50 - प्रसिद्ध गढवाली ओखाण(10 - Famous Garhwali Okhan)

50 - प्रसिद्ध गढवाली ओखाण(गढ़वाली मुहावरे) अर्थ सहित(10 - Famous Garhwali Okhan))

  1. जब जेठ तापलो ,तब सौंण बरखलो - जितनी अधिक मेहनत होगी उतना अच्छा फल मिलेगा।
  2. कख गिड़की, कख बरखी -     कुछ और बोलना, कुुुछ अलग करना।
  3. बांजा बणु बरखा -   जहां ज़रूरत ना हो वहाँ काम करना।
  4. अटकी अटकी मारी फाली, कर्म पर दुई नाली - अधिक मेहनत करने के बाद भी अच्छा परिणाम न मिलना
  5. अकुला का डेरा दूँई पथा दाली, अकुला सय उठी भभरताली - छोटी मानसिकता के व्यक्तियों को यदि बड़े अधिकार दे दिए जाए तो व उन अधिकारो का ग़लत इस्तेमाल करने लगता है।
  6. अपडा पारा लेगी आग, बिराडा पारा दिली जाग - जब तक मनुष्य स्वयं कार्यशिल होता है तब तक वह अपने काम स्वयं करता है परंतु जब व वृद्ध हो जाता है तब उसे अपने कार्यों के लिए भी दूसरो पर आश्रित होना पड़ता है।
  7. तौ न तनखा, भजराम हवालदारी - बिना वेतन के बड़ा काम करना।
  8. कख नीति, कख माणा, रामसिंह पटवारी ने कहाँ - कहाँ जाणा । एक ही आदमी को ,एक समय मे अलग अलग काम देना
  9. सिंटोलों की पंचेत - अयोग्य लोगों की बैठक।
  10. बटा मागे की कुड़ी चा मा उड़ी -  आसानी से उपलब्ध चीज जल्दी समाप्त हो जाती है। 
  11. कखी गिड़की कखी बरखी - कुछ बोलना और कुछ करना.
  12. त्वेते क्या होयूं जनु गोरख्याली राज - मनमानी करना।
  13. पंच भी प्रपंची व्हेगेन - न्याय करने वाला ही बेईमान हो गया।
  14. बेसाखू और सोणु बनीगणया  पंच - अयोग्य व्यक्ति प्रतिनिधि बन गए।
  15. अपणी करणी बेतरणी तरणी - अपनी मेहनत से ही अच्छा फल मिलता है।
  16. माणा मथै गौं नी, अठार मथे दौ नी -  माणा से ऊपर गांव नहीं, और अट्ठारह से ऊपर दाव नही ।
  17. छोटा ना दे होणी खाणी, बड़ा कय ना बीचे लोण पाणी - छोटी मानसिकता के व्यक्ति ज़रा सी सफलता मिलने पर इतराने लगते है वही अच्छे व सभ्य मानसिकता के व्यक्ति अपने बड़पन्न का कभी बखान नहीं करते।
  18. जब पेट मा लगी आग, तब क्या चेन्दु साग - जब भूख लगी हो तो साधारण सा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।
  19. ना कर बाबा सत्यनारायण कथा, अपडा बेव्य बाबा ते कर लता - भले पूजा कथा ना करे परंतु मात पिता की सेवा  व देखभाल अवश्य करे।
  20. नि होण्या बरखा का बड़ा -बड़ा बूंदा - बारिश की बड़ी बड़ी बूंदे पड़ने का मतलब है ,अच्छी बारिश नही होगी।
  21. भिंडी बिरालुओं मा मुषा नि मारिंदा - जादा लोगों में काम नहीं होता है।
  22. निगोस्यूं का गोरू उज्यार जंदन -  बिना अभिभावक की संतान बिगड़ जाती है।
  23. पधाने ब्वारि की नौ तोला नाथुली - बड़े लोग बड़ी बातें।
  24. सींग पल्योण - लड़ाई के लिए तैयार होना। 
  25. तितुर खाण मन काव बताय । मन मे कुछ और मुह पर कुछ और।
  26. कोय चेली ते , सुणाय बुवारी कु। बोला बेटी को और सुनाया बहु को।
  27. च्यल हेबे सकर नाती प्यार । बेटे से ज्यादा पोता प्यारा होता है।
  28. ना सौण कम ना भदोव कम। कोई भी किसी से कम नही है। दोनों प्रतियोगी बराबर क्षमता के।
  29. नी खानी बौड़ी,चुल पन दौड़ि !  नखरे वाली बहु, सबसे ज्यादा खाती है।
  30. द्वि दिनाक पूण तिसार दिन निपटूण ! आदर सत्कार अधिक दिन तक नहीं होता।
  31. शिशुणक पात उल्ट ले लागू सुल्ट ले ! धूर्त आदमी से हर तरफ से नुकसान
  32. अघैन बामणि भैसक खीर ! संतुष्ट ना होने पर मना करने का झूठा बहाना करना
  33. जो घडी द्यो ,ऊ  घडी पाणी ! कई तरीको से एक साथ व्यवस्था होना।
  34. भौल जै  जोगी हुनो , हरिद्वार रून ! अच्छाई  हमेशा अपने मौलिक रूप में रहती है।
  35. नौल गोरू नौ पू घासक ! नए कार्य पर  जोश के साथ काम करना।
  36. पिनौक पातक पाणी ! इधर की बात उधर करने वाला इंसान।
  37. घर पिनाऊ बण पिनाऊ ! हर जगह एक ही चीज सुनाई देना।
  38. नौ रत्ती तीन त्वाल ! अनुमान लगाना।
  39. राती बयाणक भाल भाल स्वैण ! आलस्य के बहाने ढूढ़ना !
  40. तात्ते खु जई मरू ! जल्दबाजी करना !
  41. कभी स्याप टयोड, कभी लाकड़ ! परिस्थितियां अनुकूल ना होना।
  42. अक्ले उमरेक कभी भेंट नई होनी ! अक्ल और उम्र की कभी मुलाकात नहीं होती। जब शरीर में ताकत रहती है तब अक्ल नहीं आती , और जब अक्ल आती है ,तब शरीर कमजोर पड़  जाता है।
  43. गुणी आपुण पुछोड  नान देखूं ! अपने दोषों को कम बताना।
  44. गऊ बल्द अमुसी दिन ठाड़ ! आलसी इंसान जब कार्य ख़त्म हो जाता है ,तब  उपलब्ध होता है।
  45. का राजेकी रानी , का भगतविकि काणी ! धरती आसमान का अंतर होना।
  46. कब होली थोरी , कब खाली खोरी ! आशावान रहना।
  47. आफी  नैक ऑफि पैक ! सब कुछ खुद ही करना।

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