उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना /Geographical Structure of Uttarakhand

उत्तराखण्ड की पर्वत श्रेणियाँ और उनका भौगोलिक विभाजन

उत्तराखण्ड का भौगोलिक स्वरूप अत्यंत विविध और दिलचस्प है, जो चार प्रमुख पर्वत श्रेणियों द्वारा विभाजित होता है। इन चार पर्वत श्रेणियों के कारण राज्य का क्षेत्र चार भागों में बंटा हुआ है, जिन्हें माल (तराई-भावर), सलाण, राठ (पठार), और भोट कहा जाता है। उत्तराखण्ड का धरातल 800 फीट की ऊँचाई से लेकर 25661 फीट तक विस्तृत है। यह विविधता राज्य की समृद्ध प्राकृतिक धरोहर का हिस्सा है, जिसमें प्रमुख नदियाँ और घाटियाँ सम्मिलित हैं।

1. शिवालिक या बाह्य हिमालय श्रेणियाँ

शिवालिक पर्वत श्रेणी की औसत ऊँचाई 750 से 1200 मीटर के बीच होती है। इस क्षेत्र में लगभग 40 इंच वार्षिक वर्षा होती है और यहाँ की चट्टानी संरचना अन्य पर्वतों से भिन्न होती है। शिवालिक की ढाल दक्षिण की ओर खड़ी और उत्तर में दून घाटी की ओर सामान्य है। दून घाटियाँ औसत मैदानों से 350 मीटर ऊँची हैं। प्रमुख घाटियाँ, जैसे कि देहरादून, कोण्डीदून, और चोखम्भा पट्टी, घनी जनसंख्या और समृद्ध जलवायु के लिए प्रसिद्ध हैं। इस क्षेत्र में गंगा, यमुना, और काली नदियाँ प्रमुख नदी प्रणालियाँ हैं, जो इस क्षेत्र की खास विशेषताएँ हैं। यहाँ पर हिमोढ़ जमाव, अनेक झीलें, और नदी तापीय चबूतरे जैसे प्राकृतिक संरचनाएँ पाई जाती हैं।

2. मध्य हिमालय श्रेणियाँ

मध्य हिमालय की श्रेणियाँ 1500 से 2700 मीटर की ऊँचाई में विस्तृत हैं, और यह लगभग 75 किमी. चौड़ी हैं। यह श्रेणी दून घाटी और शिवालिक श्रेणियों से Boundary Thrust द्वारा अलग होती है। मध्य हिमालय की पहाड़ियाँ विभिन्न डांडों (पहाड़ी चोटियों) के रूप में विभाजित हैं। इन पहाड़ों की औसत ऊँचाई लगभग 6000 फीट तक है, लेकिन देववन, नागटिब्वा, मूसा का कोठा, और चीनी शिखर जैसी कुछ चोटियाँ 10,000 फीट से भी ऊँची हैं। इस श्रेणी के डांडे पर्वतों की पसलियों की तरह नदी घाटियों की ओर निकलते हैं, जो क्षेत्रीय जलवायु और जल प्रणालियों का निर्माण करते हैं। कुछ प्रमुख डांडे, जैसे मसूरी-लंधौरा, चन्द्रवदनी, घड़ियाल, सुककुंडा, मन्दरापल, हटकुणी, नागटिव्वा, धनपुर, और अमोली आदि, इस श्रेणी में आते हैं।

3. हिमाद्रि या महाहिमालय श्रेणियाँ

महाहिमालय या हिमाद्रि की ऊँचाई 2700 मीटर से अधिक होती है और यह उत्तराखण्ड के सबसे उच्चतम क्षेत्रों में आता है। यहाँ की बर्फीली चोटियाँ और बर्फीले ग्लेशियर स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करते हैं।

4. जंस्कर श्रेणियाँ

यह श्रेणी सबसे अधिक उच्चतम पर्वत श्रेणियों में से एक मानी जाती है, जो जंस्कर क्षेत्र के पास स्थित हैं। यहाँ के शिखर अत्यधिक ऊँचे और दुर्गम होते हैं, जो पर्यटकों और पर्वतारोहियों के लिए एक चुनौती हैं।



उत्तराखण्ड की पर्वत श्रेणियाँ

  प्रायः ऊँचे डांडों पर अभ्रक, संयुक्त ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं जिनके ऊपर की मिट्टी की परत उपजाऊ नहीं है फिर भी कहीं-कहीं वाजू, बुरांस, भौड़, खरसू, रागा तथा सुरई आदि के सुन्दर वन मिलते हैं. इन वनों में वृक्षों के नीचे विभिन्न प्रकार के हरे पीधे तथा झाड़ियाँ उग आती हैं, जो संसार के प्रमुख चराई क्षेत्रों में गिने जाते हैं. ऊँचे शिखरों पर प्रायः 120 इंच तक वर्षो होती है तथा छः हजार फीट तक की ऊँचाई तक 60 से 100 इंच तक वर्षा औसत होती है. ऊँचे डांडों पर शीतकाल में एक माह तक हिमपात होता है. 
                                          
