सोनकेसी : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Sonkesi : Lok-Katha (Himachal Pradesh)एक बार एक
साहुकार था। उसके चार पुत्र थे ।चार में से बड़े तीन पुश्तैनी धन्धे के साथ
अपना-अपना काम धन्धा भी करते थे पर सबसे छोटा बेटा कोई काम-धाम नहीं करता था ।
उसकी इस आदत की वजह से साहुकार उससे नाराज रहने लगा । बोल-चाल भी बंद हो गई । बाकी
के भाई भी उससे खिंचे-खिंचे से रहने लगे पर मां तो मां होती है वो हमेशा उसे कुछ न
कुछ करने की प्रेरणा देती रहती ।
एक दिन उसकी मां
ने उसे अपने पास बुलाया और सौ रुपये उसके हाथ में देते हुये उसे कहा-“इन रुपयों से अपना कोई व्यापार शुरु करो”।.jpg)
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साहुकार का बेटा
सौ रुपया लेकर मेले में पंहुच गया और वहां उन रुपयों से एक चूहा खरीदकर खुशी-खुशी
घर पंहुच गया। मां ने चूहा देखा तो माथा पीटकर रह गई । फिर उसने लड़के से कहा –
“सौ रुपये व्यर्थ ही चूहे पर बर्बाद किये। खैर
अब ले ही आये हो तो इसे अनाज के भंडार में ले जाकर छोड़ दो, वहां अनाज खाता रहेगा”।
लड़का चूहे को
अन्न भंडार गृह मे ले गया और वहां छोड़ दिया । चूहा आज़ाद हुआ तो उसने लड़के से कहा –
तुमने मुझे आज़ादी दिलाकर बड़ा उपकार किया है गर
तुम पर कभी कोई विपत्ति आये तो मुझे याद करना मैं तुम्हारी सहायता करुंगा।
इतना कहकर चूहा
बोरी में घुस गया ।
दिन बीतते गये ।
बाप-भाईयों के साथ उसकी कुढ़ता बढ़ती गई पर मां का दिल तो मां का होता है फिर से
पसीजा, उसने फिर एक बार उसे सौ
रुपया देकर कोई व्यापार करने को कहा । लड़का बाज़ार गया और सौ रुपये के बदले एक
बिल्ली ले आया । घर लौटा मां ने बिल्ली देखी तो उसका मन बड़ा खिन्न हुआ । बेटे को
डांटते हुये बिल्ली को बाहर ले जाकर छोड़ने को कह दिया । लड़के ने बिल्ली को छोड़ा तो
उसने भी छूटते हुये कहा-मित्र ! तुमने मुझे आज़ादी दी है उसके लिये धन्यवाद और हां
तुम पर गर कभी कोई विपत्ति आये तो मुझे याद करना मैं हाजिर हो जाऊंगी -कहती बिल्ली
अंधेरे में लोप हो गई ।
दिन बीते मां ने
एक और प्रयास किया बेटे को सौ रुपया देते कहा- देखो अब तुम बड़े हो गये हो, शादी-व्याह की उमर हो चली है, यह पैसे लेकर जाओ और कुछ काम -धंधा शुरु करो ।
लड़का पैसे लेकर बाज़ार गया और उन पैसों से तोता खरीदकर ले आया । मां ने तोता देखा
तो अपनी किस्मत को कोसने लगी, उसने तुरंत तोते
