उत्तराखंड की प्रमुख फसलें | Major Crops of Uttarakhand

उत्तराखंड की प्रमुख फसलें | Major Crops of Uttarakhand


उत्तराखंड में फसलोंत्पादन (Crop Production in Uttarakhand)
उत्तराखण्ड में कुल 56.70 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में से फसलीय क्षेत्र 7.66 लाख हेक्टेयर है। जिसका 56.8 प्रतिशत पर्वतीय तथा 43.2 प्रतिशत मैदानी क्षेत्रों में है। उत्तराखण्ड में सर्वाधिक कृषि क्षेत्र वाला जनपद ऊधम सिंह नगर(53.83 प्रतिशत) है। और उत्तराखण्ड में सबसे कम कृषि क्षेत्र वाला जनपद उत्तरकाशी(3.79 प्रतिशत) है। सर्वाधिक फसल सघनता वाला जिला पिथौरागढ़(181.70 प्रतिशत) है। सबसे कम फसल सघनता वाला जिला हरिद्वार(144.39 प्रतिशत)है। राज्य में रबी एवं खरीफ की खेती अधिक और जायद की खेती अपेक्षाकृत कम की जाती है। राज्य में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर गेहूं की खेती की जाती है।

उत्तराखण्ड के फसल

रबी की फसल(Rabi Crops)

यह शीत ऋतु में की फसल है।
इसे अक्टूबर नवंबर में बोया जाता है व अप्रैल मई में काट लिया जाता है।
उदाहरण- अन्न - गेहूं, जौ
तिलहन - सरसों
दलहन - मटर, चना, मसूर
नगदी - गन्ना, बटसीम 

खरीफ की फसल(Kharif Crops)

यह मानसून काल की फसल होती है।
इसे जून-जुलाई में बोया जाता है और सितम्बर-अक्टूबर में काटा जाता है।
अन्न- धान, ज्वार, बाजरा, मक्का
दलहन- मूंग, उड़द, सोयाबीन, लोबिया, अरहर
तिलहन – सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल
नगदी - कपास, तंबाकू
पर्वतीय क्षेत्रों की सर्वाधिक फसलें खरीफ की फसलें होती हैं, जिनमें राजमा कोदो, मडुआ, झंगोरा, मक्का, बाजरा, उड़द, तिल आदि हैं।
खरीफ की फसल में मिश्रित खेती भी की जाती है।
मुख्य फसलों के साथ-साथ मकई, तिल, मूली, लौकी, करेला आदि की भी खेती की जाती है।

जायद की फसल(Zayed Crops)

यह फसल मार्च अप्रैल में बोई जाती हैं
इन फसलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएं सहन करने की क्षमता होती है।
तराई-भावर, दून घाटी के अतिरिक्त सिंचित क्षेत्रों में जायद की फसलों की खेती की जाती है। 
इसमें तरबूज, खरबूज, ककड़ी, मूंग, उड़द आदि फसलें उगाई जाती है।

उत्तराखण्ड की प्रमुख फसलें(Major crops of Uttarakhand)

गेहूं(Wheat)

