नवरात्रि पूजा विधान
(पद्मावती शुकवारव्रत उद्यापन)पद्मावती की मूल मंडल पूजा
प्रारम्भ
श्री पार्श्वनाथ जिन भक्त कृतोपसेवा ।
धरमेन्द्र प्रिय जिननाथ, कृतोपसेवा ।।
कमठोपसर्ग कृत दूर जिनोपसेवा ।
पद्मावति कृत सहाय, सुखोपसेवा ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे धरणेन्द्र प्रिये पद्मावति देवि अत्रागच्छ २
ॐ आं कों ह्रीं हे धरणेन्द्र प्रिये पद्मावति देवि अत्र तिष्ठ २
ॐ आं कों ह्रीं हे परणेन्द्र प्रिये पद्मावति देवि अत्र सन्निहितो भव-भव-
प्रासुक जल की झारी भरकर, तुम टिग लेकर आया हूँ
पद्मावती देवी की देखो, पूजा करने आया हूँ
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते, कष्ट सभी मिट जाते हैं
जल की धारा देने से माँ, सुख सभी मिल जाते हैं ।| 9 ||
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि जलं समर्पयामि ।।
गन्य सुगन्धित लेकर माता, तुम चरणों में आया हूँ ।
अर्चन कर सुख पाने को माँ तुम ढिग अब में आया हूँ ।।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते, कष्ट सभी मिट जाते हैं ।
गन्ध की धारा देने से माँ, सुख सभी मिल जाते हैं। २ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि दिव्य गन्धं समर्पयामि ।।
दिव्य अखण्डित तंदुल लेकर, तुम चरणों में आया हूँ
पद्मावती देवी की पूजा करके, मन में हर्षाया हूँ ।।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते, कष्ट सभी मिट जाते हैं।
दिव्य अक्षतों के अर्चन से माँ सुख सभी मिल जाते हैं ।।३।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि अक्षतं समर्पयामि ।।
बेला, चमेली, पुष्प सुगन्धित, लेकर अब मैं आया हूँ ।
दिव्य सुवासित फूलों से माँ पूजा करने आया हूँ ।।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते, कष्ट सभी मिट जाते हैं ।
पुष्प सुगन्धित की पूजा से माँ सुख सभी मिल जाते हैं । ।४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि पुष्पं समर्पयामि ।।
घेवर पूड़ी और जलेबी थाली भरकर लाया हूँ ।
दिव्य चरु से अर्चन करके सुख संपति को पाता हूँ ।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते कष्ट सभी मिट जाते हैं।
नैवेद्य की पूजा से माता सुख सभी मिल जाते हैं ।। ५ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि नैवेद्यं समर्पयामि ।।
घृत का दीपक लेकर माता तुम चरणों में आया हूँ ।
दिव्य प्रकाश की इच्छा लेकर तुम चरणों में आया हूँ ।।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते कष्ट सभी मिट जाते हैं ।
दीपक की ज्योति से माता सुख सभी मिल जाते हैं ।। २६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि दीपं समर्पयामि ।।
धूप दशांगी लेकर माता तब चरणों में आया हूँ ।
सभी प्रकार के कर्मों को मैं आज मिटाने आया हूँ ।।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते कष्ट सभी मिट जाते हैं
धूप दशांगी खेने से माँ सुख सभी मिल जाते हैं। 1७ ॥
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि धूपं समर्पयामि ।।
केला, आम, सुपारी आदि ले सुवर्ण वाल भर आया हूँ ।
दिव्य मधुर सुपक्वफलों को 'अब मैं लेकर आया हूँ ।।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते कष्ट सभी मिट जाते हैं।
दिव्य फलों की पूजा से माँ सुख सभी मिल जाते हैं ।| ५ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि दिव्य फलं समर्पयामि ।।
जल चन्दनादिक वस्तु द्रव्य सजाकर, तुम ढिग लेकर आया हूँ ।
अष्ट द्रव्य से थाल सजाकर तुम अर्चन को आया हूँ ।
दुःख सन्ताप सभी मिट जाते कष्ठ सभी मिट जाते हैं ।
अष्टद्रव्य के अर्थन से माँ सुख सभी मिल जाते हैं |। ६।।
ॐ आं को ही है पद्मावति देवि अष्टद्रव्यं समर्पयामि ।|
जल सुगन्धित लायके पद्मावति चरण चढायके ।
चरणों में शीश नवायके सभी के दुःख नशाय के ।| 90 ॥
ॐ आं को हीं हे पद्मावति देवि पाद्यं समर्पयामि ।। जल धारा छोड़ें ।।
पंचामृतादि सद् द्रव्यों से, अभिषेक आपका कर दीन्हा,
आपने माता सब जीवों के दुःख दारिद्र को हर लीन्हा ।| 99 ||
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि पंचामृतद्रव्यं समर्पयामि ।।
मिष्ट मधुर इक्षुदण्ड से पूजा आपकी कर दीन्हीं ।
माता आपने आज सभी की इच्छा पूरी कर दीन्हीं ।| १२ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि दण्डार्वनं समर्पयामि ।।
चना फुलाकर लेकर आया देवी की पूजा को आज ।
इसकी पूजा से मिलता, सुख शांति धन समृद्धि आज ।। १३ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि चणकार्चनं ।।
थाली भरकर पकवानों की तब चरणों में आया आज ।
पकवानों की पूजा से मां मिटे जगत दुःख सन्ताप ।। १४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि पक्वान्नार्चनम् ।।
नानाविध वस्त्रों को मैं लेकर आया देवी आज ।
वस्त्रों की पूजा से माता दुःख दारिद्र मिट जाय ।। १५ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि दिव्य वस्त्रार्चनम् ।।
केयूर मुण्डल हार मुकुटादि, भूषण से करूँ पूजा आज ।
आभूषण से पूजा करके पाऊँ, धन वैभव को आज || १६ ||
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि षोडषाभरणार्चनम् ।।
कुंकुम, केशर, गन्ध सु लेकर तिलक लगाता तेरे भाल ।।
दिव्य ज्ञान हो जावे मेरा, मिटे सर्व जगत सन्ताप ।। १७ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि तिलकार्बनम् ||
छत्र चँवर मंगल द्रव्यों को लेकर आया माता आज ।|
मंगल की मैं कामना करता होवे जगत में शांति आज |। 9८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि छत्र चामरादि अर्चनम् ।।
शुद्ध सुवर्ण का कलश बनाकर, विशुद्ध जल भर ले आया ।
सुवर्ण कलश के अर्चन से माँ, सुख शान्ति को हमने पाया ।। १६ ||
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि सुवर्ण कलशार्चनम् ।।
निर्मल दर्पण लेकर आया स्वच्छ अति निर्मल देखा भाव ।
दर्पण की निर्मलता कहती करो सभी मिल निर्मल भाव ।। २०।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि दर्पणार्चनम् ।।
वस्त्रादिक की झण्डी लेकर तब चरणों में आया आज ।
इसकी पूजा से मिटते है इस जगत के सभी सन्ताप ।| २१ ।।
ॐ आं को ही हे पद्मावति देवि पताकाचनम् ।।
नानाविध वाद्य बजाकर नाचूँ गाऊँ देखो आज ।
तीन प्रदक्षिण देकर माता तुमको नमन करूँ मैं आज ।| २२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि बाध, नृत्य, गीत, प्रदक्षिणा, नमस्कार ।।
वसुविध द्रव्यादि को लेकर करता हूँ मैं पूजा आज ।
अष्ट महानिधि को पाने आया हूँ चरणों में आज ।। २३ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे पद्मावति देवि अर्ध्या समर्पयामि ।।
शान्तये शान्तिधारा पुष्पांजलि
चौबीस आयुधों के प्रत्येक अर्ध्य
प्रथम कोष्ठ पर चढ़ावे ।
प्रथम पुष्पांजलि क्षेपण करें।
अथ जयमाला
प्रथम हाथ में खंग जु शोभे माता तेरे देखो हाथ ।
दुष्टों का निवारण करके शान्ति देती देखो आप ।| 9 ।।
ॐ आं को हीं प्रथम हाथ में स्लंग आयुद्धधारिणी हे पद्मावति देवि अर्ध्या ।।
खाण्डायुध का धारण करके शोभित होती माता आज ।
दूजे हाथ की शोभा इससे मेटो जगत के सभी सन्ताप ।| २ ।।
आं कों ह्रीं दूजे हाथ में खाण्डायुध धारिणी हे पद्मावति, अर्घ्यं समर्पयामि ।।
तीजे हाथ में मुसल धारकर धर्म की सेवा करती हो ।
मुसलधारिणी कहलाती, जग में शान्ति करती हो ।। ३ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे मुसलधारिणि पद्मावति, देव्यै अर्ध्य समर्पयामि ।।
चौथे हाथ में हल जो शोभे, हलायुधि कहलाती हो ।
हे जगदम्बे देवी तुम तो सबकी व्याधा हरती हो ।| ४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं हे हलायुध पारिणि पद्मावति, देव्यै अर्घ्यं समर्पयामि ।।
सर्पायुध को कर में लेकर, दुष्ट बंधन का काम करो ।
हे पद्मावति देवि तुम दुर्जन जन का मान हरो ।| १५ ॥
ॐ आं कों ह्रीं सर्पायुम धारिणि हे पद्मावति, देव्यै अर्घ्यं समर्पयामि ।।
वन्हि के आयुद्ध को धारो हे जगदम्बे माता तुम ।
षष्टम हाथ का आयुध जानो नाश करो पापों का तुम ।| १६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं वन्हि आयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अर्ध्य समर्पयामि ।।
चकायुध को धारकर, करे दुष्ट संहार । सप्तम हो आयुधपति, करो धर्म प्रचार ।। ७ ।।
ॐ आं को ही चक्रायुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
शक्ति शस्त्र हे महिमावान तुम हो अष्टम आयुधवान ।
दुष्ट देख सब विश भगजाय, ऐसी तुम हो महिमावान || ६ ||
ॐ आं कों ह्रीं शक्ति आयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अर्ध्यं समर्पयामि ।।
तारायुध कर धारकर, करे प्रकाश महान् ।
इस आयुध का काम है मिटे दुःख सन्ताप || 90 ||
ॐ आं को ही तारा आयुधधारिणि, हे पद्मावति, देव्यै अध्यं समर्पयामि ।।
रत्नत्रय का चिन्ह है त्रिशूल आयुध जान ।
दशमहाथ का शस्त्र है करे कर्म संहार |। 99 ।।
ॐ आं कों ह्रीं त्रिशूल आयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
खर्पर हाथों धारकर ग्यारम आयुध धार ।
भिक्षा मांगे प्रेम की, प्रेम की ज्योति जलाय ।| १२ ।।
ॐ आं को ही खर्परआयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अर्ध्य समर्पयामि ।।
पद्मावति जगद्पूज्य, करो विश्व कल्याण ।
डमरु आयुध धारकर करो धर्म प्रचार ।। १३ ।।
ॐ आं कों ह्रीं इमरुआयुप धारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
नागपाश को धारकर नाग रूप बन जाय ।
यह बंधन अति विकट है बंधन छूटे नाय ।| 9४ ।।
ॐ आं को हीं नागपाश आयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै असमर्पयामि ।।
डंडा को ले हाथ में शोभे अति महान ।
दुष्ट जन को दंडित करें, हरे सभी का मान ।। १५ ।।
ॐ आं को ही डंडायुपधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
पाषाण को ले हाथ में, शोमे अति महान् ।
दुष्टों के सिर पर पड़े हरे सभी का मान ।। १६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पाषाण आयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्ये अयं समर्पयामि ।।
मुदगर को ले हाथ में करे दुष्ट संहार ।
अज्ञानी भागे फिरें, हरे सभी का मान ।|9७ ।।
ॐ आं कों ह्रीं मुद्गर आयुधधारिणि पद्मावति देव्यै अर्थ समर्पयामि ।।
फरसा को ले हाथ में करे दुष्ट संहार ।
दुष्ट जन भागे फिरें हरो सभी का मान ।। १८ ।।
ॐ आं को ही फरसाआयुध धारिणि पद्मावति, देव्यै अर्ध्य समर्पयामि ।।
फरसा को ले हाथ में करे दुष्ट संहार ।
दुष्ट जन भागे फिरें हरो सभी का मान ।। १८ ।।
ॐ आं को ही फरसाआयुध धारिणि पद्मावति, देव्यै अर्ध्य समर्पयामि ।।
कमलायुध से युक्त हो कोमल कमल महान ।
इस आयुध का काम है शोभा करे महान । | 9६
ॐ आं कों ह्रीं कमलायुध धारिणि पद्मावति, देव्यै अर्ध्यं समर्पयामि ।।
अकुंश आयुध धारकर, अंकुश कर ले आज ।
जग जीवों का हित करे, करे जीव उद्धार ।| १२० ।।
ॐ आं को हीं अंकुश आयुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
आप्रायुध को धारकर छाया सम बन जाय ।
शीतलता प्रदान करें मिटे जगत सन्ताप ।। २१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं आम्रायुधधारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
छत्रायुध को धारकर छत्रपति कहाय ।
छत्र सम शोभे अति एकछत्र हो जाय ।। २२ ।।
ॐ जां कों ह्रीं छत्रायुद्ध पारिणि हे पद्मावति, देव्ये अर्ध्य समर्पयामि ।।
वज्रायुध को धारकर वज सम बन जाये।
इस आयुध का काम है करे दुर्जन संहार ।। २३ ।।
ॐ आं को ही बजायुपधारिणि हे पद्मावति, देव्ये अर्घ्यं समर्पयामि ।।
वृक्षायुष से होत है शीतलता महान ।
जग के जीवों को मिले सुख शान्ति महान ।। २४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं वृक्षायुध धारिणि हे पद्मावति, देव्यै अयं समर्पयामि ।।
जीवों को वरदान दे वरद आयुध जान ।
माला ले कर में फिर करे जीव कल्याण ।| २५ ।।
ॐ आं कों ह्रीं वरमाला युद्ध पारिणि हे पद्मावति देवी अयं सर्मपयामि ।।
चौबीस भुजा जगदम्बिके करो जगत कल्याण ।
अपने हित के कारणे कीन्हीं पूजा आज ।। २६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं चौबीस भुजा में स्थित चतुर्विंशति आयुध सहित हे पद्मावति, देव्यै पूर्णार्थ्यं समर्पयामि ।। शांतिधारा, पुष्पांजलिंक्षिपेत् ।
पद्मावती सहस्र नामावलि अर्ध्य पद्मावती सहस्र नाम के, अर्घ्य चढ़ाऊँ आज ।
नमन करूँ त्रियोग से, पुष्पांजलि करूँ आज ।। पुष्पांजलि
द्वितीय कोष्ठ का अर्ध्य शतक
पद्मावती जगवपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।1 9 ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मावत्यै नमः, अर्ध्य ।
पद्मवर्णा जगदपूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। २ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्महस्तायै नमः, अर्ध्या ।
पद्महस्ता जगत्पूज्या, सर्व संकटहारिणी,
पूजा करूं वसु द्रव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।।३।।
आं कों ह्रीं पद्महस्तायै नमः, अर्ध्या ।
पद्मिनी जगत्पूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी । ।४ ।।
ॐ आं को ही परिमन्यै नमः, अर्ध्या ।
पद्मासना जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। ५ ।।
ॐ आं को हीं पद्मासनायै नमः, अर्ध्या ।
पद्मकर्णा जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से सर्व संकट हारिणी ।। ६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मकणयैि नमः, अर्ध्या ।
पद्मास्या जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। ७।।
ॐ आं कों ही पद्मास्यायै नमः, अर्ध्या ।
पद्मलोचना जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से दुःख दारिद्र नाशिनी ।| ८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मलोचनाये नमः, अर्ध्या ।
पद्मा जगत्पूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। 9 ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मायै नमः, अर्ध्य ।
पद्मदलाक्षी जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। १0 ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मदलाक्ष्यै नमः, अर्ध्या ।
पद्मवनस्थिता जगत्पूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदध्य से, दुःख दारिद नाशिनी । | ११ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मवनस्थितायै नमः, अर्ध्य ।
पद्मालया जगदपूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।।१२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मालयायै नमः, अर्घ्य ।
पद्मगन्धा जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।| 9३ ।।
ओं को हीं पद्मगन्धायै नमः, अर्ध्य ।
पद्मरागा जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। १४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मरागायै नमः अर्ध्या ।
उपरागिका जगदपूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।1 ५ ।।
ॐ आं को ही उपरागिकार्य नमः, अर्ध्य ।
पद्मप्रिया जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। १६ ।।
ॐ आं को हीं पद्मप्रियायै नमः, अर्ध्य ।
पद्मनाभि जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। १७ ।।
ॐ आं की ही पद्मनाभ्यै नमः, अर्ध्या ।
पद्मांगी जगदपूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। १८ ।।
ॐ आं को हीं पद्माग्यै नमः, अर्ध्य ।
पद्मशायिनी जगत्पूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। १६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मशायिन्यै नमः, अर्ध्या ।
पद्मवर्गवती जगदपूज्या सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। २० ।।
ॐ आं कों ह्रीं पद्मवर्णवत्यै नमः, अर्ध्या ।
पूता जगदपूज्या, सर्व संकट घरिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से, दुःख दारिख नाशिनी ।। २१ ।।
ॐ आं को हीं पताये नमः, अर्ध्या ।
पवित्रा, जगत्पूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। २२ ।।
ॐ आं को ही पवित्रायै नमः,
अर्घ्य पापनाशिनी जगदपूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसु द्रव्य से, दुःख दारिद्र नाशिनी ।। २३ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पापानाशिन्यै नमः अर्ध्या ।
प्रभावती जगदपूज्या, सर्व संकट हारिणी,
पूजा करूँ वसुदव्य से दुःख दारिद्र नाशिनी ।। २४ |।
आं की हीं प्रभावदयै नमः, अर्ध्या ।
प्रसिद्धा तव नाम है दुःख करो अति दूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। २५ ।।