को छोड़ने का हुक्म दिया । लड़के ने जब तोते को छोड़ा तो तोता भी धन्यवाद करता उससे
मुसीबत में उसका साथ देने की बात कहता उड़ गया ।
साहूकार और दूसरे
भाईयों को सारी बात का पता चला तो वे बड़े नाराज हुये । समय बीता । एक दिन लड़का मां
के पास पंहुचा और व्यापार के लिये पैसों की मांग की । मां ने घर के दूसरे सदस्यों
से छुपाकर उसे पैसे दे दिये और यह कहते विदा किया- अबकी इन रुपयों से कुछ काम-धंधा
जमाकर ही लौटना पहले की तरह जाया न कर देना ।
लड़का पैसे लेकर
हाट-बाज़ार की ओर निकल पड़ा । रास्ते में उसकी मुलाकात एक मदारी से हुई । मदारी के
पास एक बूढ़ा सांप था लड़के ने सौ रुपये देकर वो सांप खरीद लिया और घर लौट आया ।
घर में मां ने जब
सांप को देखा तो अपनी किस्मत को रोने लगी, लड़के को जोर- जोर से डांटने लगी। शोर सुनकर साहूकार और दूसरे भाई भी आ गये ।
सब लड़के को कोसने लगे । सबने सांप को तुरंत घर से दूर ले जाकर छोड़ने का हुक्म सुना
दिया । लड़का सांप को लेकर चल पड़ा । एक निर्जन स्थान पर उसने सांप को छोड़ना चाहा तो
सांप ने कहा – मित्र ! “मदारी की कैद से छुड़वाकर तुमने मुझपर बड़ा अहसान
किया है पर तुम मुझे यहां मत छोड़ो । मैं बूढ़ा हो गया हूं अब चला नहीं जाता । गर
रेंगूंगा तो पक्षी मुझपर आक्रमण कर देंगे । अतः मुझे उठाकर ले चलो जहां मैं कहूंगा
वहां मुझे छोड़ देना, तुम्हारा बड़ा
उपकार होगा”।
साहूकार के लड़के
ने सांप को उठाया और चल पड़ा । रास्ते में एक जगह बहुत बड़ी वामी थी। वामी के एक छोर
पर बहुत बड़ा छेद था । सांप ने वहां उससे कहा -तुम मुझे यहीं छोड़ दो पर मेरी पूंछ
को पकड़कर रखना, छोड़ना मत । लड़के
ने स़ाप को वहीं रखा और उसकी पूंछ कसकर पकड़ ली । सांप धीरे-धीरे उस बड़े छेद में
घुस गया, पूंछ पकड़े लड़का भी उस छेद
में गहरे उतरता गया ।
उतरते-उतरते वे
बड़ा गहरे उतरते गये और एक शहर में पंहुच गये । शहर के सुंदर भवनों, रास्तों, फूलों-बागीचों की सुदंरता देख लड़का बड़ा विस्मित हुआ और उसने
देखा की वो बूढ़ा सांप एक सुंदर मनुष्य के रुप में परिवर्तित हो गया ।मनुष्य रुप
में आते ही उसने लड़के से कहा-“चलो मैं तुम्हें
अपने राजा के पास ले चलता हूं” । चलते-चलते वे
महल के भीतर पंहुच गये । अंदर सिहांसन पर बड़ी-बड़ी मूंछों वाला सांपों का राजा
विराजमान था । मनुष्य रुप में आये उस सर्प ने राजा का झुककर अभिवादन किया । राजा
ने कहा- आ गये तुम । बहुत समय लगा दिया । कैसी कटी वहां पर ?
