जय राजमाता जिया रानी मां
पहाड़ी नारी उत्तराखण्डी धरोहर की रीढ़
जिया का अर्थ होता है माँ और कुमाऊँ की जिया रानी भी अपनी प्रजा के लिए माँ से कम नहीं थीं। उनका नाम मौला देवी था और वो मूलतः हरिद्वार क्षेत्र की थीं। उनका विवाह कत्यूरी वंश में प्रीतमदेव के साथ हुआ | जिया रानी गोलाघाट में रहती थीं जहाँ उन्होंने एक उत्तम रानीबाग़ बनवाया था। कहा जाता है की अपने पति से अनबन के कारण जिया रानी यहाँ रहने लगीं थी| एक लिखित इतिहास के अभाव के कारण उनके बारे में जो कुछ पढ़ने या जानने को मिलेगा वो लोकगीतों और रिवाज़ों में छिपा है। हाँ लेकिन सभी इतिहासकार उनकी तैमूर की सेना से हुई जंग को लेकर एकमत दिखते हैं।
जय राजमाता जिया रानी मां |
जिया रानी किसकी रानी थी?
माता जिया रानी कत्यूरी वंश की रानी थीं. उत्तराखंड में जिया रानी की गुफा के बारे में एक किवदंती काफी प्रचलित है. कत्यूरी राजा पृथ्वीपाल जिन्हें प्रीतमदेव नाम से भी जाना जाता था, की पत्नी रानी जिया रानीबाग में चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थीं.
जय राजमाता जिया रानी मां |
तैमूर की सेना का कुमाऊँ कूच....
और रानी का वीरतापूर्ण युद्ध तैमूर मेरठ और हरिद्वार जीतते हुए सीधा कुमाऊँ की ओर बढ़ रहा था | वो एक विशाल सेना से संपन्न था और रस्ते में आने वाले हर राज्य को जीतता जा रहा था। उसने हरिद्वार में भी ऐसा ही एक युद्ध जीता और आगे बढ़ने लगा | जिया रानी और राजा प्रीतमदेव को इसकी सूचना मिली और वे युद्ध के लिए अपनी सेना तैयार करने लगे | मान्यता के अनुसार रानीबाग़ क्षेत्र में ही दोनों सेनाओं का भयंकर युद्ध हुआ जिसमे कत्यूरियों की सेनापति रानी स्वयं थीं। उन्होंने तैमूर की सेना को हरा दिया |
जय चक्रवर्ती सम्राट राजा सतोधी धाम देब
देव भूमी कुर्मान्चल (उतराखण्ड) क सूर्य कत्युरी राजवंश की वीर राजमाता त्रिपुर सुन्दंरी दुर्गा अवतारी मां जिया रानी माँ
मित्रों ईतिहास में कुछ ऐसे अनछुए व्यक्तित्व होते हैं जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते मगर एक क्षेत्र विशेष में उनकी बड़ी मान्यता होती है और वे लोकदेवता /कुलदेवी के रूप में पूजे जाते हैं,
आज हम आपको सुर्य कत्युरवंश न्यायकारी महारानी जिनकी कुलदेवी के रूप में आज तक उतराखंड में पूजा की जाती है.
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त्रिपुर सुन्दंरी दुर्गा अवतारी मां जिया -------
जिया रानी माँ का बचपन का नाम मौलाद देवी था,
वो फल्दाकोट ( खातिगढं ) के राजा ओर रानी पियुलों देवी की पुत्री थी (अस्कोट के सुर्य कत्युरीवंश पाल रजवार मनराल के अनुसार) ,
ईस्वी 12वी शताब्दी में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था,मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य (उत्तराखंड मे नही था) बना रहा,मगर तुर्कों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि गढ़वाल में भी तुर्कों के हमले होने लगे,
ऐसे ही एक हमले में कुमाऊँ के कत्युरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की #सहायता के लिए अपने भतीजे वीर देव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा,जिसके बाद अमरदेव पुंडीर ने कत्युर का यश देख कर अपनी पुत्री विवाह कुमायूं के कत्युरी राजवंश के कुँवर वीर देव से किया तब राजा राजा प्रीतमदेव (पृथ्वीपाल ) कत्युर के राजा थें दिया, मौला देवी प्रीतमदेव की दूसरी रानी थी,
मां जिया से उनके पुत्र धामदेव, ओर पहली रानी धर्मा (गंगावती) सें कुंँवर मालुशाह पुत्र हुए , जिया रानी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को जिया ओर देवी अवतार कहा जाता था
इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया, कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से से राज्य का भाभर कार्य देखने के लिये वो अपने पुत्र के साथ चित्रशीला गोलाघाट (रानीबाग हलद्वानी )चली गयी जहां उन्होंने एक खूबसूरत रानी बाग़ बनवाया, यहाँ जिया रानी काफी समय रही .........
