श्री गंगा चालीसा / Shri Ganga Chalisa

  श्री गंगा चालीसा

श्री गंगा चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि निम्नलिखित हो सकती है
विधि:
  1. शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. गंगा माँ की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: गंगा माँ की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
  4. शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
  5. पूजा का आरंभ: गंगा माँ की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
  6. मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री गंगा चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
  7. आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, गंगा माँ की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
  8. भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री गंगा चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।

॥ दोहा ॥
जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग । 
जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग ॥
॥चौपाई॥
जय जग जननि हरण अघ खानीआनन्द करनि गंग महारानी 
जय भागीरथ सुरसरि माताकलिमल मूल दलनि विख्याता ।
जय जय जय हनु सुता अघ हननीभीषम की माता जग जननी ।
धवल कमल दल मम तनु साजेलखि शत शरद चन्द्र छवि लाजे ।
वाहन मकर विमल शुचि सोहैअमिय कलश कर लखि मन मोहै ।
जड़ित रत्न कंचन आभूषणहिय मणि हारहरणितम दूषण ।
जग पावनि त्रय ताप नसावनितरल तरंग तंग मन भावनि ।
जो गणपति अति पूज्य प्रधानातिहुँ ते प्रथम गंग अस्नाना 
ब्रह्म कमण्डल वासिनि देवीश्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी ।
साठि सहत्र सगर सुत तारयोगंगा सागर तीरथ धारयो ।
अगम तरंग उठयो मन भावनलखि तीरथ हरिद्वार सुहावन ।
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवटधरयौ मातु पुनि काशी करवट |
धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ीतारणि अमित पितृ पद पीढ़ी ।
भागीरथ तप कियो अपारादियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा ।
जब जग जननी चल्यो हहराईशंभु जटा महँ रह्यो समाई ।
वर्ष पर्यन्त गंग महारानीरहीं शंभु के जटा भुलानी 
मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायोतब इक बून्द जटा से पायो ।
ताते मातु भई त्रय धारामृत्यु लोकनभ अरु पातारा ।
गई पाताल प्रभावति नामामन्दाकिनी गई गगन ललामा ।
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनिकलिमल हरणि अगम जग पावनि ।
धनि मइया तव महिमा भारीधर्म धुरि कलि कलुष कुठारी ।
मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनीधनि सुरसरित सकल भयनासिनी ।
पान करत निर्मल गंगा जलपावत मन इच्छित अनन्त फल ।
पूरब जन्म पुण्य जब जागततबहिं ध्यान गंगा महं लागत ।
जई पगु सुरसरि हेतु उठावहितइ जगि अश्वमेध फल पावहि ।
महा पतित जिन काहु न तारेतिन तारे इक नाम तिहारे ।
शत योजनहू से जो ध्यावहिं निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं ।
नाम भजत अगणित अघ नाशैविमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै ।
जिमि धन मूल धर्म अरु दानाधर्म मूल गंगाजल पाना ।
तव गुण गुणन करत दुख भाजतगृह गृह सम्पति सुमति विराजत ।
गंगहि नेम सहित नित ध्यावतदुर्जनहूँ सज्जन पद पावत ॥
बुद्धिहीन विद्या बल पावैरोगी रोग मुक्त है जावे ।
गंगा गंगा जो नर कहहींभूखे नंगे कबहुँ न रहहीं 
निकसत ही मुख गंगा माईश्रवण दाबि यम चलहिं पराई ।
महाँ अधिन अधमन कहँ तारेंभए नर्क के बन्द किवारे 
जो नर जपै गंग शत नामासकल सिद्ध पूरण है कामा ।
सब सुख भोग परम पद पावहिंआवागमन रहित है जावहिं ।
धनि मइया सुरसरि सुखदैनीधनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ।
ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासासुन्दरदास गंगा कर दासा ।
जो यह पढ़े गंगा चालीसामिलै भक्ति अविरल वागीसा 
॥ दोहा ॥
नित नव सुख सम्पति लहैंधेरैगंग का ध्यान । 
अन्त समय सुरपुर बसैसादर बैठि विमान ॥
सम्वत् भुज नभ दिशिराम जन्म दिन चैत्र । 
पूरण चालीसा कियोहरि भक्तन हित नैत्र ॥

टिप्पणियाँ