आज फिर एक कविता के साथ *घर कुड़ी पीछाड़ी कुरि कटारि*

 आज फिर एक कविता के साथ *घर कुड़ी पीछाड़ी कुरि कटारि* 

*घर कुड़ी पीछाड़ी कुरि कटारि*

कुड़ी पीछाड़ी, बाड़-ख्वड़ हैं छि

उनु मजि हंछि ,साग हरि

कोई उन्यूमें प्यांज लगा छि

कोई उगेछि उन्यूमें गडेरि

पै कसि हौला साग हरि?

को उगाल उन्यूमें गडेरि?

गौं बाखेइ ,बांजि पड़ी ग्ये

घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।

उत्तराखंड पलायन कि फोटो

एक हौवका बल्द हछि

कतु ते मंडु ,कतु झुवंर हछि

धान भकार भरिए रछि

भरिये र छि ग्यों ढूकैरि

जंगल जानर हांग घुसी री

कसि करूं हो खेति खन्यारि

गौं बाखेइ, बांजि पड़ी ग्ये

घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।


को भुलौ,उं पांड़ी नोहौ 

पांड़ी गेलन,पांड़ी गागेरि

बकरां पोथिलु हुं, हैं छि छापेरी 

सुक गि नोहौ ,ना बचि गागेरी

 को बताओ ,बुंड़ोल छापरी

गौं बाखेइ, बांजि पड़ी ग्ये

घर कुड़ी पीछाड़ी ,कुरि कटारि ।।


त्योहारूं दिना, झर फर हैं छि

चैत महैन ,फुल खेलछि

जै घर मजिक भौ हैराया

उ भौ नामेकि ,घुमछि टोपेरी 

घा काटनि ,हछि घास्यारी

खों बनाड़ी, नाम रस्यारी 

आम गुठेइ,बनछि पिपिरि

गौं बाखेइ ,बांजि पड़ी ग्ये

घर कुड़ी पीछाड़ी, कुरि कटारि ।।              

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