सांप ने
कहा-पूछिये मत महाराज । मदारी के हाथ पड़कर मेरे कुछ भी बस के न रही थी । यह तो भला
हो इस भलेमानस का जिसने मुझे मदारी से आज़ादी दिलवाई । यह कहते उसने सारा वृत्तांत
कह सुनाया ।
राजा ने लड़के को
बुलाकर अपने पास विठाया ।उसका खूब आदर-सत्कार किया और इस तरह लड़का वहीं पाताल में
सर्पलोक में रहने लगा ।
समय गुजरता गया ।
सांपों के राजा को लड़के का स्वभाव बड़ा भाया सो उसने अपनी इकलौती बेटी का व्याह
उससे करने की सोची । उसने अपने वजीरों से सलाह मश्विरा किया और सबकी रजामंदी से
दोनों का व्याह करवा दिया ।
लड़के का ठाठ -बाठ
राजाओं सा हो गया । उसकी पत्नी बहुत सुंदर थी उसके बाल सोने के थे। स्वभाव की भली
थी । दोनों खुशी-खुशी साथ रहने लगे । समय वीतता गया एक दिन लड़के ने पत्नी से कहा- “यहां रहते काफी समय हो चला । कब तक ससुराल में
रहूंगा । चलो धरती लोक पर चलते हैं”। लड़की ने कहा –
मुझे कोई आपत्ति नहीं । हां पहले चलकर पिता जी
से पूछ लेते हैं उनकी आज्ञा लेकर चल पड़ेंगे । एक बात और अगर उन्होंने आज्ञा दे दी
तो वे तुमसे कुछ मांगने को बोलेंगे । मांगने से पहले तुम उनसे देने का वचन मांगना
। अगर कुछ भी देने का वचन दे देंगे तो उनके हाथ में पहनी अंगूठी को मांग लेना”
।
उसी शाम लड़का
राजा के पास पंहुचा और कहा-महाराज हमें यहां रहते बहुत दिन हो गये । अब हम दोनों
अपने लोक को जाना चाहते हैं अतः आशीर्वाद दें ।
राजा ने जाने की
आज्ञा देते कहा- गर तुम्हें कुछ चाहिए तो मांगो । लड़के ने पत्नी के कहेनुसार पहले
वचन मांगा और फिर राजा के हाथ की अंगूठी मांग ली ।राजा ने चौंक कर उसकी और देखा,
अंगूठी उतारी और उसे देते कहा -मैंने तुम्हे
अपनी लड़की ही नहीं अपना सर्वस्व दे दिया है । अब तुम धरती लोक पर जाओ और जैसे
मर्जी हो वैसे रहो । अगले दिन सबने खुशी-खुशी दोनों को धरतीलोक के लिये विदा किया
और इस तरह वो दोनों धरतीलोक पंहुच गये ।
धरती पर पंहुचकर
लड़का अपने घर की ओर बढ़ा तो पत्नी ने कहा-“मैं उस घर में नहीं रहूंगी”। सुनकर लड़का
चिंता में पड़ गया कि वे रहेंगे कहां, खायेंगे क्या ? उसे चिंता में
डूबे देख लड़की ने अंगूठी निकाली और उसकी स्तुति करते कहा-हे रमेश्वरी, मुंदरिये -यहां एक ऐसा सुंदर महलबन जाये जिसमें
धरती की हर सुख सुविधा मौजूद हो ।
तुरंत वहां पर एक
सुंदर महल बन गया और उसमें रोज के वरतन-व्यवहार की हर चीज मौजूद हो गई । लड़के को
यह देख अंगूठी की महत्ता पता चली और ससुर की कही बात समझ में आई । दोनों खुशी-खुशी
वहां पर रहने लगे । जब भी किसी चीज की जरुरत पड़ती, अंगूठी प्रस्तुत कर देती ।
एक दिन लड़के की
पत्नी महल के चौबारे पर बैठकर अपने बाल संवार रही थी कि उसके दो बाल झड़कर पास बहती
नदी में जा गिरे । बाल एक मछली ने निगल लिये और तैरती-तैरती दूर किनारे निकल गई ।
एक रोज़ वो झीवर के जाल में फंस गई ।वह उसे दूसरी मछलियों के साथ राज दरबार में दे
आया और इस तरह वो मछली रसोईघर में पंहुच गई । राजा के रसोईयों ने जब उस मछली को
काटा तो पेट में सोने के बाल देखकर वे हैरान हुये । वे तुरंत राजा के पास पंहुचे
और बालों को दिखाते सारी बात बताई । राजा सोने के बालों को देखकर पगला गया । वह
सोचने लगा जिस औरत के बाल इतने सुंदर हैं वो स्वयं कितनी सुंदर होगी। वह सोने के
बालों की मालकिन को अपने महलों में देखने की इच्छा पाल बैठा और तुरंत उसने अपनी
सारी दूतियों को महल में बुला लिया और पूछा-तुम क्या-क्या काम कर सकती हो ?
