25 - प्रसिद्ध गढवाली ओखाण / Famous Garhwali Okhan

प्रसिद्ध गढवाली औखाणे गढ़वाली कहावतें (Okhan)

  1. बिनडी बिरवो मा मूसा नि मोरदा । ज्यादा लोगो मे काम सफल नही होते।
  2. तितुर खाण मन काव बताय । मन मे कुछ और मुह पर कुछ और।
  3. कोय चेली ते , सुणाय बुवारी कु। बोला बेटी को और सुनाया बहु को।
  4. च्यल हेबे सकर नाती प्यार । बेटे से ज्यादा पोता प्यारा होता है।
  5. ना सौण कम ना भदोव कम। कोई भी किसी से कम नही है। दोनों प्रतियोगी बराबर क्षमता के।
  6. नी खानी बौड़ी,चुल पन दौड़ि !  नखरे वाली बहु, सबसे ज्यादा खाती है।
  7. द्वि दिनाक पूण तिसार दिन निपटूण ! आदर सत्कार अधिक दिन तक नहीं होता।
  8. शिशुणक पात उल्ट ले लागू सुल्ट ले ! धूर्त आदमी से हर तरफ से नुकसान
  9. अघैन बामणि भैसक खीर ! संतुष्ट ना होने पर मना करने का झूठा बहाना करना
  10. जो घडी द्यो ,ऊ  घडी पाणी ! कई तरीको से एक साथ व्यवस्था होना।
  11. भौल जै  जोगी हुनो , हरिद्वार रून ! अच्छाई  हमेशा अपने मौलिक रूप में रहती है।
  12. नौल गोरू नौ पू घासक ! नए कार्य पर  जोश के साथ काम करना।
  13. पिनौक पातक पाणी ! इधर की बात उधर करने वाला इंसान।
  14. घर पिनाऊ बण पिनाऊ ! हर जगह एक ही चीज सुनाई देना।
  15. नौ रत्ती तीन त्वाल ! अनुमान लगाना।
  16. राती बयाणक भाल भाल स्वैण ! आलस्य के बहाने ढूढ़ना !
  17. तात्ते खु जई मरू ! जल्दबाजी करना !
  18. कभी स्याप टयोड, कभी लाकड़ ! परिस्थितियां अनुकूल ना होना।
  19. अक्ले उमरेक कभी भेंट नई होनी ! अक्ल और उम्र की कभी मुलाकात नहीं होती। जब शरीर में ताकत रहती है तब अक्ल नहीं आती , और जब अक्ल आती है ,तब शरीर कमजोर पड़  जाता है।
  20. गुणी आपुण पुछोड  नान देखूं ! अपने दोषों को कम बताना।
  21. गऊ बल्द अमुसी दिन ठाड़ ! आलसी इंसान जब कार्य ख़त्म हो जाता है ,तब  उपलब्ध होता है।
  22. का राजेकी रानी , का भगतविकि काणी ! धरती आसमान का अंतर होना।
  23. कब होली थोरी , कब खाली खोरी ! आशावान रहना।
  24. आफी  नैक ऑफि पैक ! सब कुछ खुद ही करना।
  25. त्वेते क्या होयूं गोरखाणी राज । यहाँ कोई गोरखों का राज चल रहा क्या ? जो अपनी मनमानी करोगे। गोरखा राज में उत्तराखंड में भारी अत्याचार और मनमानी की जाती थी।

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