  • गेहूं राज्य की प्रमुख फसल है।
  • गेहूं ग्रेमिनी कुल का पौधा है।
  • गेहूं के उत्पादन में भी भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल गेहूं है।
  • विश्व में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर गेहूं बोया जाता है।
  • भारत विश्व में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर गेहूं बोने वाला देश है।
  • चावल की अपेक्षा गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक है।
  • गेहूं के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएं हैं।
  • 50 सेमी से 75 सेमी तक वर्षा होती है।
  • तापमान आरंभ में - 10 डिग्री से 15 डिग्री
  • बाद में तापमान - 20 डिग्री से 25 डिग्री
  • गेहूं का सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा हैं।
  • गेहूं के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • उत्तराखण्ड की कुल कृषि भूमि के लगभग 33 प्रतिशत भाग पर गेहूं बोया जाता है।
  • कुमाऊँ मण्डल में गढ़वाल मण्डल की अपेक्षा अधिक क्षेत्र पर गेहूं बोया जाता है।
  • राज्य में गेहूं उत्पादित प्रमुख जिले - देहरादून, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, पौढ़ी, नैनीताल है।
चावल(Rice)
  • यह राज्य की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
  • ये ग्रेमिनी कुल का पौधा है।
  • चावल भारत की सबसे प्रमुख खाद्य फसल है।
  • विश्व में चावल के अन्तर्गत आने वाला सर्वाधिक क्षेत्रफल भारत में है।
  • भारत चीन के बाद चावल उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
  • कृष्णा व गोदावरी डेल्टा क्षेत्र को भारत के चावल के कटोरे के नाम से भी जाना जाता है।
  • चावल के लिए भौगोलिक दशाएं चिकनी उपजाऊ मिट्टी, गर्म जलवायु, 75-200 सेमी तक वर्षा एवं प्रारंभ में तापमान 20 डिग्री व बाद में 27 डिग्री होना चाहिए।
  • भारत में चावत की तीन फसलें अमन (शीतकालीन), औस (शरद् कालीन) तथा बोरो (ग्रीष्मकालीन) पैदा की जाती है।
  • देश में सर्वाधिक अमन प्रजाति का चावल उत्पादित किया जाता है।
  • चावल के लिए चिकनी उपजाऊ या मटियार दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • चावल राज्य की कुल कृषि भूमि के लगभग 21.6 प्रतिशत भाग पर उगाया जाता है।
  • राज्य के प्रमुख चावत उत्पादक जिले - देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, टिहरी, पौढ़ी, बागेश्वर आदि है।

गन्ना(Sugarcane)

  • गन्ना राज्य का की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है।
  • यह ग्रेमिनी कुल का पौधा है।
  • गन्ना उष्णकटिबंधीय फसल है।
  • भारत में सर्वाधित सिंचित फसल गन्ना है।
  • भारत गन्ना एवं चीनी के उत्पादन में ब्राजील के बाद विश्व में दूसरा स्थान रखता है।
  • देश में सर्वाधिक गन्ना और चीनी उत्पादन महाराष्ट्र में होता है।
  • विश्व में सर्वाधिक गन्ना उत्पादकता यूएसए के हवाई द्वीप क्यूबा में है।
  • भारतीय चीनी तकनीकी संस्थान कानपुर में है।
  • भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ में है।
  • केन्द्रीय गन्ना अनुसंधान संस्थान कोयम्बटूर में है।
  • भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान कोयम्बटूर में है।
  • गन्ने के लिए चिकनी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • उत्तराखण्ड के कुल कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग 6.00 प्रतिशत भाग पर गन्ने की खेती की जाती है।
  • राज्य के गन्ना उत्पादक प्रमुख जिले - हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर, देहरादून में है।
  • सर्वाधिक गन्ना उत्पादक ऊधम सिंह नगर जिला है।
जौ(Barley)
  • गढ़वाल मण्डल में जौ की खेती ज्यादा की जाती है।
  • राज्य के पौढ़ी, टिहरी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, देहरादून, चमोली, नैनीताल, उत्तरकाशी जिलों में जौ की खेती की जाती है।
मक्का(Maize)
  • राज्य के प्रमुख मक्का उत्तपादक जिले - देहरादून, नैनीताल, रूद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पौढ़ी गढ़वाल है।
मंडुआ(Mandua)
  • इसे कोदा या रागी के नाम से जाना जाता है।
  • राज्य के पर्वतीय भागों में मंडुआ की खेती की जाती है।
  • राज्य के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल, बागेश्वर आदि प्रमुख मंडुआ उत्पादक जिले हैं।
  • मंडुआ अधिकतर जापान को निर्यात किया जाता है।

सरसों(Mustard)