सबने अपनी-अपनी खूबियां
बताईं । राजा सुनता गया अंत में दो दूतियां रह गई़ । उनमें से एक ने कहा-“महाराज मैं स्वर्ग में छेद कर सकती हूं”। दूसरी ने कहा-“महाराज मैं अम्बर के उपर कपड़ा डाल सकती हूं” ।
राजा ने स्वर्ग
में छेद डाल सकने वाली दूती को अकेले में बुलाया और सोने के बालों की बात बताते
अपनी इच्छा जताई । सारी बात सुनकर दूती ने कहा-महाराज मैं सोने के बालों वाली लड़की
वारे जानती हूं वह पाताल लोक के सर्पों के राजा की बेटी है । पर वो धरती पर कैसे
पंहुची यह मुझे नहीं पता । खैर मैं उसे ढूंढने का प्रयास करती हूं ।आप कुछ
नौकर-चाकर और रुपये-पैसे मुझे दें, मैं तुरंत खोज
में निकलती हूं ।राजा ने वैसा ही किया और दूती खोज में निकल पड़ी ।
दूती मछली काटने
बालों से पूछताछ करती आखिर उस झीवर तक पंहुच गई जिसने मछली को पकड़ा था । उससे सारा
वृतान्त जान आखिर वो उस नदी तक जा पंहुची ।वहां पंहुचकर उसने एक नाव तैयार करवाई
और पानी की उल्टी दिशा की ओर बढ़ चली । नाव दिन रात चलती-चलती आखिर उस महल किनारे
पंहुच गई जहां पति-पत्नी रहते थे । दूती ने मल्लाह को हुक्म दिया- “मैं जब तक न लौटूं, यहीं पर रहना” । कहकर वह नाव से उतर गई और महल की ओर बढ़ चली । महल के पास जाकर उसने महल और
उसमें रहने वाले लोगों बारे जानकारी एकत्रित करी तो उसे विश्वास हो गया कि सोने के
बालों वाली लड़की और कोई नहीं पाताल की राजकुमारी सोनकेसी ही है ।
वो योजना बनाकर
महल में घुस गई और सोनकेसी को देखते ही बोली-“भानजी!सोनकेसी!तुम धरती लोक पर कैसे और कब पंहुची ?मुझे पहचाना?मैं तुम्हारी मौसी”।
सूनकेसी ने कहा-“तू कौन ?और मेरी मौसी कैसे ?मैं तुम्हें नहीं पहचानती”।
यह सुनते दूती ने
कहा- तुम अभी बच्ची ही थी जब मैं यहां धरती लोक पर आ गई थी । बापिस जाना ही नहीं
हुआ।धरती है ही ऐसी जो एक बार यहां रह गया, यहीं का होकर रह गया ।खैर तुम्हें यहां देखकर यूं लग रहा है
जैसे मैं अपनी बहन के घर पंहुच गई हूं । तुम मुझे पाताल लोक के हाल-चाल सुनाओ,
कैसे हैं सब वहां ? सोनकेसी घर पर अकेली थी ।घरवाला कहीं बाहर गया था ।
पाताललोक की बातें सुनीं तो दूती सच कहती प्रतीत हुई । उसने उसे मौसी समझ सारीं
बातें बतला दीं और उसका खूब आदर-सत्कार किया ।
शाम को लड़का घर
लौटा तो सोनकेसी ने दूती का परिचय अपनी मासी बताकर दिया वो बड़ा खुश हुआ । इस तरह
दूती वहां जम गया । धीरे-धीरे दूती ने सोनकेसी को अपनी बातों में फंसा लिया और
उससे सारे राज जान लिये यह भी जान लिया कि किस प्रकार अंगूठी उनकी सारी जरुरतों को
