श्री शारदा चालीसा / Shri Sharda Chalisa

  श्री शारदा चालीसा

श्री शारदा चालीसा" का पाठ करने की सामान्य विधि निम्नलिखित हो सकती है:
विधि:
  1. शुभ मुहूर्त का चयन: शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. शारदा माँ की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें: शारदा माँ की मूर्ति, चित्र, या यंत्र के सामने बैठें।
  4. शुद्धि और स्नान: स्नान करें और शुद्धि धारण करें।
  5. पूजा का आरंभ: शारदा माँ की पूजा का आरंभ करें, जैसे कि कलश पूजा, चौघड़िया पूजा, और देवी पूजा।
  6. मंत्र उच्चारण: फिर, "श्री शारदा चालीसा" का पाठ करें, मन्त्र को ध्यानपूर्वक और भक्तिभाव से उच्चारित करें।
  7. आरती और प्रशाद: पूजा के बाद, शारदा माँ की आरती करें और प्रशाद बाँटें।
  8. भक्ति भाव: पूरे पाठ के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से भगवान की अनुपस्थिति में समर्पित रहना चाहिए।
इस प्रकार, आप श्री शारदा चालीसा का पाठ करने के लिए उपयुक्त विधि का पालन कर सकते हैं।

॥ दोहा ॥
मूर्ति स्वयंभू शारदा मैहर आन विराज । 
मालापुस्तकधारिणीवीणा कर में साज ॥
॥चौपाई॥
जय जय जय शारदा महारानीआदि शक्ति तुम जग कल्याणी ।
रूप चतुर्भुज तुम्हरो मातातीन लोक महं तुम विख्याता ।
दो सहस्त्र बर्षहि अनुमानाप्रगट भई शारद जग जाना 
मैहर नगर विश्व विख्याताजहां बैठी शारद जग माता 
त्रिकूट पर्वत शारदा वासामैहर नगरी परम प्रकाशा 
शरद इन्दु सम बदन तुम्हारो रूप चतुर्भुज अतिशय प्यारो ।
कोटिसूर्य सम तन द्युति पावनराज हंस तुम्हारो शचि वाहन ।
कानन कुण्डल लोल सुहावहिउरमणि भाल अनूप दिखावहिं ।
वीणा पुस्तक अभय धारिणीजगत्मातु तुम जग विहारिणी ।
ब्रह्म सुता अखंड अनूपाशारद गुण गावत सुरभूपा ।
हरिहर करहिं शारदा बन्दनबरुण कुबेर करहिं अभिनन्दन ।
शारद रूप चण्डी अवताराचण्ड-मुण्ड असुरन संहारा 
महिषा सुर बध कीन्हि भवानीदुर्गा बन शारद कल्याणी ।
धरा रूप शारद भई चण्डीरक्त बीज काटा रण मुण्डी ।
तुलसी सूर्य आदि विद्वानाशारद सुयश सदैव बखाना 
कालिदास भए अति विख्यातातुम्हारी दया शारदा माता 
वाल्मीक नारद मुनि देवापुनि-पुनि करहिं शारदा सेवा ।
चरण-शरण देवहु जग मायासब जग व्यापहिं शारद माया ।
अणु-परमाणु शारदा वासापरम शक्तिमय परम प्रकाशा ।
हे शारद तुम ब्रह्म स्वरूपाशिव विरंचि पूजहिं नर भूपा ।
ब्रह्म शक्ति नहि एकउ भेदाशारद के गुण गावहिं वेदा ।
जय जग बन्दनि विश्व स्वरूपानिर्गुणसगुण शारदहिं रूपा ।
सुमिरहु शारद नाम अखंडाव्यापइ नहिं कलिकाल प्रचण्डा ।
सूर्य चन्द्र नभ मण्डल तारेशारद कृपा चमकते सारे 
उद्धव स्थिति प्रलय कारिणीबन्दउ शारद जगत तारिणी ।
दुःख दरिद्र सब जाहिं नसाईतुम्हारी कृपा शारदा माई ।
परम पुनीति जगत अधारामातु शारदा ज्ञान तुम्हारा ।
विद्या बुद्धि मिलहिं सुखदानीजय जय जय शारदा भवानी ।
शारदे पूजन जो जन करहीं निश्चय ते भव सागर तरहीं ।
शारद कृपा मिलहिं शुचि ज्ञानाहोई सकल विधि अति कल्याणा 
जग के विषय महा दुःख दाईभजहुँ शारदा अति सुख पाई 
परम प्रकाश शारदा तोरादिव्य किरण देवहुँ मम ओरा ।
परमानन्द मगन मन होईमातु शारदा सुमिरई जोई  
चित्त शान्त होवहिं जप ध्यानाभजहुँ शारदा होवहिं ज्ञाना 
रचना रचित शारदा केरीपाठ करहिं भव छटई फेरी ।
सत् - सत् नमन पढ़ीहे धरिध्यानाशारद मातु करहिं कल्याणा 
शारद महिमा को जग जानानेति नेति कह वेद बखाना ।
सत्-सत् नमन शारदा तोराकृपा दृष्टि कीजै मम ओरा ।
जो जन सेवा करहिं तुम्हारीतिन कहँ कतहुँ नाहि दुःखभारी ।
जो यह पाठ करै चालीसामातु शारदा देहुँ आशीषा ।
 ॥ दोहा ॥
बन्दउँ शारद चरण रज भक्ति ज्ञान मोहि देहुँ । सकल अविद्या दूर करसदा बसहु उरगेहुँ ।
जय-जय माई शारदा मैहर तेरौ धाम । शरण मातु मोहिं लीजिएतोहि भजहुँ निष्काम ॥

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