  • राज्य के ऊ सि न, हरिद्वार, देहरादून, पौढ़ी और नैनीताल आदि जिलों में सरसों की खेती की जाती है।

दालें(Pulses)

  • राज्य में कलौं, गुरूस, कहत, मास, भट्ट, राजमा, मसूर, चना, उर्द, मटर, सोयाबीन आदि दालों की खेती की जाती है।
  • राज्य के कुल दाल उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत भाग कुमाऊँ के ऊ सि न, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ आदि जिलों में उत्पादित किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त हरिद्वार, पौढ़ी, देहरादून, चमोली आदि जिलों में भी दालों की खेती की जाती है।

सब्जी एवं मसाले(Vegetables and Spices)

  • राज्य की प्रमुख सब्जी आलू है। राज्य में आलू सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित किया जाता है।
  • अल्मोड़ा के किशन चन्द्र जोशी ने विश्व का सबसे ऊँचा मिर्च का पौधा उगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया है।
  • राज्य में मसालों के अन्तर्गत प्रथम स्थान पर अदरक, द्वितीय में हल्दी व तृतीय स्थान पर लहसुन का उत्पादन किया जाता है।
  • सूरजमुखी, भंगजीरा, जिल, झंगोरा, मंडुआ खरीफ की फसलें हैं।
  • सितम्बर 2018 में राज्य विधानसभा ने गाय को राष्ट्र माता का दर्जा दिया है।

उत्तराखण्ड की बागवानी फसलें(Horticulture Crops of Uttarakhand)

राज्य में 1869 से फसलोत्पादन की व्यावसायिक शुरूआत हुई थी। इस क्षेत्र में प्रथम कदम के रूप में 1860 में चौबटिया में उद्यान की स्थापना की गई थी। 1932 में चौबटिया, रानीखेत में पर्वतीय फल शोध केन्द्र की स्थापना की गई थी। पर्वतीय राज्यामें जम्मू तथा हिमालय के बाद उत्तराखण्ड का शीर्ष स्थान आता है। चौबटिया को फलोद्यान का स्वर्ग नाम से भी जाना जाता है। भवाली को पर्वतीय बाजार के रूप में जाना जाता है। राज्य में प्रथम स्थान पर फलों के अन्तर्गत नाशपति, द्वितीय पर आडू, तीसरे पर सेब का उत्पादन किया जाता है। अन्य फलों में लीची, सेब, संतरा, नीबू, अखरोट, अमरूद, पुलम, आलूबुखारा आदि फलों का उत्पादन किया जाता है।

बागवानी उत्पादों हेतु राज्य के थोक बाजार उपलब्ध हैं - हरिद्वार, हल्द्वानी में है।

लीची(Lychee)

  • देहरादून में सर्वाधिक लीची का उत्पादन किया जाता है। इसी कारण देहरादून को भारत सरकार ने लीची निर्यात जोन घोषित किया हुआ है।
  • देहरादून को लीची नगर के नाम से जाना जाता है।
  • इसके अतिरिक्त नैनीताल, ऊ सि न, पिथौरागढ़, पौढ़ी में लीची का उत्पादन किया जाता है।

सेब(Apple)

  • हरिद्वार और ऊ सि न को छोड़कर शेष सभी जिलों में सेब उत्पादन किया जाता है।
  • राज्य में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर सेब के बाग उत्तरकाशी में हैं, फिर क्रमशः नैनीताल, देहरादून, चमोली, टिहरी, पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा में हैं।
  • राज्य में उत्पादित सेब को दिल्ली में न्यूजीलैण्ड ब्राण्ड नाम से जबकि अन्य राज्यों में हिमाचली सेब कहकर बेचा जाता है।

संतरा और नीबू(Oranges and Limes)

  • ये दोनों ही एक ही वंश के पौधे हैं।
  • राज्य के नैनीताल, अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार आदि जिलों में इसकी खेती की जाती है।
  • यहां पर देशी नागपुरी, एम्पदर तथा लड्डू किस्म किस्म का संतरा पैदा किया जाता है।