पूरा करती है और वे उस अंगूठी को कहां रखते हैं ।
एक दिन साहूकार
का लड़का घर पर नहीं था तो दूती ने मौका देखकर कहा- “भानजी मुझे महल से बाहर घूमे बहुत दिन हो गये हैं यूं भी
इंसान एकजगह बैठे-बैठे ऊब जाता है सो चलो कहीं घूम आयें”। सोनकेसी उसकी बातों में आ गई और बाहर घूमने के लिये तैयार
हो गई । सज्ज-धज के जब दोनों बाहर आईं तो दूती ने कहा-अरे मैं अपनी चप्पलें तो भूल
गई, तुम रुको मैं लेकर आती
हूं । सोनकेसी ने कहा-तुम रुको मौसी, मैं लाती हूं । पर दूती ने उसकी एक न सुनी झट्ट से अंदर दौड़ती हुई गई और
अंगूठी को उठाकर अपने कपड़ों में छुपाकर बाहर लेकर आ गई । सोनकेसी वहीं खड़ी थी
दोनों महल से बाहर आ गई, दूती उसे
बहलाती-फुसलाती नदी किनारे ले गई और नौका को दिखाते कहा-भानजी, चलो आज नौका विहार करते हैं । सोनकेसी मान गई ।
दोनों नौका पर जा बैठीं । दूती ने नाव चलाने का हुक्म दे दिया, नाव धीरे-धीरे चल पड़ी ।
नौका जब काफी दूर
निकल आई तो सोनकेसी चौंकी । उसने मौसी से नौका मोड़ने को कहा पर दूती तब अपने असल
रुप में आ गई थी वो अट्टहास करने लगी । सोनकेसी भांप गई कि इस बुढ़िया ने उसका
अपहरण कर लिया है । पहले तो उसने नदी में कूदना चाहा पर गहरा पानी देखकर रुक गई
दूसरा उसे विश्वास था कि जब उसके घर वाले को सारी बात का पता चलेगा तो वह अंगूठी
के सहारे उसे अपने पास बुला लेगा । उसे तो यह इल्म ही नहीं था कि दूती अंगूठी को
भी उठाकर ले आई है । खैर वह दूती को भला-बुरा कहती रही ।
नौका जब राजमहल
के करीब पंहुच गई तो दूती ने सोनकेसी को नौकरों से पकड़वाया और महल के भीतर ले गई ।
राजा की खुशी का कोई ठिकाना न रहा । उसने दूती को खूब सारा धन, हीरे-मोती देकर विदा किया । दूती ने अंगूठी की
बात किसी को भी नहीं बताई और उसे साथ लेकर अपने घर आ गई ।
राजा सोनकेसी को
अपने महल में पाकर बड़ा खुश था उस जैसी सुंदर स्त्री न तो उसने पहले देखी थी न ऐसी
सुंदरता बारे उसने सुना था । पहले तो राजा घबराता रहा पर अंततः अपना निवेदन लेकर
सोनकेसी के पास पहुंचा और कहा – ‘ सुनो सुंदरी
!घबराओ मत । तुम यहां की रानी हो । तुम जो चाहोगी मैं वो करने के लिये तैयार हूं
तुम बस मेरी रानी बनने की हामी भर दो’ ।
सोनकेसी पहले तो
झिझकी फिर साहस कर बोली-राजा मैं यहां स्वयं चलकर नहीं आई अपितु वो बूढ़ी औरत मेरा
अपहरण करके, छल करके यहां ले
आई है ।तुम्हें मेरी एक शर्त माननी होगी । राजाने कहा -एक क्या मैं सौ शर्ते मानने
के लिये तैयार हूं ।तुम कहो क्या शर्त है ?
