मुजफ्फरनगर कांड की प्रतिक्रिया

मुजफ्फरनगर कांड की प्रतिक्रिया

रामपुर तिराहे पर हुई बर्बरता एवं दुर्व्यवहार की खबर आग की तरह पूरे पहाड़ में फैल गई। अंधाधुंध फायरिंग एवं महिलाओं से व्यभिचार की घटना के विरोध में 3 अक्तूबर, 1994 से हिंसा का ताड़व शुरू हो गया। बेगुनाहों की मौत एवं महिलाओं के सम्मान से खिलवाड़ करने वाली सरकार के खिलाफ पहाड़ की जनता ने जिस तरह अपने गुस्से का इजहार किया उस प्रकार के बगावती तेवर पृथक राज्य निर्माण आंदोलन में पहले कभी देखने को नहीं मिला।

मुजफ्फरनगर कांड की प्रतिक्रिया उतराखंड  मुजफ्फरनगर कांड की प्रतिक्रिया

सम्पूर्ण पहाड़ में स्कूल, कॉलेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं सरकारी कार्यालय बंद हो गए। बच्चे, बूढे एवं जवान, स्त्री-पुरूष सभी सड़कों पर उतर आए। जनता ने प्रशासन के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करते हुए बड़ी संख्या में सरकारी वाहन एवं भवनों को क्षतिग्रस्त किया। उत्तरकाशी में जिलाधिकारी कार्यालय में तोड़-फोड़ हुई। देहरादून में तीन पुलिस चौकियों सहित 14 सरकारी कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया गया। अभूतपूर्व हिसां के कारण देहरादून, ऋषिकेश, पौड़ी, श्रीनगर व कोटद्वार में कर्फ्यू लगा दिया गया। उत्तराखण्ड के दर्जनों शहर उग्र प्रदर्शन एवं पुलिस फायरिंग के धमाकों से गूंजने लगी। सम्पूर्ण उत्तराखण्ड युद्ध-भूमि में बदल गया।

रामपुर तिराहा कांड में शहीद रविन्द्र रावत की शवयात्रा पर पुलिस लाठीचार्ज से देहरादून शहर की स्थिति और भी खराब हो गई। टिहरी जिले के प्रमुख नगरों में पुलिस बलों पर पथराव किया गया। जनता एवं प्रशासन के मध्य गुरिल्ला युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। यहीं आगराखाल में जनता के भय से पुलिसकर्मी चौकी छोड़कर ही भाग गए। पौड़ी जनपद भी अभूतपूर्व हिंसा की चपेट में रहा। अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, हल्द्वानी, रामनगर, रानीखेत में भी कमोवेश यही स्थिति थी। हरिद्वार में उग्रभीड़ ने सपा नेता अम्बरीश के कपड़े तक फाड़ डाले एवं उन्हें बचाने आए नगर अध्यक्ष का सिर फोड़ दिया गया। रुड़की में अस्पताल की इमरजेंसी में भर्ती एक घायल फौजी ने परगनाधिकारी को अपनी बेल्ट से पीटकर लहुलुहान कर दिया। पुलिस के खिलाफ जनता का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था। गोपेश्वर, ऊखीमठ व कर्णप्रयाग में भी कर्फ्यू लगाना पड़ा। नौगाँव में क्रोधित भीड़ ने पुलिस की राइफलें जला दी। डुण्डा पुलिस चौकी व धरासु थानों को भी आग के हवाले कर दिय गया। कर्णप्रयाग का पुलिस क्लब जला दिया गया। पीपलकोटी के पुलिस जवानो को जानबचाने के लिए जंगलो की शरण लेनी पड़ी, रामनगर में युवकों ने रोडवेज की बसों एवं लोक निर्माण विभाग कार्यालय में भी आग लगा दी। नैनीताल में कई सरकारी वाहनों, दफ्तरों एवं पुलिस चौकी में आग लगाई गई। हल्द्वानी, टनकपुर में व्यापक उग्र प्रदर्शन हुआ।

पी.ए.सी, सी.आर.पी.एफ और रेपिड एक्शनफोर्स की तैनाती के बाद भी हिंसा का तांडव नहीं रूका। पहाड़ के छोटे-छोटे क्षेत्रों में भी हिंसा-आगजनी की घटनाएं घटी। अधिकांश स्थल तो ऐसे थे जहाँ शायद पहली बार कर्फ्यू लगा। सप्ताह भर चले इस ताण्डव को रोकने एवं गृहयुद्ध जैसी स्थिति से बचने में प्रशासन को भारी मशक्कत करनी पड़ी।

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