कविता कोश " पलायन करते हुए पंछियों को"

कविता कोश " पलायन करते हुए पंछियों को"


 पलायन करते हुए पंछियों को
देखती हूँ

एक अदभुत सी संतुष्टि पाती हूँ उनमें,
अपने नीड़ में जाने की  आतुरता लिए
उन्मुक्त से 

हर एक दिन एक नए संघर्षो को पार 
करते हुए,

एक नई विजय का गर्व लिए,
अपने सीमित पंखो में विस्तृत 
साम्रराज्य को समेट लेने की चमक
 अनुभव करती हूँ

उनकी उड़ान में,
सत्य है मैं पंछी बन जाना चाहती हूँ,
एक स्वच्छंद उड़ान का स्वप्न 
और नीले नभ का मौन आमंत्रण 
लालसा जागता है,

सीखा जाता है एक नए संघर्ष से जूझने का
हुनर,

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