बह बोली-राजा तुम
छह महीने तक मुझे हाथ नहीं लगाओगे उसके बाद जो जी आये करना । राजा ने शर्त मान ली
और उसे दासियों के हवाले छोड़कर चला गया । सोनकेसी को विश्वास था कि उसका पति
अंगूठी के सहारे उसे ढूंढ लेगा, अपने पास बापिस
बुला लेगा ।
उधर साहूकार का
लड़का घर लौटा तो महल में कोई नहीं था । वह यह सोचकर बैठ गया कि यहीं-कहीं मौसी के
साथ गई होंगी, आती ही होंगी ।
पर जब देर तक कोई न लौटा तो वह बड़ा परेशान हुआ । उसे अंगूठी की याद आई । पर जब
देखा तो अ़गूठी वहां नहीं थी वो इधर-उधर सब जगह सोनकेसी और अंगूठी को ढूंढने लगा ।
तभी उसके मन में विचार आया कि पाताललोक से उसकी मौसी आई थी हो सकता हो वो अंगूठी
को लेकर पाताललोक बापिस चली गई हो । और गर ऐसा हुआ तो वो अब कभी बापिस न आयेगी
।सोचता-सोचता वह इस विपत्ति से छुटकारा पाने की सोचने लगा । सोचते-सोचते उसे चूहे, बिल्ली और तोते
की याद आई वो मन ही मन उन्हें स्मरण करने लगा । वो तीनों उसी समय उसके सामने हाज़िर
हो गये । तीनों को वहां देखकर लड़के ने सारी व्यथा कह सुनाई और कहा-मित्रो मेरी
सोनकेसी और अंगूठी को बापिस लेकर आओ नहीं तो मैं मर जाऊंगा । इतना कहकर लड़का
मूर्छित होकर वहीं गिर पड़ा ।
तीनों ने लड़के की
हालत देखी तो आपस में कहने लगे-अगर सोनकेसी और अंगूठी न मिली तो यह सच में मर
जायेगा । यह सोच उन्होंने आपस में सलाह मश्विरा किया और अंततः तय किया कि तोता सब
जगह उड़कर सूनकेसी और अंगूठी का पता लगायेगा उसके बाद सब मिलकर तय करेंगे कि क्या,
कैसे करना है ।
तोता तुरंत उड़
गया । उसने चारों दिशाओं में उड़ाने भरी और अंततः लौटकर दोनों को बताया कि सूनकेसी
तो राजा के महल में है पर अंगूठी उसके हाथ में नहीं है । अंगूठी उसने एक बूढ़ी दूती
की अंगुलि में देखी । उसकी बातें सुनकर चूहा और बिल्ली तोते द्वारा बताये दूती के ठिकाने
की ओर बढ़ चले ।तोता भी साथ उड़ चला । चलते-चलते वे दूती के ठिकाने पर पंहुच गये और
छुपकर रात होने का इंतज़ार करने लगे ।
जब रात हुई तो
सोते समय दूती ने अंगूठी खोली और मुहं मे डाल मुहं बंद कर सो गई । तोते और बिल्ली
ने यह सारा वाकया देखा तो उन्होंने तुरंत योजना बनाई । चूहे ने बिल्ली के कान में
कहा- जैसे ही अंगूठी बाहर गिरे तुम झट्ट से उसे उठाना और बाहर भाग जाना । मश्विरा
कर वे दोनों बुढ़िया के सिराहने के पास जा पंहुचे । चूहा उसके नाक के पास जाकर बैठ
गया और धीरे-धीरे अपनी पूंछ बुढ़िया के नाक में घुसेढ़ दी ।पूंछ के नाक में जाते ही
बुढ़िया जोर से छींकी और अंगूठी मुहं से निकल नीचे गिर गई । बिल्ली तो पहले से ताक
में थी उसने झट्ट से अ़गूठी उठाई और बाहर निकल भागी । चूहे ने भी उसका अनुसरण किया
और झट्ट से बाहर भागा । पीछे बुढ़िया आछीं-आछीं करते रह गई ।
बाहर तीनों
इक्टठे हुये तो बिल्ली ने कहा -‘ तोते भाई,
हम तो चलकर उस पार पंहुचेंगे पर तुम उड़कर जल्दी
पंहुच सकते हो अतः तुम अंगूठी को मुहं मे डाल लो और लड़के के पास पंहुचो ।हम भी
वहीं पंहुचते हैं और हां एक बात का ख्याल रखना, उड़ते-उड़ते मुहं मत खोलना । तोता तुरंत वहां से उड़ चला । जब
