श्रीमती बसन्ती बिष्ट
ऐतिहासिक वीर गाथाओं तथा जागर गायकी के लिए प्रसिद्ध तथा ‘नन्दा के जागर’ पुस्तक की लेखिका। श्रीमती बसंती बिष्ट ने उत्तराखंड के जागर गायन को नए आयाम दिए। पुरुष वर्चस्व वाले जागर क्षेत्र के बंधनो को तोड़कर आकाशवाणी, दूरदर्शन और विभिन्न मंचों पर पहुंचकर एक ऐसा लक्ष्य हासिल किया, जो आज एक प्रेणा बन गया है। आजकल में वे देहरादून में रहती हैं। विभिन्न मंचों पर जागर की प्रस्तुति देकर पहाड़ की संस्कृति के संवर्द्धन में सतत प्रयासरत हैं । जनवरी 2017 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं श्रीमती बसंती बिष्ट
Famous Women of Uttarakhand Smt. Basanti Bisht
बसंती बिष्ट - पहली महिला जागर गायिका
उत्तराखंड में अनेक मौकों पर देवी-देवताओं का स्तुतियां जागर के जरिए की जाती है। इस परंपरा को जागर गायिका बसंती बिष्ट ने न सिर्फ आगे बढ़ाया, बल्कि उन्होंने पूरे भारत को जागर का महत्व भी बताया। यही वजह रही कि उत्तराखंड की पारंपरिक लोक संस्कृति को संजोने के लिए इस साल उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।
माता: श्रीमती विरमा देवी
पति: श्री रणजीत सिंह
व्यवसाय: जागर गायिका, लोक गायिका
बचपन
बसंती का जन्म जिला चमोली में ल्वाणी गांव में हुआ था। उनकी मां का नाम विरमा देवी था और मां से ही बंसती ने मांगल और जागर गायन सीखा। शादी के बाद उनके पति ने उन्हें प्रोत्साहित तो किया लेकिन समाज इतनी जल्दी बदलाव के लिए तैयार नहीं था। इसी बीच करीब 32 वर्ष की आयु में वह अपने पति रणजीत सिंह के साथ पंजाब चली गईं।
ऐसे हुई शुरुआत
पति ने उन्हें गुनगुनाते हुए सुना तो विधिवत रूप से सीखने की सलाह दी। पहले तो बसंती तैयार नहीं हुई लेकिन पति के जोर देने पर उन्होंने सीखने का फैसला किया। हारमोनियम संभाला और विधिवत रूप से सीखने लगी।फिर क्या था बसंती जागर गाती और रणजीत हुड़का (पारंपरिक वाघ यंत्र) बजाते । 1996 में बसंती बिष्ट ल्वाणी गावं की प्रधान बनी । लेकिन उनका मन तो लोक संगीत में रमता था । महज एक साल में ही प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया और वर्ष 1997 में देहरादून में बस गई । जिसके बाद बसंती ने पहाड़ की ईष्ट माने जाने वाली नंदा देवी के साथ अन्य देवी देवताओं के जागर कई मंचों पर गाये । यही नहीं बसंती ने गढ़वाल और कुमाऊँ के ग्रामीण इलाकों में गाए जाने वाले मांगलगीत, देव जागर, घटियाली, चौंफुला आदि के संरक्षण के लिए पहाड़ के कलाकारों और जागर गायकों को सूचीबद्ध करने का काम भी शुरू किया।
40 साल में पहली परफार्मेंस
40 वर्ष की आयु में पहली बार वह गढ़वाल सभा के मंच देहरादून के परेड ग्राउंड में पर जागरों की एकल प्रस्तुति के लिए पहुंची। अपनी मखमली आवाज में जैसे ही उन्होंने मां नंदा का आह्वान किया पूरा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
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