नाशपति(Pear)

  • नाशपति राज्य में अल्मोड़ा, बागेश्वर, पौढ़ी, हरिद्वार, देहरादून, चमोली आदि जिलों में उत्पादित की जाती है।
  • राज्य के पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी, पौढ़ी आदि जिलों में अखरोट का उत्पादन किया जाता है।

औषधीय एवं अन्य फसलें(Medicinal And Other Crops)

  • प्रदेश में 1972 से जड़ी-बूटियों के संग्रहण का कार्य सहकारिता विभाग के जडत्री-बूटी विकास योजना के तहत शुरू किया गया था।
  • ऐतिहासिक रूप से गढ़वाल एवं कुमाऊँ के पंवार एवं चन्द राजाओं के समय में विभिन्न वैद्य कुड़ियों के होने के साक्ष्य मौजूद हैं।
  • 1980 में जनपदवार जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए भेषज सहकारी संघों की स्थापना की गई थी।
  • राज्य में औषधीय पदार्थों का संग्रहण वन प्रबन्धन अधिनियम 1982 के तहत किया जाता है, जिसके तहत 114 जड़ी-बूटियों को प्रतिबन्धित किया गया है।
  • राज्य में कई औषधीय पौधों जैसे- बैलाडोना, कुटकी, अफीम, मिंट, गंदा, पामारोजा, तुलसी, पाइरेथम, गेंदा, डेमस्क, गुलाब, लेमन ग्रास, चाय, जेटरोफा आदि की खेती की जाती है।

राज्य में जड़ी-बूटियों के संरक्षण के लिए निम्न संस्थान स्थापित किए गए हैं -

  • इण्डियन ड्रग्स एण्ड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, ऋषिकेश (अप्रैल, 1961)
  • इण्डियन मेडिसन फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, मोहना (अल्मोड़ा)
  • इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद फॉर ड्रग रिसर्च, ताड़ीखेत (1964)
नोट : इसके अधीन रानीखेत एवं चम्बा में दो हर्बल गार्डन हैं। इसी संस्थान के अधीन महरूड़ी कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र भी है, जिसकी स्थापना 1977 में की गई थी।
  • को-ऑपरेटिव ड्रग फैक्ट्री कुमाऊँ मण्डल विकास निगम रानीखेत में है।
  • गढ़वाल मण्डल विकास निगम पौढ़ी में है 
  • उच्चस्थलीय पौध शोध संस्थान श्रीनगर (1979) में है 
  • जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान गोपेश्वर (1989) में है 
  • औषधीय एवं सुगंधित पौध संस्थान (सीमैप) (1959) की गयी थी 
नोट : देश में इसके पन्तनगर, पुरारा (बागेश्वर), बैंगलोर तथा हैदराबाद में चार शोध केन्द्र हैं।
  • वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून (1906)
  • जी बीप न्त हिमालय पर्यावरणीय एवं विकास संस्थान, कोसी कटारमल (1988-89)
  • जड़ी-बूटी विपणन को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से ऋषिकेश, टनकपुर एवं रामनगर में जड़ी-बूटी मंडियों की स्थापना की गई है।

बैलाडोना(Belladonna)

  • गिल ने इसकी खेती 1910/1903 से ही शुरू कर दी थी।
  • गिल ने कुमाऊँ में बोन हेतु जैटोपा बैलाडोना का बीज विदेशों से मंगा कर नैनीताल तथा चाबटिया में बोया था।
  • सन् 1944 में रानीखेत में पायरेथम के फूलों की खेती शुरू की गई। इसके फूलों से मलेरिया के मच्छर मारने की दवा बनती थी।
  • सन् 1924 में गिल की मृत्यु के बाद चौबटिया उद्यान संकटों से घिर गया। कुछ साल बाद सरकार ने उद्यान मुमताज हुसैन को पट्टे पर दे दिया था।

जिरेनियम(Geranium)

  • जिरेनियम अफ्रीकी मूल का एक शाकीय सुगन्ध युक्त पौधा है।
  • इसका वानस्पतिक नाम पेलरगोनियन ग्रेवियोलेन्स है।
  • इसे गुलाब की सुगन्ध युक्त जिरेनियम भी कहा जाता है।
  • इसका मुख्य उत्पाद सुगन्धित तेल है, जो इसकी पत्तियों से निकाला जाता है।
  • इत्र एवं सौन्दर्य प्रशाधन उद्योग की मांग पूर्ति हेतु जिरेनियम के तेल का आयात किया जाता है।

चाय(Tea)

  • राज्य में मध्य हिमालय और शिवालिक पहाड़ियों के मध्य स्थित पर्वतीय ढालों पर चाय पैदा की जाती है।
  • चाय की खेती के लिए अर्द्ध एवं उष्ण जलवायु और 200-250 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • राज्य में चाय, के बाग अल्मोड़ा, पौढ़ी गढ़वाल, नैनीताल, चमोली, पिथौरागढ़, देहरादून आदि सात पर्वतीय जिलों के 18 ब्लॉकों में एक हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले हैं।
  • सन् 1824 में ब्रिटिश लेखक बिशप हेबर ने कुमाऊँ में चाय की संभावना व्यक्त करते हुए कहा है कि कुमाऊँ की धरती पर चाय के पोधे जंगली रूप में उगते हैं परन्तु कार्य में नहीं लाए जाते हैं।
  • हेबर ने अपनी पत्रिका में लिखा था कि कुमाऊँ की मिट्टी का तापमान तथा अन्य मौसमी दशाएं चीन के प्रचलित चाय के बगानों से काफी मेल रखती हैं।
  • बैंटिक ने सन् 1834 में कॉल्हने के नेतृत्व में एक एक चाय कमेटी का गठन किया जिसका मुख्य कार्य चाय के पौधे प्राप्त करना व बागान लगाने हेतु योग्य भूमि ढूंढना था।
  • अंग्रेजों ने 1834 में यहां चाय के बागान के विकास हेतु चीन से चाय का बीज मंगवाया था।
  • सन् 1834 में झरीपानी (देहरादून) को चाय प्रशिक्षण हेतु सबसे उपयुक्त पाया गया था।
  • सन् 1835 में कलकत्ता से दो हजार पौधों की पहली खेप कुमाऊँ पहुंची जिसमें अल्मोड़ा के पास लक्ष्मेश्वर और भीमताल के पास भरतपुर में चाय की पौधशालाएं स्थापित की गई थी।
  • अल्मोड़ा के लक्ष्मेश्वर में सबसे पहले डॉ० फाल्कनर ने 1835 बगीचा बनाया था।
  • नोट- उत्तराखंड में व्यावसायिक स्तर पर चाय की खेती 1835 में डा रायले ने शुरू की थी।
  • सन् 1835 में कोठ (टिहरी गढ़वाल) में भी चाय की खेती प्रारम्भ की गई थी।
  • यहां की चाय की समानता चीन से आयातित की जाने वाली उलांग चाय से की गई थी।
  • सन् 1838 में फॉरच्यून नामक अंग्रेज अधिकारी को चाय क बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए चीन भेजा गया था।
  • सन् 1841 में हवालबाग में मेजर कॉर्बेट ने बगीचा बनाया जिसको लाला अमरनाथ साह ने खरीदा था।
  • सन् 1843 में कैप्टन हडलस्टन ने पौड़ी व गडोलिया में चाय बागानों की स्थापना की थी।
  • सन् 1844 में देहरादून के पास कौलागीर मं सरकारी बागान की शुरूआत डॉ० जेमिसन के निर्देशन में हुई थी।
  • सन् 1850 में राम जी साहिब ने कत्यूर में बगीचा बनाया जिसे श्री नार्मन टूप ने खरीदा थी।
  • सन् 1850 में ईस्ट इण्डिया कंपनी के आमंत्रण पर एसाई वांग नामक एक चीनी चाय विशेषज्ञ भी गढ़वाल आए थे।
  • आगे चलकर अंग्रेजों द्वारा यहां के अनेक क्षेत्रों जैसे वज्यूला, डूमलोट, ग्वालदम, बेड़ीनाग, चौकड़ी आदि में चाय बगीचे लगाए गए। इन बगीचों में कौसानी, बेड़ीनाग व लोध से चाय का खूब व्यापार हुआ था।
  • पौड़ी नगर के निकट गडोली में चौफिन नामक एक चीनी काश्तकार द्वारा सरकारी चाय फैक्ट्री की स्थापना (1907) में की गई थी।