ॐ आं को हीं प्रसिद्धायै नमः, अर्ध्या ।
पार्वती तब नाम है, दुःख कसे अति दूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से, आनन्द हो भरपूर ।| २६ ।।
ॐ आं को ही पार्वत्यै नमः, अर्ध्य ।
पुरवासिनी तव नाम है, दुःख करो अति दूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से, आनन्द हो भरपूर ।। २७ ।।
ॐ आं को ही पुरवासिन्यै नमः, अर्ध्या ।
प्रज्ञा तब नाम है, दुःख करो अतिदूर, पूजा करूँ वसुद्रव्य से,
आनन्द हो भरपूर ।। २८ ।। ॐ आं को हीं प्रज्ञायै नमः, अर्ध्या ।
प्रह्लादिनी तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से, आनन्द हो भरपूर । २६ ।
ॐ आं कों ह्रीं प्रह्लादिन्यै नमः, अर्ध्या ।
प्रीता तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से, आनन्द हो भरपूर ।। ३० ।।
ॐ आं को हीं प्रीतायै नमः, अर्घ्यं ।
पीतामा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से, आनन्द हो भरपूर ।। ३१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पीतामायै नमः, अर्ध्या ।
पद्माम्बिका तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से, आनन्द हो भरपूर ।। ३२ ।।
ॐ आं की ही पद्माम्बिकायै नमः, अयं ।
पातालवासिनी तब नाम है, दुःख करो अतिदूर
पूजा करूँ वसुदव्य से, आनन्द हो भरपूर ।। ३३ ।।
ॐ आं को ही पातालवासिन्यै नमः, अर्घ्य ।
पूर्णा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ३४ ।।
ॐ आं की हीं पूर्णाय नमः, अर्ध्य ।
पद्मयोनि तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ३५ ।।
ॐ आं की ही पद्मयोन्यै नमः अर्ध्या ।
प्रियंवदा तव नाम है, दुःख करो अतिंदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर । १३६ ।।
ॐ आं को ही प्रियंवदायै नमः, अर्ध्या ।
प्रदीप्ता तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर | |३७||
ॐ आं को ही प्रदीप्तायै नमः, अर्घ्यं ।
पाशहस्ता तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ३८ ।।
ॐ आं कीं ह्रीं पाशहस्तायै नमः, अर्ध्या ।
पेरा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर | |३६||
ॐ आं को ह्रीं परायै नमः, अर्ध्या ।
परा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ||४०||
ॐ आं को ही पराये नमः,, अर्ध्य |
परम्परा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं परम्परायै नमः, अर्ध्य ।
पिंगला तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४२ ।।
ॐ आं को ही पिंगलायै नमः, अर्घ्य ।
परमा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४३ |।
आं की डीं परमायै नमः, अर्ध्या ।।
पूरा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा से आनन्द हो भरपूर ॥ १४४ ॥
जां क्रीं ह्रीं पूरायै नमः, अयं । करूँ वसुदव्य
पिंगा तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४५ ।।
ॐ आं को ही पिंगायै नमः अर्थ ।
प्राची तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुंदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४६ ।।
आं कों ह्रीं प्राच्चै नमः, अर्ध्या ।
प्रतीची तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४७ ॥
ॐ आं को हीं प्रतीच्यै नमः, अर्ध्या ।
परकार्यपरा तब नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ४८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं परकार्यपरायै नमः, अर्ध्या ।
पृथिवी तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुदव्य से आनन्द हो भरपूर || ४६ ||
ॐ आं कों ह्रीं पृथिव्यै नमः, अर्घ्य ।
पार्थिवी तव नाम है, दुःख करो अतिदूर,
पूजा करूँ वसुद्रव्य से आनन्द हो भरपूर ।। ५० ।।
आं कौं ह्रीं पार्थिव्यै नमः, अर्घ्य पृथिवीपति भी नाम है
शान्ति दाता काम, जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर । । ५१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं प्रथिवीपत्यै नमः, अर्ध्या ।
पल्लवा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५२ ।।
ॐ आं कीं ह्रीं पल्लवायै नमः, अर्ध्या ।
प्राणदा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५२ ।।