  • हिमाद्रि या महाहिमालय श्रेणियोँ -     इसे सामान्यतया हो बर्गों में क्रमशः पर्वतीय सिलसिले एवं हिमाद्रि पाटियों में वर्गीकृत किया जा सकता है. हिमाद्रि पर्वत श्रेणियाँ लगभग किमी. चौड़ी हैं, जिनकी ऊँचाई 4800 से 9000 मीटर के बीच है. इनमें वंदरपूँछ (6315 मीटर), गंगोध्री (6614 मीटर), केदारनाथ (6940 मीटर), चौखम्भा (7138 मीटर) कामेट  (7756 मीटर), नंदा देवी (7816 मीटर), द्रोणागिरि (7066 मीटर), त्रिशूल (7120 मीटर), नन्दाकोट (6861 मीटर) आदि वर्फाच्छादित ऊँचे शिखर हैं. इन शिखरों को भागीरथी, अलकनन्दा एवं धवली गंगा की ड्डनुमा नदी घाटियाँ अलग करती हैं. यह भाग रवेदार चट्टानों से निर्मित तथा पर्वत ।श्रृंखला  गारनेट, क्वार्टजाइट था नीस से निर्मित है.  
    महाहिमालय श्रेणी के दक्षिणी ढालों पर 10 हजार परी की ऊँचाई तक चीड़, देवदारु, रागा, रॉसल, वाजू, बुरांस खरसू, भीडू तथा कहीं-कहीं भोजपत्र के सुन्दर वन हैं. ज्यों-ज्यों ऊँचाई वढ़ती जाती है, वृक्ष छोटे होने लगते हैं तथा 12 हजार फीट की ऊँचाई पर हिमालय की बुग्याल तथा अधिक ऊँचाई पर पयारे आरम्भ होती है जो हिमरेखा हे निकट समाप्त हो जाती है.

  • जंस्कर श्रेणियाँ-    महाहिमालय की उत्तरी ढ़ालों से आगे भारत-तिब्बत सीमांत तक जंस्कर श्रेणियाँ फैली हैं. इनकी ऊँचाई 18 सहस्र फीट से लगभग अधिक है. इन श्रेणियों से भारत और तिब्बत की अनेक नदियाँ निकली हैं. इस श्रेणी के गिरिद्वार सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व-पूर्ण रहे हैं, जिनमें जेलूखगा, माणा, नीति, चौरहोती, दमजन, शलशल, कुंगरी बिंगरी, दारमा तथा लिपुलेख उल्लेखनीय हैं.उत्तराखण्ड की मुख्य हिमानियाँ गंगोत्री, केदारनाथ, रेकन्ना, कोसा, माणा, वामनि, नंदादेवी, पिण्डार और मिलाम मुख्य हैं,