FQCs (Frequently Asked Questions) 


1. उत्तराखंड की प्रमुख फसलें कौन सी हैं?

उत्तराखंड की प्रमुख फसलें गेहूं, चावल, गन्ना, जौ, मक्का, मंडुआ (कोदा), सरसों, दालें (राजमा, मसूर, चना, मटर) और विभिन्न सब्जियां हैं।

2. उत्तराखंड में गेहूं की खेती कहाँ सबसे अधिक होती है?

उत्तराखंड में गेहूं की खेती मुख्य रूप से देहरादून, ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, पौढ़ी और नैनीताल जिलों में होती है।

3. उत्तराखंड में चावल की खेती कहाँ होती है?

उत्तराखंड में चावल की खेती देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल, टिहरी, पौढ़ी और बागेश्वर जिलों में होती है।

4. उत्तराखंड में सबसे अधिक किस फसल की खेती की जाती है?

उत्तराखंड में सबसे अधिक गेहूं की खेती की जाती है, जो राज्य की प्रमुख फसल है।

5. उत्तराखंड में गन्ना किस जिले में सबसे ज्यादा उगाया जाता है?

गन्ना सबसे अधिक ऊधम सिंह नगर जिले में उगाया जाता है।

6. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कौन सी फसलें उगाई जाती हैं?

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में राजमा, कोदो, मडुआ, झंगोरा, मक्का, बाजरा, उड़द, तिल आदि की खेती की जाती है।

7. उत्तराखंड की प्रमुख बागवानी फसलें कौन सी हैं?

उत्तराखंड में प्रमुख बागवानी फसलें नाशपाती, आडू, सेब, लीची, संतरा, नींबू, अखरोट और अमरूद हैं।

8. उत्तराखंड में गेहूं के लिए उपयुक्त भौगोलिक स्थिति क्या है?

गेहूं के लिए उत्तराखंड में 50 सेमी से 75 सेमी वर्षा, तापमान 10°C से 25°C और दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है।

9. राज्य में मंडुआ की खेती कहाँ होती है?

मंडुआ की खेती उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों जैसे अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल और बागेश्वर जिलों में होती है।

10. उत्तराखंड में जौ की खेती कहाँ होती है?

जौ की खेती मुख्य रूप से गढ़वाल मण्डल के जिलों जैसे पौढ़ी, टिहरी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और चमोली में होती है।

11. उत्तराखंड में सरसों की खेती कहाँ होती है?

सरसों की खेती मुख्य रूप से ऊधम सिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, पौढ़ी और नैनीताल जिलों में होती है।

12. उत्तराखंड में सबसे अधिक किस प्रकार की दालें उगाई जाती हैं?

उत्तराखंड में सबसे अधिक राजमा, मटर, चना, मसूर, उर्द, सोयाबीन और भट्ट जैसी दालों की खेती होती है।

13. उत्तराखंड में सब्जियों में सबसे ज्यादा कौन सी फसल उगाई जाती है?

उत्तराखंड में सबसे अधिक आलू की खेती की जाती है, जो राज्य की प्रमुख सब्जी है।

14. उत्तराखंड में बागवानी के लिए प्रमुख बाजार कौन से हैं?

