिक जागरूक कवियों की कविताएं भी छपती थी जो सदैव ही समाज के लिए एक प्रेरक का कार्य करती थी। इसके अतिरिक्त कुली बेगार प्रथा, उत्तराखण्ड के लोगो को वन सम्बन्धी अधिकार दिलाने, उत्तराखण्डी एकता को सुदृढ आधार प्रदान करने के साथ ही सल्ट, सालम, टिहरी तथा रवाई आन्दोलनों में भी इसने पथप्रदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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