बजरंग बाण चालीसा / Bajrang Baan Chalisa

 बजरंग बाण चालीसा

बजरंग बाण चालीसा को पढ़ने की विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: बजरंग बाण चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. हनुमान जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: हनुमान जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. बजरंग बाण चालीसा का पाठ: बजरंग बाण चालीसा का पाठ करें भक्तिभाव से।
  6. मन्त्रों का जप: हनुमान जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ हं हनुमते नमः" या अन्य हनुमान मंत्र।
  7. आरती और भजन: हनुमान जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  8. आरती और प्रशाद: हनुमान जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए।

यह विधि आपकी आदतों, परंपराओं, और स्थानीय संस्कृति के अनुसार समायोजित की जा सकती है।

॥ दोहा ॥

निश्चय प्रेम प्रतीति तेविनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभसिद्ध करें हनुमान ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान सन्त हितकारीसुन लीजै प्रभु अरज हमारी।
जन के काज विलम्ब न कीजेआतुर दौरि महासुख दीजे । 
जैसे कूदि सिन्धु महि पारासुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाई लंकिनी रोकामारेहु लात गई सुर लोका ।
जाय विभीषण को सुख दीन्हासीता निरखि परमपद लीन्हा ।
बाग उजारि सिंधु मँह बोराअति आतुर यम कातर तोरा ।
अक्षय कुमार को मार संहारालूम लपेट लंक को जारा ।
लाह समान लंक जरि गईजय जय ध्वनि सुरपुर में भई ।
अब विलम्ब केहि कारन स्वामीकृपा करहु उर अन्तर्यामी ।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाताआतुर होय दुःख हरहु निपाता।
जय गिरधर जय जय सुखसागरसुर समूह समरथ भटनागर ।
श्री हनु हनु हनु हनुमंत हठीलेबैरिहिं मारु वज्र को कीले ।
गदा वज्र लै बैरिहिं मारोमहाराज प्रभु दास उबारो ।
ओंकार हुँकार प्रभु धावोबज्र गदा हनु विलम्ब न लावो । 
जैसे कूदि सिन्धु महि पारासुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाई लंकिनी रोकामारेहु लात गई सुर लोका ।
जाय विभीषण को सुख दीन्हासीता निरखि परमपद लीन्हा ।
बाग उजारि सिंधु मँह बोराअति आतुर यम कातर तोरा ।
अक्षय कुमार को मार संहारालूम लपेट लंक को जारा।
लाह समान लंक जरि गईजय जय ध्वनि सुरपुर में भई ।
अब विलम्ब केहि कारन स्वामीकृपा करहु उर अन्तर्यामी ।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाताआतुर होय दुःख हरहु निपाता 
जय गिरधर जय जय सुखसागरसुर समूह समरथ भटनागर ।
श्री हनु हनु हनु हनुमंत हठीलेबैरिहिं मारु वज्र को कीले ।
गदा वज्र लै बैरिहिं मारोमहाराज प्रभु दास उबारो । 
ओंकार हुँकार प्रभु धावोबज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।
ओं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमान कपीशाओं हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।
सत्य होहु हरि शपथ पाय केरामदूत धरु मारु धाय के ।
जय जय जय हनुमन्त अगाधादुःख पावत जन केहि अपराधा ।
पूजा जप तप नेम अचारानहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।
वन उपवन मगगिरी गृह माँहीतुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।
पाँय परौ कर जोरि मनावौंयहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
जय अन्जनि कुमार बलवन्ताशंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।
बदन कराल काल कुल घालकराम सहाय सदा प्रतिपालक ।
भूत प्रेत पिशाच निशाचरअग्नि बैताल काल मारी मर ।
इन्हें मारु तोहि शपथ राम कीराखु नाथ मर्यादा नाम की 
जनक सुता हरिदास कहावोताकी शपथ विलम्ब न लावो ।
जय जय जय धुनि होत अकाशासुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।  
चरण शरण कर जोरि मनावौंयहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।
उठु उठु चलू तोहि राम दुहाईपाँय परौं कर जोरि मनाई ।
ओं चं चं चं चं चपल चलंताओं हनु हुन हुन हनु हनुमन्ता ।
ओं हं हं हाँक देत कपि चंचलओं सं सं सहमि पराने खल दल ।
अपने जन को तुरत उबारोसुमिरत होय आनन्द हमारो ।
यह बजरङ्ग बाण जेहि मारेताहि कहो फिर कौन उबारे ।
पाठ करे बजरङ्ग बाण कीहनुमत रक्षा करें प्राण की 
यह बजरङ्ग बाण जो जापैताते भूत प्रेत सब काँपै ।
धूप देय अरु जपैं हमेशाताके तन नहिं रहै कलेशा ।

 ॥ दोहा ॥

प्रेम प्रतीतहि कपि भजैसदा धरै उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभसिद्ध करें हनुमान ॥

यह पंक्ति हनुमान चालीसा से है और इसका अर्थ है:
"निश्चित प्रेम, विश्वास और भक्ति के साथ,
समर्पण और विनम्रता के साथ,
हे हनुमान, इन गुणों के साथ सभी कार्यों को
शुभ और सिद्ध करने की क्षमता है।"
यह पंक्ति भक्ति भाव से हनुमान जी की महिमा को स्तुति करती है और भक्तों को प्रेरित करती है कि उन्हें हनुमान जी के प्रति निरंतर प्रेम, विश्वास, और समर्पण रखना चाहिए। इन गुणों के साथ कार्य करने से सभी शुभ कार्य सिद्ध हो सकते हैं, यह मानव जीवन को उदार और सत्कारी बनाए रखने की दिशा में प्रेरित करता है।

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