उस पहाड़ की चोटी पर बैठ कर सोच रहा था कि मेरा गांव कितना अच्छा है॥
कितनी सुंदर नदियाँ हैं कितना सुंदर जंगल है॥ गांव की ठंडी हवाओं में जो मजा है॥ दिल्ली मुम्बई ए सी में बैठने में लगता है जैसे कोई सज़ा है॥ वो दिल्ली मे बुराडी से अच्छा पौड़ी है॥ खोड़ा से अच्छा अल्मोड़ा है॥
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यहाँ तो रात को भी नहीं दिखता मून है॥
कितना सुंदर अपना देहरादून है॥
तारों की बारात लेकर रोज चांद आता है॥
पिथौरागढ़ से बागेश्वर सारा पहाड़ जगमगाता है॥
ठंडी ठंडी हवाओं में दिल शराबी हो जाता है॥
चंपावत मे चंद राजाओं का महल जब दिख जाता है॥
बडी शीतल धारा जब गंगा मां कि बहती है॥
उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग में जब मेले लगते हैं॥
गंगा यमुना कि संस्कृति के गीत झुमेले लगते हैं॥
टिहरी की अपनी एक कहानी है॥
पूरे पहाड़ को वहीं से बिजली और पानी है॥
उधम सिंह नगर में जो चीनी के कारखाने हैं॥
हम पहाड़ी गुड़ और चाहा के दीवाने हैं॥
चमोली के पर्वतों में एक अलग ज़िंदगानी है॥
हेमकुंड से बद्रीनाथ तक ज़िंदगी बर्फानी है॥
नैनिताल की सात झीलों में जितना भी पानी है॥
उत्तराखंड में उससे ज्यादा भाषा और वाणी हैं॥
बहुत याद आता है गाँव अपना, फिर जाने का मन है॥
अभी यहीं खत्म करता हूँ, ये पहाड़ियों का मन है॥
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