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तैमुर का हमला-------------
जय राजमाता जिया रानी मां |
माना जाता हे 12 शताब्दी में मध्य एशिया के हमलावर तुर्की ,तैमुर ने भारत पर हमला किया और #दिल्ली मेरठ को रौंदता हुआ वो हरिद्वार पहुंचा जहाँ उस समय वत्सराजदेव पुंडीर शासन कर रहे थे ,उन्होंने वीरता से तैमुर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा,
पुरे हरिद्वार में भयानक नरसंहार हुआ,जबरन धर्मपरिवर्तन हुआ और राजपरिवार को भी उतराखण्ड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी वहां उनके वंशज आज भी रहते हैं और मखलोगा पुंडीर के नाम से जाने जाते हैं,
तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने भेजी,जब ये सूचना राज्य माता #जिया रानी को मिली तो उन्होंने इसका सामना करने के लिए कुमायूं के कत्युरी राजपूतो की एक बड़ी सेना का गठन किया,तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में युद्ध हुआ जिसमे मुस्लिम सेना की #हार हुई ओर कत्युर बीरों ने गाजर ओर मुली की तरह तेमुर लुटेरे की सेना को काटा , इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त मे विराम कर रहे थें ,पर वहां तेमुर दूसरी अतिरिक्त सेना पहुंची जिससे जिया रानी की सेना पर छल ओर छुप कर से बंन्दी बना लिया था .,और सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में चली गई गयी,
जब प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो स्वयं सेना लेकर आये और मुस्लिम हमलावरों को #मार भगाया, ओर शक्तिशाली कत्युरी की विजय हुई
इसके बाद में वो जिया रानी को ले आये,प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद
जिया माँ के पुत्र ओर कत्युर चक्रवर्ती सम्राट धामदेव के संरक्षक के रूप में न्यायकारी शासन भी किया था, माँ जिया के शासन बहुत ही न्याय प्रिय ,धर्म प्रिय ,था ज़िसकी जयकार सम्पूर भारतखन्ड़ में हुई ,
वो स्वयं शासन के निर्णय लेती थी। मां के लिए जिया शब्द का प्रयोग किया जाता था। रानीबाग में जियारानी की गुफा नाम से आज भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुंचते हैं।
यहाँ जिया रानी की गुफा के बारे में एक और किवदंती प्रचलित है
"कहते हैं कत्यूरी राजा पृथवीदेव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के मंदिर में दर्शन के लिये जाने से पूर्व स्नान कर रहीं थी तो उस समय एक राजा उसी नदी के तट जो की मूल स्थान से काफ़ी दूर था , अपनी सेना के साथ वहाँ से गुजर रहा था , जब माँ जिया स्नान कर रहीं थीं तो उनके सर से कुछ केश टूटकर पानी में प्रवाहिट हो गये और जब वह दिवान नदी पार कर रहा था तो वह अपने घोडे में सवार था बीच नदी के मध्य , तभी अचानक घोडा का पैर उन बालों में उलझ गया और दिवान नदी में गिर गया . उसने देखा कि घोडे के पैर बालों में उल्झे हैं और जब उसने बालों को देखा तो वह मोहित हो गया और कल्पना करने लगा कि जिस स्त्री के केश इतने सुनहरे और लंबे हों वह स्त्री कितनी सुंदर होगी . थी। फिर उसके मन में मिलने की ईछा जागी और वह उसी दिशा में गया जहाँ से वह केश प्रवाहित होकर आये थे. अंत में वह उस स्थान पर पाहुंच गया जहाँ माँ जिया रानी स्नान कर रहीं थी. जब वह वहाँ पाहुंचा तो रानी माँ स्नान कर वस्त्र सुखा रहीं थी, और एक विशाल शिला पर अपना घागरा सुखाने को डाल रखा था, तभी उस दिवान ने रानी माँ को अपनी सेना की मदद से घेर लिया और जबरन माँ जिया के साथ अभद्रता करने लगा , चुंकी उस समय माँ स्नान कर रहीं थी तभी माँ के रक्षक वहाँ मौजूद नहीं थे, इस्लिये माँ ने अपनी आत्म रक्षा हेतु वहाँ उस दिवान से युद्ध किया दिवान कि सेना को तो माँ ने #पराजित किया किंतु अपनी आन को बचाने के लिये एवं उस स्थान को अपवित्र होने से बचाने के लिये माँ ने उस स्थान को त्यागने का निर्णय लिया और वो दुष्ट राजा को भ्रमित करकुछ ही दूरी पर स्थित गुफ्फा में चलि गयिं और तब माँ ने महादेव का स्मरण किया और उस स्थान से अलोप हो गयिं और सीधा हरिद्वार अपने मायके के ईष्ट दरवार में प्रकट हुई . आज भी रानीबाग में माँ जिया रानी की गुफा में दो छिद्र हैं जहाँ से माता हरीद्वार प्रकट हुई थीं
गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है, जिसका आकार कुमाऊँनी घाघरे के समान हैं। उस शिला पर रंग-विरंगे पत्थर ऐसे लगते हैं - मानो किसी ने रंगीन घाघरा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी के स्मृति चिन्ह माना जाता है। रानी जिया को यह स्थान बहुत प्यारा था। यहीं उसने अपना बाग लगाया था और यहीं उसने अपने जीवन की आखिरी सांस भी ली थी। वह सदा के लिए चली गई परन्तु उसने अपने सतीत्व की रक्षा की। तब से उस रानी की याद में यह स्थान रानीबाग के नाम से विख्यात है।कुमाऊं के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानीबाग में जियारानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व है"""
कुमायूं के कत्यूरी राजपूत ओर अनुवाई आज भी वीरांगना जिया रानी पर बहुत गर्व करते हैं,
उनकी याद में दूर-दूर बसे उनके वंशज (कत्यूरी) प्रतिवर्ष यहां आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं। कड़ाके की ठंड में भी पूरी रात भक्तिमय रहता है।
जय हों महान राजमाता की प्रतीक ,महादेव भक्त और मेरी कुलदेवी कत्युरी सूर्य वंश की राजमाता जिया रानी को शत शत नमन.....जय हो सदा ही जय हो माँ ..
....जय कत्यूरी सूर्य वंश राजपूताना...
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