संकटमोचन हनुमानाष्टक चालीसा
हनुमानाष्टक, हनुमान जी की महिमा को स्तुति रूप में व्यक्त करने वाला एक प्रमुख हिन्दू धार्मिक ग्रंथ है। यह अष्टक आठ श्लोकों से मिलकर बना है और हनुमान जी के गुण, भक्ति, और महत्त्व को बयान करता है। यहाँ इस अष्टक का एक छोटा सा भाग दिया गया है
संकटमोचन हनुमानाष्टक चालीसा को पढ़ने की सामान्य विधि
- शुभ मुहूर्त का चयन: संकटमोचन हनुमानाष्टक चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
- पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
- हनुमान जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: हनुमान जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
- पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
- संकटमोचन हनुमानाष्टक चालीसा का पाठ: संकटमोचन हनुमानाष्टक चालीसा का पाठ करें भक्तिभाव से।
- आरती और भजन: हनुमान जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
- मन्त्रों का जप: हनुमान जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ हं हनुमते नमः" या अन्य हनुमान मंत्र।
- आरती और प्रशाद: हनुमान जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए।
यह विधि आपकी आदतों, परंपराओं, और स्थानीय संस्कृति के अनुसार समायोजित की जा सकती है।
बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी विनती तब, छाँडि दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥
बालि की त्रास कपीस बसै, गिरिजात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि शाप दियो, तब चाहिये कौन विचार विचारो ।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो ।।
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सों जु, बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो ।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया सुधि प्राण उबारो ॥
रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षस सों कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगिसु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो ।
लै गृह वैद्य सुखेन समेत, तबै गिरि द्रोन सुबीर उपारो ।
आनि संजीवनि हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्राण उबारो ॥
रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो ।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो ।
आनि खगेश तबै हनुमान जु, बन्धन काटि के त्रास निवारो ॥
बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि, देऊ सबै मिलि मंत्र बिचारो ।
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समेत संहारो ॥
काज किए बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो ॥
॥ दोहा ॥लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ॥
यह श्लोक हनुमान चालीसा का हिस्सा है, जो हनुमान जी की महिमा को स्तुति रूप में व्यक्त करता है। इसका अर्थ है:
"लाल रंग की शरीर वाले, जिनकी लाल लंगूर पहनी हुई है,
जिनकी देह वज्र के समान मजबूत है,
जो दानवों के सेना को नष्ट करने वाले हैं,
विजयी होते हैं, विजयी होते हैं, विजयी होते हैं, हे कपि सूर।"
इस श्लोक में हनुमान जी की शक्ति, वीरता, और उनके दैहिक रूप की विशेषताएं की जा रही हैं। उनकी लाल रंग की शरीर और लाल लंगूर पहनने का उल्लेख है, जो हनुमान जी को इक्ष्वाकु वंश के एक उत्कृष्ट वीर के रूप में चित्रित करता है। वह दानव सेना को नष्ट करने में समर्थ हैं और हमेशा विजयी रहते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें