श्री विष्णु चालीसा / Shri Vishnu Chalisa

 श्री विष्णु चालीसा

श्री विष्णु चालीसा को पढ़ने की विधि

  1. शुभ मुहूर्त का चयन: श्री विष्णु चालीसा का पाठ करने के लिए एक शुभ मुहूर्त का चयन करें, जैसे कि सुबह या संध्या के समय।
  2. पूजा स्थान का चयन: एक शुद्ध और साफ पूजा स्थान का चयन करें जहां आप पूजा कर सकते हैं।
  3. विष्णु जी की मूर्ति या छवि का स्थापना: श्री विष्णु जी की मूर्ति या छवि को एक स्थान पर स्थापित करें।
  4. पंज अग्रपूजा: पंज अग्रपूजा करें जिसमें फूल, दीप, धूप, अक्षत, और नैवेद्य शामिल होते हैं।
  5. विष्णु चालीसा का पाठ: श्री विष्णु चालीसा का पाठ भक्तिभाव से करें।
  6. आरती और भजन: विष्णु जी की आरती और उनके भजनों का आनंद लें।
  7. मन्त्रों का जप: विष्णु जी के मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" या "ॐ नमो नारायणाय"।
  8. आरती और प्रशाद: विष्णु जी की आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  9. भक्ति भाव: पूजा के दौरान और उसके बाद, आपको भक्ति भाव से श्री विष्णु की आराधना करनी चाहिए।

इस विधि को अपनी आदतों और परंपराओं के अनुसार समायोजित करें, क्योंकि यह स्थानीय संस्कृति और आचार्यों के अनुसार भिन्न हो सकती है।

॥ दोहा ॥

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय । 
कीरत कुछ वर्णन करूँ दीजै ज्ञान बताय ॥

॥ चौपाई ॥

नमो विष्णु भगवान् खरारीकष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारीत्रिभुवन फैल रही उजियारी ।
सुन्दर रूप मनोहर सूरतसरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहतबैजन्ती माला मन मोहत ।
शंख चक्र कर गदा बिराजेदेखत दैत्य असुर दल भाजे 
सत्य धर्म मद लोभ न गाजेकाम क्रोध मद लोभ न छाजे ।
सन्तभक्त सज्जन मनरंजनदनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजनदोष मिटाय करत जन सज्जन ।
पाप काट भव सिन्धु उतारणकष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारणकेवल आप भक्ति के कारण ।
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारातब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारारावण आदिक को संहारा 
को आप वाराह रूप बनायाहिरण्याक्ष को मार गिराया 
धर मतस्य तन सिन्धु बनायाचौदह रतनन को निकलाया ।
अमिलख असुरन द्वन्द मचायारूप मोहनी आप दिखाया 
देवन को अमृत पान करायाअसुरन को छबि से बहलाया ।
कूर्म रूप धर सिंन्धु मझायामन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ायाभस्मासुर को रूप दिखाया 
वेदन को जब असुर डुबायाकर प्रबन्ध उन्हें ढुंढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचायाउसही कर से भस्म कराया 
असुर जलंधर अति बलदाईशंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाईकीन सती से छल खल जाई ।
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानीबतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानीवृन्दा की सब सुरति भुलानी ।
देखत तीन दनुज शैतानीवृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।  
हो स्पर्श धर्म क्षति मानीहना असुर उर शिव शैतानी ।
तुमने धुरू प्रहलाद उबारेहिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारेबहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ।
हरहु सकल संताप हमारेकृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुँ मैं नित दरश तुम्हारेदीन बन्धु भक्तन हितकारे ।
चहत आपका सेवक दर्शनकरहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जप पूजनहोय यज्ञ स्तुति अनुमोदन 
शीलदया सन्तोष सुलक्षणविदित नहीं व्रतबोध विलक्षण |
करहुँ आपका किस विधि पूजनकुमति विलोक होत दुख भीषण ।
करहुँ प्रणाम कौन विधिसुमिरणकौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सिवकाईहर्षित रहत परम गति पाई 
दीन दुखिन पर सदा सहाईनिज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओभव बन्धन से मुक्त कराओ ।
सुत सम्पति दे सुख उपजाओनिज चरनन का दास बनाओ 
निगम सदा ये विनय सुनावैपढ़े सुनै सो जन सुख पावै ।

॥ दोहा ॥

श्री विष्णु चालीसा हे नाथ, प्रेम से पूजिए यह बाथ।
प्रभु कृपा करो महाराज, जय जय जय हे भगवान॥

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