नदियाँ:- उत्तराखण्ड में गंगा, यमुना, अलकनंदा, काली गंगा तथा उनकी सहायक नदियों का जाल फैला हुआ है इन समस्त नदियों का जल अंत में गंगा में मिल जाता है. 
  • यमुना का उद्गम बन्दरपूँछ हिमालय से निकलने वाली अनेक जलधाराओं के योग से हुआ है. इसकी मुख्य सहायक नदियाँ टोंस और गिरिनदी हैं.
  • गोमुख हिमानी से भागीरथी का जन्म हुआ है जो देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है- इसकी सहायक  नदियों में जाड़गंगा और मिल्ल गंगा प्रमुख हैं.
  • अलकनंदा की मूल स्रोत सरस्वती जंस्कर श्रेणी में स्थित देवताल से निकलती है. प्रारम्भ में यह विष्णुगंगा हलाती थी. इसकी सहायक नदियों में धवलगंगा, मन्दाकिनी, पिण्डार एवं भागीरथी नदी प्रमुख हैं.
  • पश्चिमी रामगंगा दूधातौली के पठार से निकलती है. गढ़वाल तथा कुमाऊँ के दक्षिणी भागों का जल लेकर कन्नौजके पास गंगा में मिल जाती है.
  • पूर्वी गंगा नंदकोट शिखर से निकलकर दक्षिण-पूर्व की ओर बहती है. जकला और गोमती इसकी सहायक नदियाँ हैं.इनका जल लेकर यह सरयू बनती है और अंत में काली नदी में जा मिलती है.
  • गौरी गंगा जन्सकर हिमालय में ऊँटाधुरा के निकट से निकलकर ओसकोट के पास काली गंगा में मिलती है. भी उक्त केन्द्र से ही निकलकर खोला के निकट काली गंगा में मिल जाती है.
  • कुटीड्याती लड्प्या घाट के समीप जन्सकर से निकलकर दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई गव्यडि पहुँचतीहै. यहाँ इसका नेपाल से आने वाली काली नदी से संगम होता है. फिर यह काली गंगा बनकर नेपाल, पिथौरागढ़ तथा अल्मोड़ा की सीमा बनाती हुई वर्मदेव के पास भाबर में उतरती है और शारदा कहलाती है. इसकी मुख्य सहायक नदियाँ पूर्वी राम गंगा, गौरी गंगा, दरमा (पूर्वी धौली) तथा नेपाल से आने वाली काली नदी है.
  • भिलंगना :- भागीरथी की सबसे बड़ी सहायक नदी है. टिहरी नदी के पास गणेश प्रयाग में इन दोनों नदियों का संगम होता है. यहीं पर भारत सरकार के सहयोग से प्रसिद्ध टिहरी बाँध का निर्माण हो रहा है. भिलंगना का उद्गम स्थल 16,790 फीट की ऊँचाई पर स्थित सहस्त्र ताल है.
    इन नदियों का उत्तराखण्ड के इतिहास में अत्यधिक महत्व रहा है. इस प्रदेश के सभी प्रमुख नगर इन्हीं नदियों के किनारों पर बसे हैं. आर्थिक दृष्टि से इन नदियों की उपत्काएँ निवास और कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है.व्यापार और धार्मिक जीवन को भी इन नदियों ने बहुत प्रभावित किया है.
    भाबर प्रदेश-    गंगा और शिवालिक श्रेणी के मध्य जो पाँच मील से लेकर पन्द्रह मील तक की सँकरी पट्टी है उसे भाबर या माल प्रदेश कहा जाता है. जलवायु या उपज की दृष्टि से इन घाटियों को इसी प्रदेश के अन्तर्गत रख सकते हैं. इस प्रदेश का निर्माण रेत, बजरी, कौगलामरेट और गोलमटोल पत्थरों की सतह से हुआ है, जिसके ऊपर मिट्टी की हल्की परत मिलती है. भाबर प्रदेश के बहुत बड़े भाग पर वन फैले है। हुए हैं, परन्तु जहाँ सिंचाई की सुविधा है प्रायः वहाँ गंगा के मैदानों की तरह कृषि होती है. 
      पहाड़ प्रदेश-    इस प्रदेश का अधिकांश धरातल 1500 फीट से लेकर 7500 फीट तक ऊँचा है. इस प्रदेश को अध्ययन की दृष्टि तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-
        1. गड्डिया (1500-2500 फीट ऊँचाई तक),
        2. सलाण (2500-5000 फीट ऊँचाई तक),
        3. राठ (5000-7500 फीट ऊँचाई तक).
              इन पहाड़ प्रदेशों का रास्ता बड़ा दुर्गम है. सारे प्रदेश अनेक टेढ़े मेढ़े डांडे हैं जिन्हें बीच-बीच में अनेक नदियों नेकाटकर रोलियाँ बना डाली हैं. सलाण गड़्डियों और राठ प्रदेश का मध्य भाग है. इसमें दोनों प्रदेशों की विशेषता विद्यमान है, परन्तु जलवायु की दृष्टि से पठार प्रदेश उल्लेखनीय है, इसी भाग में उत्तराखण्ड के प्रमुख नगर बसे हैं. यहाँ पर लोहा, ताँबा, जिप्सम, बिजौत्रा, अभ्रक, गंधक तथा ग्रेफाइट इत्यादि खनिज पदार्थ भी प्राप्त होते हैं. इस प्रदेश का मुख्य व्यवसाय सदैव से कृषि रहा है.
                भोटान्तिक प्रदेश-     पठार प्रदेश की उत्तरी सीमा पर गगन- चुम्बी पर्वत श्रेणियों का स्थल भोटान्तिक प्रदेश कहलाता है. इसकी उत्तरी ढालों का धरातल सदैव हिम से ढका रहता है. महाहिमालय की दक्षिणी ढालों से आगे उत्तर की ओर तिब्बत और रामपुर-बुशहर के सीमांत तक भोटांतिक प्रदेश फैला है. यहाँ पर केवल छोटी-छोटी छः घाटियों में मानव रहता आया है, परन्तु शीतकाल से पहले ही इन घाटियों को छोड़कर आना पड़ता है.
                उत्तराखंड को कितने भागों में बांटा गया है?
                उत्तराखंड के इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है? स्कन्द पुराण में उत्तराखंड को दो भागों में बाँटा गया है जिसमें से एक भाग केदारखंड ( वर्तमान गढ़वाल) और दूसरा भाग मानसखंड (वर्तमान कुमाऊँ) के रूप में उल्लेखित है ।


                उत्तराखण्ड की पर्वत श्रेणियाँ और उनका भौगोलिक विभाजन:

                1. उत्तराखण्ड की पर्वत श्रेणियाँ क्या हैं?