ॐ आं कीं ह्रीं पल्लवायै नमः, अर्ध्या ।
प्राणदा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५३ ।।
ॐ आं कों ह्रीं प्राणदायै नमः, अर्ध्या ।
पांत्रा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पांत्रायै नमः, अर्ध्या ।
पवित्रांगी भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५५ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पवित्रांम्यै नमः, अर्ध्य
पूतना भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५६ ।।
ॐ आं की ही पूतनायै नमः, अर्ध्या ।
प्रभा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५७ ।।
ॐ आं को हीं प्रभायै नमः,
पताकिनी भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५८ ।।
ॐ आं ॐ ह्रीं पताकिन्यै नमः, अर्ध्य ।|
पीता भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ५६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पीतायै नमः,
अर्ध्य पन्नगाधिपशेखरा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| १६० ।।
ॐ आं को ही पन्नगाधिपशेखरायै नमः, अर्ध्य ।
पताका भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| ६१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पताकायै नमः, अर्ध्य ।
पद्मकटिनी भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| ६२ ।।
ॐ आं को हीं पद्मकटिन्यै नमः, अर्ध्या ।
पतिमान्य भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| ६३ ।।
ॐ आं कहीं पतिमान्यायै नमः, पराक्रमा भी नाम है
शान्ति दाता काम, जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| ६४ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पराक्रमायै नमः,
अर्थ पादाम्बुजधरा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ६५ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पादाम्बुजधरायै नमः अर्थ |
पुष्टि भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| ६६ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पुष्ट्ये नमः, अर्ध्या ।
परमागमबोधिनी भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर । ६७ ।।
ॐ आं कों ह्रीं परमागमबोधिन्यै नमः, अर्ध्या ।
परमात्मा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर । ६८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं परमात्मायै नमः, अर्घ्य ।
परमानन्दा भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।| ६६ ।।
ॐ आं कहीं परमानन्दायै नमः, अर्ध्या ।
प्रसन्ना भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ७० ।।
ॐ आं को ही प्रसन्नायै नमः,
अर्घ्य पात्रपोषिणी भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर । ।७१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं पात्रपोषिण्यै नमः, अर्ध्या ।
पंचबाणगति भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ७२ ।।
ॐ आं क्रीं ह्रीं पंचबाणगदयै नमः, अये ।
पौत्री भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ७३ ।।
ॐ आं कीं ह्रीं पौत्र्ये नमः, अर्ध्या ।
पाखंडघ्नी भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर ।। ७४ ।।
ॐ आं को ही पाखंडध्यै नमः, अर्घ्यं ।
पितामही भी नाम है शान्ति दाता काम,
जगत शान्तिदायिनी मेरी इच्छा पूर । ७५ ।।
ॐ आं कीं ह्रीं पितामहूयै नमः, अर्ध्या ।
प्रहेलिका का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।।७६ ।।
ॐ आं को ही प्रहेलिकायै नमः, अर्घ्य ।
प्रत्यंचा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।।७७ ।।
ॐ आं को ही प्रत्यंचायै नमः, अर्घ्य ।
प्रथुपापौधनाशिनी का अर्घ्य करूँ, बसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय । १७८ ।।
ॐ आं को ही प्रघुपापौधनाशिन्यै नमः, अर्घ्य ।
पूर्णचन्द्रमुखी का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय । ।७६ ।।
ॐ आं को ही पूर्णचन्द्रमुख्यै नमः, अर्घ्य ।
पुण्या का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८० ।।
ॐ आं को ही पुण्यायै नमः, अर्घ्य ।
