बदलता हुआ जमाना एक पहाड़ी की Changing age of a hill

बदलता हुआ जमाना एक पहाड़ी की

पहाड़ी कविता 

किले कून्छा कस वकत एगो 

पेली जे के  न रेगो

पेली छिलुक जल्युछी 

मिट्टी का तेल लिजी परेशान हुन्छी 

अब गों पन ले, बिजुली को बल्व एगो 

किले कून्छा कस वकत एगो 

भूल जाओ पुराण  दिन के हुन्छि   

आजा सेणी द्वी काम करनी 

पहाडा  चेली ब्यारी द्वि काम करनी 

 घरो काम साथ  डबल ल कमुनी 

पेलीया सेणी लाकड़  गढ़र बोक बेर ल्युन्छी 

घुऐ ले आँख खराब है  जान्छी 

आज घर घर गेसो  चूल्ह एगो 

किले कून्छा कस वकत एगो 

पेली सेरिण कन  चाक पिसन पडछि 

उखल कुटीबे घरो को  भात पकूंछी 

अब घरो काम आध  रेगो 

किली कून्छा कस वकत एगो 

पहाड़ा का नानतिन  कम्प्यूटर  चलुनी

पढ़े में ले अव्वल रूनी 

भेर भितेरो काम भलिके जाणनी

शहर गों में कोई अंतर नी रेगो 

किले कून्छा कस वक्त एगो 

नानतिन  काम में व्यस्त रूनी 

टीवी देख बेर बुड बुडी वकत काटणी 

आज   बीमारी इलाज आसान हेग्यो 

किले कून्छा कस वक्त एगो 

Post हम पहाड से हैं

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