उत्तराखंड में बागवानी के प्रमुख थोक बाजार हरिद्वार और हल्द्वानी हैं।

15. उत्तराखंड में लीची की खेती कहाँ होती है?

लीची की खेती देहरादून में सबसे अधिक होती है। इसे लीची नगर के नाम से भी जाना जाता है।

16. उत्तराखंड में सेब की खेती कहाँ होती है?

उत्तराखंड में सेब की खेती मुख्य रूप से उत्तरकाशी, नैनीताल, देहरादून, चमोली, टिहरी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों में होती है।

17. उत्तराखंड में मक्का की खेती किस जिले में होती है?

उत्तराखंड के प्रमुख मक्का उत्पादक जिले देहरादून, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और पौढ़ी गढ़वाल हैं।

18. उत्तराखंड में उगाई जाने वाली प्रमुख मसाले कौन सी हैं?

उत्तराखंड में अदरक, हल्दी और लहसुन प्रमुख मसाले उगाए जाते हैं।

19. उत्तराखंड में राजमा की खेती कहाँ होती है?

उत्तराखंड में राजमा की खेती मुख्य रूप से कुमाऊं मण्डल के जिलों जैसे ऊधम सिंह नगर, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ में होती है।

20. उत्तराखंड में तिल की खेती कहाँ होती है?

उत्तराखंड में तिल की खेती पर्वतीय क्षेत्रों में की जाती है, विशेष रूप से पिथौरागढ़, बागेश्वर और नैनीताल जिलों में।

_______________________________________________________________________________
  1. उत्तराखण्ड के प्रमुख लोकनृत्य ] [2 -  Uttarakhand ke Pramukh Loknrityan ]
  2. उत्तराखण्ड के प्रमुख त्यौहार ] [ उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला ] [ फूलदेई त्यौहार]
  3. उत्तराखण्ड में सिंचाई और नहर परियोजनाऐं ]
  4. उत्तराखंड की प्रमुख फसलें ]
  5. उत्तराखण्ड की मृदा और कृषि ]
  6. उत्तराखण्ड में उद्यान विकास का इतिहास ]
  7. उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल ] [ 2 उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल ]
  8. उत्तराखंड में वनों के प्रकार ]
  9. उत्तराखंड के सभी वन्य जीव अभ्यारण्य ]
  10. उत्तराखंड की प्रमुख वनौषिधियां या जड़ी -बूटियां ]
  11. उत्तराखंड के सभी राष्ट्रीय उद्यान 
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Most Popular

केदारनाथ स्टेटस हिंदी में 2 लाइन(kedarnath status in hindi 2 line) something
जी रया जागी रया लिखित में , | हरेला पर्व की शुभकामनायें  (Ji Raya Jagi Raya in writing, | Happy Harela Festival )
हिमाचल प्रदेश पर शायरी स्टेटस कोट्स इन हिंदी(Shayari Status Quotes on Himachal Pradesh in Hindi)
 हिमाचल प्रदेश की वादियां शायरी 2 Line( Himachal Pradesh Ki Vadiyan Shayari )
महाकाल महादेव शिव शायरी दो लाइन स्टेटस इन हिंदी (Mahadev Status | Mahakal Status)
हिमाचल प्रदेश पर शायरी (Shayari on Himachal Pradesh )
गढ़वाली लोक साहित्य का इतिहास एवं स्वरूप (History and nature of Garhwali folk literature)
श्री बद्रीनाथ स्तुति (Shri Badrinath Stuti) Badrinath Quotes in Sanskrit
150+ उत्तराखंड सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर हिंदी में | Gk in Hindi - 150 +  Uttarakhand GK Question Answers in Hindi | Gk in hindi
Pahadi A Cappella 2 || Gothar Da Bakam Bham || गोठरदा बकम भम || MGV DIGITAL