फुलोमा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८१||
ॐ आं की ही फुलोमाये नमः, अर्घ्य ।
पूर्णिमा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।
ॐ आं को हीं पूर्णिमायै नमः, अर्घ्य ।
प्रथा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय, ।।८२ ।।
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८३ ।।
ॐ आं कों ही प्रथायै नमः, अर्घ्य।
पाविनी का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८४ ।।
ॐ आं की हीं पाविन्यै नमः, अर्घ्य ।
परमानन्दा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८५ ।।
ॐ आं को ही परमानन्दायै नमः, अर्घ्य ।
पंडिता का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८६ ।।
ॐ आं को ही पंडितायै नमः, अर्घ्य ।
पंडितेडिता का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८७ ।।
ॐ आं को ही पंडितेडितायै नमः, अर्घ्य ।
प्रांशुलभ्या का अर्घ्य करूँ, बसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।| ८८ ।।
ॐ आं की ही प्रांशुलभ्यायै नमः, अर्घ्य ।
प्रमेया का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ८६ ।।
ॐ आं को ही प्रमेयायै नमः, अर्घ्य ।
प्रमा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६० ।।
ॐ आं को ही प्रमायै नमः, अर्घ्य ।
प्राकारवर्तिनी का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६१ ।।
ॐ आं कों ही प्राकारवर्तिन्यै नमः, अर्घ्य ।
प्रधाना का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६२ ।।
ॐ आं कीं ह्रीं प्रधानायै नमः, अर्घ्य ।
प्राविता का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।| ६३ ।।
ॐ आं को ही प्राथितायै नमः, अर्घ्य ।
प्रार्थ्य का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रष्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।| १६४ ।।
ॐ आं कों हीं प्राध्यायै नमः, अर्घ्य ।
पटुदा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६५ ।।
ॐ आं को ही पटुदायै नमः, अर्घ्य ।
पंक्तिपूरणी का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६६ ।।
ॐ आं की ही पंक्तिपूरण्यै नमः, अर्घ्य ।
पातालस्था का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।
ॐ आं कौ ह्रीं पातालस्थायै नमः, अर्घ्य । ।। ६७ ।।
पातालेश्वरी का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रब्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६८ ||
ॐ आं को ही पातालेश्वयै नमः, अर्घ्य ।
प्रणा का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।। ६६ ||
ॐ आं को ही प्रणायै नमः, अर्घ्य ।
प्रेयसी का अर्घ्य करूँ, वसुविधि द्रव्य मिलाय,
धर्म ध्यान वृद्धि करो, अष्ट ऋद्धि मिल जाय ।| 1900 ||
ॐ आं को ही प्रेयस्यै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रजाप १०८ लौंग से
ॐ ह्रीं श्री पद्मावती देब्यै नमः। मम इच्छित फल प्राप्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
पूर्ण अर्ध्य
जल फल आठो भुसार मात को अर्घ्य करो।
तुम को पूजों दुःखतार, दुखतरी, कार्य करो ।।
पद्मावती श्री जिन भक्त आनन्द कंद सही,
तुम्हें जजत हरत दुःख फंद पावन सुखवही ।।
ॐ आं को हीं पद्मावत्यादि प्रेयस्यन्त शतनामधारिण्यै अर्घ्य समर्पयामि
शांतिधारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
नानाविधि के पुष्प लें, पुष्पांजलि कराय ।
कोमल हो तुम पुष्पसम, वासित जग हो जाय ।। 9 ||
ॐ दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
महाज्योतिष्मति देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २ ।।
ॐ आं को हीं महाज्योतिष्मत्यै नमः, अर्घ्य ।
मातृ देवी, सर्व विष्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ३ ।।
ॐ आं को हीं मात्रे नमः, अर्घ्य ।
महा देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ४ ||
ॐ आं को हीं मायायै नमः, अर्घ्य ।
माया देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ५।।
ॐ आं को ही महायै नमः, अर्घ्य ।
महासती देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ६ ।।
