श्री शिव चालीसा /Shri Shiv Chalisa

श्री शिव चालीसा

श्री शिव चालीसा को पढ़ने की सामान्य विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री शिव चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. शिव जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: शिव जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. श्री शिव चालीसा का पाठ: श्री शिव चालीसा का पाठ करें भक्तिभाव से।
  6. मन्त्रों का जप: शिव जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ नमः शिवाय" या अन्य शिव मंत्र।
  7. आरती और भजन: शिव जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  8. आरती और प्रशाद: शिव जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से शिव जी की आराधना करनी चाहिए।

यह विधि आपकी आदतों, परंपराओं, और स्थानीय संस्कृति के अनुसार समायोजित की जा सकती है।

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवनमंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुमदेहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरजापति दीनदयालासदा करत सन्तन प्रतिपाला ।
भाल चन्द्रमा सोहत नीकेकानन कुण्डल नागफनी के ।
अंग गौर शिर गंग बहायेमुण्डमाल तन छार लगाये ।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहेछवि को देख नाग मुनि मोहे |
मैना मातु कि हवे दुलारीवाम अंग सोहत छवि न्यारी ।  
कर त्रिशूल सोहत छवि भारीकरत सदा शत्रुन क्षयकारी ।
नन्दि गणेश सोहैं तहँ कैसेसागर मध्य कमल हैं जैसे ।
कार्तिक श्याम और गणराऊया छवि को कहि जात न काऊ ।
देवन जबहीं जाय पुकारातबहीं दुःख प्रभु आप निवारा 
किया उपद्रव तारक भारीदेवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ।
तुरत पडानन आप पठायउलव निमेष महँ मारि गिरायऊ 
आप जलंधर असुर संहारासुयश तुम्हार विदित संसारा ।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाईसबहिं कृपा कर लीन बचाई।
किया तपहिं भागीरथ भारीपुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ।
दानिन महँ तुम सम कोई नाहिंसेवक अस्तुति करत सदाहीं ।
वेद नाम महिमा तव गाईअकथ अनादि भेद नहिं पाई  
प्रगटी उदधि मंथन में ज्वालाजरे सुरासुर भये विहाला ।
कीन्हीं दया तहँ करी सहाईनीलकण्ठ तब नाम कहाई ।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हाजीत के लंक विभीषण दीन्हा ।
सहस कमल में हो रहे धारीकीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी । 
एक कमल प्रभु राखे जोईकमल नयन पूजन चहँ सोई ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकरभए प्रसन्न दिए इच्छित वर ।
जै जै जै अनन्त अविनासीकरत कृपा सबकी घटवासी ।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैभ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारोयहि अवसर मोहि आन उबारो ।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारोसंकट से मोहि आन उबारो ।
मातु पिता भ्राता सब कोईसंकट में पूछत नहीं कोई ।
स्वामी एक है आस तुम्हारीआय हरहु मम संकट भारी ।
धन निर्धन को देत सदाहींजो कोई जाँचे वो फल पाहीं ।
अस्तुति केहि विधि करों तिहारीक्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।
शंकर हो संकट के नाशनमंगल कारण विघ्न विनाशन ।
योगि यति मुनि ध्यान लगावैंनारद शारद शीश नवावैं ।
नमो नमो जय नमो शिवायेसुर ब्रह्मादिक पार न पाए 
एक कमल प्रभु राखे जोईकमल नयन पूजन चहँ सोई ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकरभए प्रसन्न दिए इच्छित वर ।
जै जै जै अनन्त अविनासीकरत कृपा सबकी घटवासी ।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैभ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारोयहि अवसर मोहि आन उबारो ।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारोसंकट से मोहि आन उबारो ।
मातु पिता भ्राता सब कोईसंकट में पूछत नहीं कोई ।
स्वामी एक है आस तुम्हारीआय हरहु मम संकट भारी ।
धन निर्धन को देत सदाहींजो कोई जाँचे वो फल पाहीं ।
अस्तुति केहि विधि करों तिहारीक्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।
शंकर हो संकट के नाशनमंगल कारण विघ्न विनाशन ।
योगि यति मुनि ध्यान लगावैंनारद शारद शीश नवावैं ।
नमो नमो जय नमो शिवायेसुर ब्रह्मादिक पार न पाए 
जो यह पाठ करे मन लाईतापर होत हैं शम्भु सहाई ।
ऋनिया जो कोई हो अधिकारीपाठ करे सो पावन हारी ।
पुत्रहीन इच्छा कर कोईनिश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ।
पंडित त्रयोदशी को लावेध्यान पूर्वक होम करावे ।
त्रयोदशी व्रत करे हमेशातन नहिं ताके रहे कलेशा ।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावेशंकर सम्मुख पाठ सुनावे 
जन्म जन्म के पाप नसावे अन्त वास शिवपुर में पावे ।
कहै अयोध्या आस तुम्हारीजानि सकल दुःख हरहु हमारी ।

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः हीपाठ करौं चालीस ।
तुम मेरी मनोकामना पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ऋतुसंवत् चौंसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहिपूर्ण कीन कल्याण ॥

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