श्री नवग्रह चालीसा / Shri Navagraha Chalisa

श्री नवग्रह चालीसा

श्री नवग्रह चालीसा का पाठ करने की विधि
  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री नवग्रह चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. नवग्रह मंदिर या मूर्तियों का स्थापना: नवग्रहों की मूर्तियों को या नवग्रह मंदिर को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. नवग्रह चालीसा का पाठ: नवग्रह चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  6. आरती और भजन: नवग्रहों की आरती और भजनों का आनंद लें।
  7. मन्त्रों का जप: नवग्रहों के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ ब्रह्मा मुरारि त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनिराजा राहवे केतवः सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु।।"
  8. आरती और प्रशाद: नवग्रहों की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से नवग्रहों की आराधना करनी चाहिए।

यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है। इसलिए, अपनी पूजा और आराधना को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें।

॥ दोहा ॥

श्री गणपति गुरुपद कमलप्रेम सहित सिरनाय । 
नवग्रह चालीसा कहतशारद होत सहाय ॥
जय जय रवि शशि सोम बुधजय गुरु भृगु शनि राज । 
जयति राहु अरु केतु ग्रहकरहु अनुग्रह आज ॥

॥ चौपाई ॥

श्री सूर्य स्तुति

प्रथमहि रवि कहँ नावों माथाकरहु कृपा जनि जानि अनाथा ।
हे आदित्य दिवाकर भानूमैं मति मन्द महा अज्ञानू ।
अब निज जन कहँ हरहु कलेषादिनकर द्वादश रूप दिनेशा ।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकरअर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर ।

श्री चन्द्र स्तुति

शशि मयंक रजनीपति स्वामीचन्द्र कलानिधि नमो नमामि ।
राकापति हिमांशु राकेशाप्रणवत जन तन हरहु कलेशा ।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकरशीत रश्मि औषधि निशाकर 
तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशाशरण शरण जन हरहु कलेशा ।

श्री मंगल स्तुति

जय जय जय मंगल सुखदातालोहित भौमादिक विख्याता ।
अंगारक कुज रुज ऋणहारीकरहु दया यही विनय हमारी 
हे महिसुत छितिसुत सुखराशीलोहितांग जय जन अघनाशी ।
अगम अमंगल अब हर लीजैसकल मनोरथ पूरण कीजै ।

श्री बुध स्तुति

जय शशि नन्दन बुध महाराजाकरहु सकल जन कहँ शुभ काजा ।
दीजै बुद्धिबल सुमति सुजानाकठिन कष्ट हरि करि कल्याना ।
हे तारासुत रोहिणी नन्दनचन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन ।
पूजहु आस दास कहुँ स्वामीप्रणत पाल प्रभु नमो नमामी |

श्री बृहस्पति स्तुति 

जयति जयति जय श्री गुरूदेवाकरों सदा तुम्हरी प्रभु सेवा ।
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानीइन्द्र पुरोहित विद्यादानी ।  
वाचस्पति बागीश उदाराजीव बृहस्पति नाम तुम्हारा ।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामाकरहु सकल विधि पूरण कामा ।

 श्री शुक्र स्तुति

शुक्र देव पद तल जल जातादास निरन्तर ध्यान लगाता ।
हे उशना भार्गव भृगु नन्दनदैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन ।
भृगुकुल भूषण दूषण हारीहरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी ।
तुहि द्विजवर जोशी सिरताजानर शरीर के तुमहीं राजा 

श्री शनि स्तुति

जय श्री शनिदेव रवि नन्दनजय कृष्णो सौरी जगवन्दन ।
पिंगल मन्द रौद्र यम नामावप्र आदि कोणस्थ ललामा ।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजाक्षण महँ करत रंक क्षण राजा ।
ललत स्वर्ण पद करत निहालाहरहु विपत्ति छाया के लाला ।

श्री राहु स्तुति

जय जय राहु गगन प्रविसइयातुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया ।
रवि शशि अरि स्वर्भानु धाराशिखी आदि बहु नाम तुम्हारा ।
सैहिकेय तुम निशाचर राजाअर्धकाय जग राखहु लाजा ।
यदि ग्रह समय पाय कहिं आवहुसदा शान्ति और सुख उपजावहु ।

श्री केतु स्तुति

जय श्री केतु कठिन दुखहारीकरहु सुजन हित मंगलकारी ।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकरालाघोर रौद्रतन अघमन काला ।
शिखी तारिका ग्रह बलवानामहा प्रताप न तेज ठिकाना ।
वाहन मीन महा शुभकारीदीजै शान्ति दया उर धारी ।

नवग्रह शांति फल

तीरथराज प्रयाग सुपासाबसै राम  के सुन्दर दासा ।
ककरा ग्रामहिं पुरे तिवारीदुर्वासाश्रम जन दुख हारी  ।
नवग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतुजन तन कष्ट उतारण सेतू  ।
जो नित पाठ करै चित लावैसब सुख भोगि परम पद पावै  

॥ दोहा ॥

धन्य नवग्रह देव प्रभुमहिमा अगम अपार ।
चित नव मंगल मोद गृहजगत जनन सुखद्वार ॥
यह चालीसा नवोग्रह विरचित सुन्दरदास ।
पढ़त प्रेम युत बढ़त सुखसर्वानन्द हुलास ॥
 
नवग्रह मन्त्र
  1. सूर्य ॐ ह्रीँ ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
  2. चन्द्र ॐ श्राँ श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः ॐ
  3. मंगल  ॐ क्राँ क्रीं क्रौं सः भौमाये नमः
  4. बुध  ॐ ब्राँ ब्रीं ब्रौं सः बुधाये नमः
  5. गुरु   ॐ ग्राँ ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
  6. शुक्र   ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राये नमः
  7. शनि   ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः
  8. राहु   ॐ भ्राँ भ्रीं भ्रौं सः राहुवे नमः
  9. केतु    स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतुवे नमः

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