प्रसिद्ध गढवाली औखाणे गढ़वाली कहावतें (Okhan)
- तितुर खाण मन काव बताय । मन मे कुछ और मुह पर कुछ और।
- कोय चेली ते , सुणाय बुवारी कु। बोला बेटी को और सुनाया बहु को।
- च्यल हेबे सकर नाती प्यार । बेटे से ज्यादा पोता प्यारा होता है।
- ना सौण कम ना भदोव कम। कोई भी किसी से कम नही है। दोनों प्रतियोगी बराबर क्षमता के।
- नी खानी बौड़ी,चुल पन दौड़ि ! नखरे वाली बहु, सबसे ज्यादा खाती है।
- द्वि दिनाक पूण तिसार दिन निपटूण ! आदर सत्कार अधिक दिन तक नहीं होता।
- शिशुणक पात उल्ट ले लागू सुल्ट ले ! धूर्त आदमी से हर तरफ से नुकसान
- अघैन बामणि भैसक खीर ! संतुष्ट ना होने पर मना करने का झूठा बहाना करना
- जो घडी द्यो ,ऊ घडी पाणी ! कई तरीको से एक साथ व्यवस्था होना।
- भौल जै जोगी हुनो , हरिद्वार रून ! अच्छाई हमेशा अपने मौलिक रूप में रहती है।
- नौल गोरू नौ पू घासक ! नए कार्य पर जोश के साथ काम करना।
- पिनौक पातक पाणी ! इधर की बात उधर करने वाला इंसान।
- घर पिनाऊ बण पिनाऊ ! हर जगह एक ही चीज सुनाई देना।
- नौ रत्ती तीन त्वाल ! अनुमान लगाना।
- राती बयाणक भाल भाल स्वैण ! आलस्य के बहाने ढूढ़ना !
- तात्ते खु जई मरू ! जल्दबाजी करना !
- कभी स्याप टयोड, कभी लाकड़ ! परिस्थितियां अनुकूल ना होना।
- अक्ले उमरेक कभी भेंट नई होनी ! अक्ल और उम्र की कभी मुलाकात नहीं होती। जब शरीर में ताकत रहती है तब अक्ल नहीं आती , और जब अक्ल आती है ,तब शरीर कमजोर पड़ जाता है।
- गुणी आपुण पुछोड नान देखूं ! अपने दोषों को कम बताना।
- गऊ बल्द अमुसी दिन ठाड़ ! आलसी इंसान जब कार्य ख़त्म हो जाता है ,तब उपलब्ध होता है।
- का राजेकी रानी , का भगतविकि काणी ! धरती आसमान का अंतर होना।
- कब होली थोरी , कब खाली खोरी ! आशावान रहना।
- आफी नैक ऑफि पैक ! सब कुछ खुद ही करना।
- पंच भी प्रपंची हवेगैनि । पंच भी परपंची हो गए है। अर्थात जो मुखिया है, न्याय करने वाला है ,वही बेईमान हो गया है।
- बैसाखू और सौणयां बणिग्या पंच । मतलब अयोग्य लोग प्रतिनिधि बन गये। ( पहाड़ी कहावतें )
- अपणी करणी, बैतरणी तारणी । अपनी मेहनत से ही अच्छा फल मिलता है। या अपने अच्छे कर्म ही साथ देते हैं।
- अगास कैन नापि बखत कैन थापि । आसमान को कोई नाप नही सकता और समय को कोई रोक नही सकता।
- रौत और गौथ कख नि होंदा । पहाड़ में रावत जाती के लोग और गहत की दाल हर जगह मिल जाती है।
- बिनडी बिरवो मा मूसा नि मोरदा । ज्यादा लोगो मे काम सफल नही होते।
- सिंटोलो की पंचेत । अयोग्य लोगो का ग्रुप या आयोग्य लोगो की मीटिंग।
- निगुस्यो का गोरु उजाड़ जन्दन । बिना अभिवावक की संतान खराब होती है।
- सूत से पूत प्यारो । बेटे से पोता ज्यादा प्यारा होता है।
- पदाने बवारीकु नोउ तोले नथुली । अर्थात बढ़े लोगों की बड़ी बातें।
- अपडा पारा लेगी आग, बिराडा पारा दिली जाग - जब तक मनुष्य स्वयं कार्यशिल होता है तब तक वह अपने काम स्वयं करता है परंतु जब व वृद्ध हो जाता है तब उसे अपने कार्यों के लिए भी दूसरो पर आश्रित होना पड़ता है।
- तौ न तनखा, भजराम हवालदारी - बिना वेतन के बड़ा काम करना।
- कख नीति, कख माणा, रामसिंह पटवारी ने कहाँ - कहाँ जाणा । एक ही आदमी को ,एक समय मे अलग अलग काम देना
- सिंटोलों की पंचेत - अयोग्य लोगों की बैठक।
- बटा मागे की कुड़ी चा मा उड़ी - आसानी से उपलब्ध चीज जल्दी समाप्त हो जाती है।
- कखी गिड़की कखी बरखी - कुछ बोलना और कुछ करना.
- त्वेते क्या होयूं जनु गोरख्याली राज - मनमानी करना।
- पंच भी प्रपंची व्हेगेन - न्याय करने वाला ही बेईमान हो गया।
- बेसाखू और सोणु बनीगणया पंच - अयोग्य व्यक्ति प्रतिनिधि बन गए।
- अपणी करणी बेतरणी तरणी - अपनी मेहनत से ही अच्छा फल मिलता है।
- माणा मथै गौं नी, अठार मथे दौ नी - माणा से ऊपर गांव नहीं, और अट्ठारह से ऊपर दाव नही ।
- छोटा ना दे होणी खाणी, बड़ा कय ना बीचे लोण पाणी - छोटी मानसिकता के व्यक्ति ज़रा सी सफलता मिलने पर इतराने लगते है वही अच्छे व सभ्य मानसिकता के व्यक्ति अपने बड़पन्न का कभी बखान नहीं करते।
- जब पेट मा लगी आग, तब क्या चेन्दु साग - जब भूख लगी हो तो साधारण सा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है।
- ना कर बाबा सत्यनारायण कथा, अपडा बेव्य बाबा ते कर लता - भले पूजा कथा ना करे परंतु मात पिता की सेवा व देखभाल अवश्य करे।
- नि होण्या बरखा का बड़ा -बड़ा बूंदा - बारिश की बड़ी बड़ी बूंदे पड़ने का मतलब है ,अच्छी बारिश नही होगी।
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