उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक स्त्रोत
नवगठित उत्तराखण्ड का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है। भजन 'सिंह' के अनुसार एवं यहाँ से प्राप्त पुरातात्विक अवशेष इस बात का संकेत देते हैं कि इस क्षेत्र में पाषाणकाल से ही सभ्यताओं का विकास आरम्भ हो चुका था। इस क्षेत्र में इतिहास निर्माण की प्रचुर सामग्री उपलब्ध है। अध्ययन की सुविधा दृष्टि से हमने इनका विभाजन इस प्रकार किया है:
- साहित्यिक स्त्रोत
- पुरातात्विक स्त्रोत
1. साहित्यिक स्त्रोत
उत्तराखण्ड क्षेत्र का प्राचीनतम विवरण रामायण और महाभारत में मिलता है। महाभारत के वनपर्व में गंगाद्वार (हरिद्वार) से भृंगतुग (केदारनाथ) तक की यात्रा का वर्णन है, जिससे इस यात्रा के मध्य पड़ने वाले कई स्थानों की प्राचीन जानकारी प्राप्त होती है। इन प्राचीन महाकाव्यों के अतिरिक्त पुराणों से भी उत्तराखण्ड के इतिहास की प्रचूर जानकारी उपलब्ध है। ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण, वायु पुराण, अग्निपुराण में इस क्षेत्र की तीर्थयात्रा से संबंधित जानकारी उपलब्ध है।
वेदों और उपनिषदों में भी उत्तराखण्ड के प्राचीन इतिहास और धार्मिक महत्व का विवरण मिलता है। ब्राह्मपुराण में भारतीयों की पहचान से हिमालय का वर्णन है और स्कन्दपुराण में केदारखंड के विस्तार का वर्णन मिलता है। इसके अलावा जातकों में हिमालय के गंगातट का वर्णन मिलता है।
प्राचीन ग्रंथों में इस क्षेत्र के स्थलों का वर्णन तीर्थयात्रा के महत्व से मिलता है, लेकिन साथ ही इस क्षेत्र की भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का वर्णन भी किया गया है।
कालिदास की कृतियों रघुवंश, कुमारसंभव, अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि की रचना भी इसी क्षेत्र में की गई मानी जाती है। बाणभट्ट की पुस्तक हर्षचरित् में भी इस क्षेत्र की यात्रा पर आने-जाने वाले लोगों का उल्लेख मिलता है।
हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री हवेनसांग उत्तराखण्ड राज्य की यात्रा पर आया था। उसने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार का उल्लेख 'मो-यू-लो' नाम से और हिमालय का "पो-लि-हि-मो-यू-ला" अथवा ब्रह्मपुर राज्य के नाम से किया है।
कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में कश्मीर के शासक ललितादित्य द्वारा गढ़वाल विजय का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त कई अन्य स्थानीय ग्रंथ भी इस राज्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हैं।
इसके अलावा इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास से संबंधित जानकारी का भंडार यहाँ की लोकगाथाओं में भरा हुआ है।
प्रमुख लोकगाथाएँ:
- मालूशाही: इसमें मालूशाह की गाथा को गेय रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह राजूली एवं मालू की प्रेमगाथा है, जिसमें मध्ययुगीन सामंती शासन व्यवस्था का ऐतिहासिक रूप देखा जा सकता है।
- रमौला गाथा: यह गढ़वाल के रमौलगढ़ के रमौला जाति से संबंधित गाथाएँ हैं। इसमें वीर रमोलों की वीर गाथाएँ वर्णित होती हैं।
- हुड़की बोल गाथाएँ: ये कृषि से संबंधित प्राचीन गाथाएँ हैं।
- जागर: यह लोकविश्वासों पर आधारित गाथाएँ होती हैं जिनका संबंध तंत्र-मंत्र, पूजन अथवा देवी-देवताओं से होता है।
2. पुरातात्विक स्त्रोत
पुरातत्व वह विज्ञान है जिसके माध्यम से पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुई सामग्री की खुदाई कर लोगों के भौतिक जीवन का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। पुरातात्विक साधन अत्यंत प्रमाणिक होते हैं और इनके माध्यम से इतिहास के अंध-युगों की भी जानकारी प्राप्त होती है।
उत्तराखण्ड में अभिलेखन मुख्य रूप से चट्टानों, प्राकृतिक शिलाओं, ईटों, मुद्राओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, मृदभांडों, हस्तिदंत तथा काष्ठफलकों आदि पर किया गया है। प्राचीन काल से ही यहाँ के शासकों ने अपनी राजाज्ञाएँ, घोषणाएँ आदि को शिलालेखों और ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण करवाया है।
उत्तराखण्ड में प्राचीन शैलाश्रयों की खुदाई से महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं। 1968 ई. में सुयाल नदी के बाएँ तट (अल्मोड़ा) पर स्थित लखु उड्यार से राज्य में प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रयों की पहली खोज हुई। इसके बाद गढ़वाल से दो शैलाश्रय प्राप्त हुए जिनमें चमोली जनपद से प्राप्त ग्वरख्या उड्यार प्रमुख है।
धातुकाल में प्रवेश के साक्ष्य अल्मोड़ा जनपद से प्राप्त ताम्र मानव आकृतियाँ और बनकोट से प्राप्त आठ ताम्र मानव आकृतियों से मिलता है। हरिद्वार के बहादराबाद क्षेत्र की खुदाई से ताम्र उपकरण और गैरिक भांड सदृश मृदभांड प्राप्त हुए।
महत्वपूर्ण अभिलेख
- गोपेश्वर और बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) से त्रिशूल पर अभिलेख उत्कीर्ण मिलता है जो सम्भवतः कत्यूरीकाल से संबंधित है।
- बागेश्वर लेख से कत्यूरीकाल के राजा बंसतदेव खर्परदेव और राजनिंबर के वंशों की जानकारी प्राप्त होती है।
- मौर्य सम्राट अशोक का अभिलेख कालसी जनपद देहरादून से प्राप्त हुआ है जो मौर्य वंश के विस्तार को इस राज्य तक बताता है।
- लाखामंडल से प्राप्त अभिलेखों में छागलेश नामक राजाओं की जानकारी मिलती है।
निष्कर्ष
उत्तराखण्ड का इतिहास ऐतिहासिक, साहित्यिक और पुरातात्विक स्त्रोतों के माध्यम से समृद्ध है। इन स्त्रोतों से हमें न केवल इस क्षेत्र की धार्मिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक जानकारी मिलती है, बल्कि पुरानी सभ्यताओं, शासकों, उनके शासनकाल, और युद्धों की भी जानकारी प्राप्त होती है।
Frequently Asked Questions (FQCs)
1. उत्तराखंड का इतिहास कितने समय पुराना है?
