बांज चढ़ता है शिवज्यू को ज्यों तुलसी चढ़ती है विष्नु को

 बांज

बांज का जंगल होता है

बांज हर घर क्यूं नहीं होता?

बांज चढ़ता है शिवज्यू को  ज्यों तुलसी चढ़ती है विष्नु को

बांज चढ़ता है शिवज्यू को

ज्यों तुलसी चढ़ती है विष्नु को

तो वो तुलसी की तरह 

हर आंगन क्यूं नहीं होता?


बांज उगाता है सेब को

और सेब बगीचे लगते ही

क्यूं हो नहीं पाता बांज?


ऊंचे पहाड़ 

जहां और कोई पेड़ नहीं होता

वहां‌ हो उठता 

हरा भरा घना बांज 

और बसाता है 

वहां का जन जीवन


मगर हर बार पहाड़ जाते

मैं पाता हूं 

पहाड़ बसाता बांज

हो चुका है

थोडा और बांझ।

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