खट्ठा-मीठा मनभावन फल काफल

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आप गर्मियों में उत्तराखंड आए और काफल यानी मिरिका एस्कुलेंटा का स्वाद नहीं लिया तो समझिए यात्रा अधूरी रह गई। समुद्रतल से 1300 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के जंगलों में अपने आप उगने वाला काफल एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण हमारे शरीर के लिए बेहद लाभकारी है। इसका छोटा-सा गुठलीयुक्त बेरी जैसा फल गुच्छों में आता है और पकने पर बेहद लाल हो जाता है।

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तभी इसे खाया जाता है। इसका खट्ठा-मीठा स्वाद मनभावन और उदर-विकारों में अत्यंत लाभकारी होता है। काफल अनेक औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी छाल का उपयोग जहां चर्मशोधन (टैनिंग) में किया जाता है, वहीं इसे भूख और मधुमेह की अचूक दवा भी माना गया है। फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होने के कारण कैंसर व स्ट्रोक के होने की आशंका भी कम हो जाती है। काफल ज्यादा देर तक नहीं रखा जा सकता। यही वजह है उत्तराखंड के अन्य फल जहां आसानी से दूसरे राज्यों में भेजे जाते हैं, वहीं काफल खाने के लिए लोगों को देवभूमि ही आना पड़ता है। काफल के पेड़ काफी बड़े और ठंडे छायादार स्थानों में होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मजबूत अर्थतंत्र दे सकने की क्षमता रखने वाले काफल को आयुर्वेद में 'कायफल नाम से जाना जाता है। इसकी छाल में मायरीसीटीन, माइरीसीट्रिन व ग्लाइकोसाइड पाया जाता है। इसके फलों में पाए जाने वाले फाइटोकेमिकल पॉलीफेनोल सूजन कम करने सहित जीवाणु एवं विषाणुरोधी प्रभाव के लिए जाने जाते हैं।

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