नदी के पास पंहुचा तब तक सुवह हो चली थी । पक्षी-पखेरु उड़ते चीं-चीं करते बाहर
निकल आये थे । जब तोता नदी के उपर उडझ रहा था तो दूसरी ओर से तोतों का एक बड़ा झुंड
ट्रीं-ट्रीं करता उसके पास से गुज़रा । तोते पर भी संगति का असर हुआ और उसका मुहं
खुल गया । अ़गूठी मुहं से निकल गई और पानी में जा गिरी । तोता अपना मुहं सा लेकर
रह गया और उदास हो वहीं बैठकर चूहे और बिल्ली का इंतजार करने लगा ।
जब दोनों वहां
लौटेतो तोते ने बड़े दुखी मन से सारा वृत्तांत कह सुनाया । सारी बात सुनकर वे बड़े
दुखी हुये और असहाय से होकर बैठ गये । तभी चूहे ने कहा -गर राम की सेना समुद्र पर
पुल बना सकती है तो हम भी पानी के वहाव को बदल सकते हैं । ऐसा कहकर उसने हज़ारों
लाखों चूहों को वहां बुला लिया और सब चूहे पानी के तल के नीचे पंहुच धरा को कोरने
लगे । चूहों का सामूहिक प्रयास रंग लाया और नदी का वहाव चूहों द्वारा बनाई सुरंग
की ओर मुड़ गया । दूसरी ओर नदी सूख गई । सूखी नदी देखकर बिल्ली तुरंत नदी में घुस
गई और मछलियों को मार-मारकर उनका पेट फाड़कर अ़गूठी को ढूंढने लगी ।उसे ऐसा करते
देख मछलियों की रानी बड़ी परेशान हुई और बिल्ली के पास आकर इसका कारण पूछने लगी ।
बिल्ली ने अंगूठी की बात बताई । सारी बात सुनकर मछलियों की रानी ने खुद उस मछली को
बिल्ली के हवाले कर दिया जिसने अंगूठी निगली थी । बिल्ली ने मछली को मारकर उसका
पेट फाड़ दिया और अंगूठी निकाल ली ।
अंगूठी से मछली
की बदवू आ रही थी सो उन्होंने अंगूठी को अच्छी तरह धोकर एक पत्थर के उपर रख दिया
और सलाह मश्विरा करने लगे । तभी उपर से एक चील उड़ती हुई आई और अंगूठी को निगल उड़
गई । तीनों फिर खाली हाथ टुकर-टुकर आसमान की ओर देखने लगे । उधर चील का पेट भरा
नहीं था शायद अतः वो वहीं मंडराने लगी । तभी चूहे ने बिल्ली से कहा -मैं खुद को
चारा बनाकर चील के आगे प्रस्तुत करता हूं वो मुझे खाने नीचे आयेगी तब सब कुछ
तुम्हारे उपर निर्भर रहेगा-गर तुमने चील को पकड़ लिया तो पौ-बारह और चूक गई तो मैं
भी गया ।
सारी बात समझाकर
चूहा एक पत्थर पर जाकर लेट गया और बिल्ली पत्थर की आड़ लेकर बैठ गई । चील ने जैसे
ही चूहे को देखा तो वह उसे खाने को उतरी । वो उसे झपट्टा मारकर उठाने ही वाली थी
कि चूहा तुरंत वहां से नीचे की और भागा । चील पीछे लपकी तो बिल्ली ने झट से छलांग
लगाकर चील को दबोच लिया और उसे चीर फाड़ अंगूठी बाहर निकाल ली।
उसके बाद तीनों
साथ -साथ साहूकार के लड़के के पास पंहुचे और उसे होश में लाकर अ़गूठी उसके हवाले कर
दी ।लड़के ने अ़गूठी को धोया, पूजा और एक चौका
डालकर उसे उसमें रखकर कामना करने लगा -हे मुंदरी, परमेश्वरी, मेरी सोनकेसी को
अभी सकुशल मेरे पास पंहुचाओ। उसके बोलने की देर थी कि सोनकेसी वहां पंहुच गई ।दोनों
मिलकर खूब रोये, हंसे और उसके बाद
तोते, बिल्ली और चूहे से सारा
वृत्तांत सुना ।सारी बात सुनकर दोनों बड़े हैरान हुये कि उन तीनों को उनके लिये
क्या कुछ न करना पड़ा ।उन दोनों ने उन तीनों कीखूब खातिरदारी कर विदा किया । उसके
बाद दोनों खुशी-खुशी वहां रहने लगे ।
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