अपनी ईजा अपनी धरती #उत्तराखंड_माँगे_भू_कानून (apni ija apni dharti #uttarakhand_maange_bhu_kanoon)
पार्वती ने रचा था गणेश को
मिट्टी में श्वेद गूंद कर
वैसे ही हमें भी हमारी ईजा ने बड़ा किया
खेतों में अपनी हड्डियां, अपनी जवानी मिला कर
इन खेतों इन पहाडों में बसी है
हमारी मां की सारी दास्तां
उसकी पीड़
उसका दर्द
जो उससे गुजरा था हर रोज
इस कठोर निर्दयी पहाड़ पर
ये माटी ये धरती ही उसकी सच्ची सखी थी
जब वो किसी से कुछ न कह पाती
तो दातुली से मिट्टी पर उकेरती थी
धरती से संवाद के कुछ रेखण
वो उसी के पास रोज जा
बटोर के लाती घास
सुबह शाम नौले से पानी
मिट्टी के चूल्हे पे सेखती रोटी
और अपने घावों पर लगाती मिट्टी का लेप
सब बैठते घरों में चौके और चटायी पर
वो चौका होने पर भी बैठती
अपनी धरती अपनी सखी के पास
मां को ईजा कहोगे
तो मिट्टी को जडजा कहना ही पडेगा।
और कभी मां का दर्द जानना हो
तो आ के बैठना अपनी जडजा के पास
भविष्य में मां के न रहने पर भी
वो रहेगी
तुम कहीं भी हो
किस भी हालत में
मां की याद सताए, जी घबराए
तो चले आना
अपनी मिट्टी के पास
अपने खेतों के पास
वो जडजा है वो मां से प्यार देगी
अपना आंचल अपनी थाह देगी
वो तो थाती है
सदियों से देती आयी है और आगे भी देती रहेगी
पर क्या तुम रख सकोगे
उससे सच्ची प्रीती
उससे सच्चा प्रेम
अपने सक्षम और उसकी जरूरत न होने पर भी
गणेश को तो मां की आज्ञा सरवोपरी थी
प्राणों का मोल ही क्या था
पर क्या तुम गणेश होने की चाहत रख सकोगे
संजो के रख सकोगे
अपनी माता
अपनी मिट्टी
अपनी धरती
अपनी नदियां
अपना पहाड़।
#उत्तराखंड_माँगे_भू_कानून
#हमारी_जमीन_हमारी_ईजा
#अनुपम_समवाल
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