गढ़वाली कहावतों या औखाणों की रोचक
थोड़ा सोचने के बाद दोनों ने अपनी भाषा की मिठास की बात कही, यह भी बताया कि कैसे अलग-अलग जिलों में भाषा में इतना बदलाव आ जाता है कि किसी व्यक्ति के गढ़वाली बोलने के तरीके से पता चल जाता है कि वह कहाँ से है। इस तरह के कुछ और विचार साझा करने के बाद उन्होने गढ़वाली औखाणों को भी अपनी भाषा की विशेषता बताया। गढ़वाली शब्द औखाणे को हिन्दी में कहावत या मुहावरे कहा जा सकता है, और पिछली पीढ़ी के बुज़ुर्गों की भाषा में इनका इस्तेमाल काफी आम रहा है। अपने विचार की अहमियत को समझाने के लिए औखाणों का प्रयोग ये लोग काफी सहजता से कर लेते हैं जो युवाओं की भाषा में कम ही देखने को मिलता है।
मेरी माँ अपनी गढ़वाली में अक्सर कहा करती हैं, “बुढ्यों की अकल, अर औंला कु स्वाद” इसका अर्थ है कि बुज़ुर्गों का दिया ज्ञान और आंवले के स्वाद का पता कुछ समय के बाद समझ आता है। इस तरह के कई औखाणे या मुहावरे वो अपने रोज़ाना के जीवन में इस्तेमाल करती हैं। माँ-पिताजी से बात करके ऐसे ही कुछ गढ़वाली मुहावरों या औखाणों को संकलित करने का प्रयास मैंने इस लेख में किया है-
- ।। जन्मपत्री सबून बांची, कर्म नी बांची केन ।।
(जन्मपत्री तो हम पढ़ सकते है परंतु ईश्वर द्वारा क़िस्मत में क्या लिखा है ये कोई नहीं पढ़ पाया।)
- ।। अटकी अटकी मारी फाली, कर्म पर दुई नाली ।।
(कई बार अत्यंत कठिन परिश्रम करने के पश्चात भी हमें उतना ही प्राप्त होता है जितना भाग्य में लिखा होता है।)
- ।। जब पेट मा लगी आग, तब क्या चेन्दु साग ।।
(जब भूख लगी हो तो साधारण सा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।)
- ।। ना कर बाबा कथा, अपडा बेव्य बाबा ते कर लता।।
(भले पूजा कथा ना करे परंतु मात पिता की सेवा व देखभाल अवश्य करे।)
- ।। अकुला का डेरा दूँई पथा दाली, अकुला सय उठी भभरताली ।।
(छोटी मानसिकता के व्यक्तियों को यदि बड़े अधिकार दे दिए जाए तो व उन अधिकारो का ग़लत इस्तेमाल करने लगता है।)
- ।। अपडा पारा लेगी आग, बिराडा पारा दिली जाग ।।
(जब तक मनुष्य स्वयं कार्यशिल होता है तब तक वह अपने काम स्वयं करता है परंतु जब व वृद्ध हो जाता है तब उसे अपने कार्यों के लिए भी दूसरो पर आश्रित होना पड़ता है।)
- ।। धरियु ढकायू इखी छुटी जालु, हाथ कु दिनीउ कुछ काम आलु ।।
(जमा धन संपती मृत्यु पश्चात यही छूट जानी है परंतु किया गया दान पुण्य हमेशा याद किया जाता है।)
- ।। छोटा ना दे होणी खाणी, बड़ा कय ना बीचे लोण पाणी ।।
(छोटी मानसिकता के व्यक्ति ज़रा सी सफलता मिलने पर इतराने लगते है वही अच्छे व सभ्य मानसिकता के व्यक्ति अपने बड़पन्न का कभी बखान नहीं करते।)
- ।। बुजुर्गों की बात और आवला कु सवाद बाद मा पता चल्दु ।।
(बुजुर्गों की बात का और आवला के स्वाद का बाद मे ही पता चलता है।)
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