उत्तराखंड का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है, और यह क्षेत्र पाषाणकाल से ही सभ्यताओं का विकास प्रारंभ करने का संकेत देता है। यह क्षेत्र विभिन्न पुरातात्विक और साहित्यिक स्रोतों से समृद्ध है जो इसके इतिहास को रेखांकित करते हैं।
2. उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्रोत कौन से हैं?
उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्रोत मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
- साहित्यिक स्त्रोत (जैसे रामायण, महाभारत, पुराण, आदि)
- पुरातात्विक स्त्रोत (जैसे शिलालेख, ताम्रपत्र, मुद्रा, आदि)
3. उत्तराखंड के साहित्यिक स्त्रोत कौन से हैं?
उत्तराखंड के साहित्यिक स्त्रोतों में रामायण और महाभारत का उल्लेख महत्वपूर्ण है। महाभारत में गंगाद्वार (हरिद्वार) से भृंगतुग (केदारनाथ) तक यात्रा का वर्णन मिलता है। इसके अलावा, ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, अग्निपुराण, और स्कन्दपुराण में भी इस क्षेत्र से संबंधित ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
4. उत्तराखंड के पुरातात्विक स्त्रोत क्या होते हैं?
पुरातात्विक स्त्रोत वह सामग्री होती है, जिसे पृथ्वी की खुदाई के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। इसमें शिलालेख, ताम्रपत्र, मुद्राएँ, और अन्य सामग्री शामिल होती हैं। उत्तराखंड में शिलालेख और ताम्रपत्रों के माध्यम से प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती है।
5. उत्तराखंड में प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण शिलालेख कहां से मिले हैं?
उत्तराखंड में कई महत्वपूर्ण शिलालेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें सिरोली, कालसी, गोपेश्वर, मंडल, माणा, और देवप्रयाग प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त, श्रीनगर गढ़वाल, अल्मोड़ा, और चमोली से भी महत्वपूर्ण शिलालेख और अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
6. उत्तराखंड के ऐतिहासिक वंश कौन से हैं?
उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक वंशों का उल्लेख मिलता है, जैसे कत्युरी, चंद, और परमार। इन वंशों के बारे में जानकारी लोककथाओं, जागरों, और पवड़ों में मिलती है।
7. उत्तराखंड में प्राप्त पुरातात्विक चित्रित शैलाश्रय कहां स्थित हैं?
उत्तराखंड में शैलाश्रय चित्रित शैलाश्रय सबसे पहले 1968 में सुयाल नदी के बाएं तट (अल्मोड़ा) से मिले थे। इसके बाद गढ़वाल के चमोली जनपद से भी महत्वपूर्ण शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
8. उत्तराखंड के ताम्रपत्रों से क्या जानकारी मिलती है?
उत्तराखंड के ताम्रपत्रों से राज्य के ऐतिहासिक घटनाओं, शासकों, और वंशों के बारे में जानकारी मिलती है। जैसे कि कातिकेयपुर (जोशीमठ) से प्राप्त ताम्रपत्र और चंदकाल से संबंधित ताम्रपत्रों में बाज-बहादुर, जगतचंद, और उद्योगचंद के बारे में जानकारी मिलती है।
9. उत्तराखंड के महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में कौन-कौन से स्थान शामिल हैं?
उत्तराखंड के महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल में गोपेश्वर, बाड़ाहाट, टिहरी, कातिकेयपुर, और बास्ते ताम्रपत्र (पिथौरागढ़) प्रमुख हैं। इन स्थलों से प्राचीन शिलालेख, ताम्रपत्र, और सिक्के प्राप्त हुए हैं जो राज्य के इतिहास को रेखांकित करते हैं।
10. उत्तराखंड में ऐतिहासिक जानकारी के लिए लोककथाओं का क्या महत्व है?
लोककथाएँ उत्तराखंड के ऐतिहासिक इतिहास को जानने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इनमें ऐतिहासिक घटनाओं, शासकों और वीर गाथाओं का वर्णन मिलता है। जैसे मालूशाही, रमौला गाथा, और जागर में ऐतिहासिक वंशों और घटनाओं का जिक्र होता है।
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