                उत्तराखण्ड की पर्वत श्रेणियाँ चार प्रमुख भागों में बंटी हुई हैं:

                • शिवालिक (बाह्य हिमालय)
                • मध्य हिमालय
                • हिमाद्रि (महाहिमालय)
                • जंस्कर श्रेणियाँ

                2. शिवालिक पर्वत श्रेणी की औसत ऊँचाई कितनी होती है?

                शिवालिक पर्वत श्रेणी की औसत ऊँचाई 750 से 1200 मीटर तक होती है।

                3. मध्य हिमालय की ऊँचाई कितनी होती है?

                मध्य हिमालय की श्रेणियाँ 1500 से 2700 मीटर की ऊँचाई में फैली हुई हैं।

                4. हिमाद्रि (महाहिमालय) की ऊँचाई कितनी होती है?

                हिमाद्रि पर्वत श्रेणियाँ 2700 मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित हैं, और यह उत्तराखण्ड के सबसे उच्चतम क्षेत्रों में आती हैं।

                5. जंस्कर श्रेणी की विशेषताएँ क्या हैं?

                जंस्कर श्रेणी महाहिमालय की उत्तरी ढालों से आगे भारत-तिब्बत सीमांत तक फैली हुई है, और इसकी ऊँचाई 18000 फीट से अधिक है। यह पर्वत क्षेत्र दुर्गम और ऊँचा है, जो पर्वतारोहियों के लिए चुनौतीपूर्ण है।

                6. उत्तराखण्ड में प्रमुख नदियाँ कौन सी हैं?

                उत्तराखण्ड में प्रमुख नदियाँ हैं:

                • गंगा
                • यमुना
                • अलकनंदा
                • भागीरथी
                • काली गंगा

                7. गंगा नदी का उद्गम स्थल कहां है?

                गंगा नदी का उद्गम स्थल गोमुख हिमानी है, जो केदारनाथ क्षेत्र में स्थित है।

                8. यमुना नदी का उद्गम स्थल कहां है?

                यमुना नदी का उद्गम स्थल बन्दरपूँछ हिमालय है।

                9. अलकनंदा नदी का स्रोत कहां से है?

                अलकनंदा नदी का स्रोत देवताल (जंस्कर श्रेणी) से है।

                10. जंस्कर पर्वत श्रेणी के प्रमुख गिरिद्वार कौन से हैं?

                जंस्कर पर्वत श्रेणी में महत्वपूर्ण गिरिद्वार हैं:

                • जेलूखगा
                • माणा
                • नीति
                • चौरहोती
                • दमजन

                11. उत्तराखण्ड के भाबर प्रदेश की विशेषताएँ क्या हैं?

                भाबर प्रदेश गंगा और शिवालिक श्रेणी के मध्य स्थित एक संकरी पट्टी है, जिसमें रेत, बजरी, और गोलमटोल पत्थरों की सतह मिलती है। यहाँ कृषि की संभावना भी अधिक है, और बड़े क्षेत्र पर वनस्पति फैली हुई है।

                12. उत्तराखण्ड का "पहाड़ प्रदेश" कैसे वर्गीकृत है?

                पहाड़ प्रदेश को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

                • गड्डिया (1500-2500 फीट ऊँचाई तक)
                • सलाण (2500-5000 फीट ऊँचाई तक)
                • राठ (5000-7500 फीट ऊँचाई तक)

                13. उत्तराखण्ड के मुख्य खनिज पदार्थ कौन से हैं?

                उत्तराखण्ड के पहाड़ों में खनिज पदार्थों में लोहा, ताँबा, जिप्सम, बिजौत्रा, अभ्रक, गंधक, और ग्रेफाइट प्रमुख हैं।

                14. उत्तराखण्ड के प्रमुख नगरों का जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है?

                उत्तराखण्ड के प्रमुख नगरों की जलवायु और अर्थव्यवस्था इन नदियों और उनके जलाशयों पर निर्भर करती है, जो खेती और व्यापार के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।

                15. भोटान्तिक प्रदेश की विशेषताएँ क्या हैं?

                भोटान्तिक प्रदेश की विशेषता यह है कि यह महाहिमालय की उत्तरी ढालों से आगे तिब्बत और रामपुर-बुशहर के सीमांत तक फैला हुआ है, जहाँ केवल छोटी-छोटी घाटियाँ मानव बस्ती के लिए उपयुक्त हैं।


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