ॐ आं को हीं महासत्यै नमः, अर्घ्य ।
महादीप्ति देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ७ ||
ॐ आं को ही महादीप्त्यै नमः, अर्घ्य ।
मति देवी, सर्व विप्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ८ ।।
ॐ आं को ह्रीं मत्यै नमः, अर्घ्य ।
मित्रा देवी, सर्व विष्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ६ ।।
ॐ आं को ही मित्रायै नमः, अर्घ्य ।
महाचण्डी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
ॐ आं को हीं महाचण्ड्रयै नमः, अर्घ्य ।
मंगला देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ११||
ॐ आं को हीं मंगलायै नमः, अर्थ ।
महिषी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १२ ।।
ॐ आं को हीं महिष्यै नमः, अर्घ्य ।
मानसी देवी, सर्व विष्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १३ ।।
ॐ आं को ह्रीं मानस्यै नमः, अर्घ्य ।
मेध देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १४ ||
ॐ जां कौं ह्रीं मेधायै नमः, अर्घ्य ।
महालक्ष्मी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १५ ।।
ॐ आं काँ हीं महालक्ष्म्यै नमः, अर्घ्य ।
मनोहरा देवी, सर्व विप्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १६ ।।
ॐ आं को ही मनोहरायै नमः, अर्घ्य ।
मदापहारिणी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १७ ||
ॐ आं को ही पदापहारिण्यै नमः, अर्घ्य ।
मृग्या देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १८ ||
ॐ आं कों हीं मृग्यायै नमः, अर्घ्य ।
मानिनी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १६ ।।
ॐ आं को हीं मानिष्यै नमः, अर्घ्य ।
मानशालिनी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २० ।।
ॐ आं को हमें मानशालिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मार्गदात्री देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
मार्गदात्री देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २१ ।।
ॐ आं को हीं मार्गदात्र्यै नमः, अर्घ्य ।
मुहूर्ता देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २२ |।
ॐ आं को हीं मुहूतायै नमः, अर्घ्य ।
माधवी देवी, सर्व विष्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २३ ।।
ॐ आं को ही माधव्यै नमः, अर्घ्य ।
मधुमती देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २४ ।।
ॐ आं को हीं मधुमत्यै नमः, अर्घ्य ।
मही देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ५।।
ॐ आं को ह्रीं मयै नमः, अर्घ्य ।
महेश्वरी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। २६ ।।
ॐ आं कों हीं महेश्वर्यै नमः, अर्घ्य ।
महेज्या मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। २७ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महेज्यायै नमः, अर्घ्य ।
मुक्ताहारविभूषिणी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। २८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं मुक्ताहारविभूषिण्यै नमः, अर्घ्य ।
महामुद्रा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । । २६ ।।
ॐ आं कों ही महामुद्रायै नमः, अर्घ्य ।
मनोज्ञा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।३० ।।
ॐ आं कों ह्रीं मनोज्ञायै नमः, अर्घ्य ।
महाश्वेता मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महाश्वेतायै नमः, अर्घ्य ।
अतिमोहिनी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३२ ।।
ॐ आं कों हीं अतिमोहिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मधुप्रिया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३३ ।।
ॐ आं को ही मधुप्रियायै नमः, अर्घ्य ।
मह्या मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । । ३४ ।।
ॐ आं कों कीं महूयायै नमः, अर्घ्य ।
माया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।३५ ।।
ॐ आं कों ह्रीं मायायै नमः, अर्घ्य ।
मोहनी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३६ ।।
ॐ आं कों ही मोहब्दयै नमः, अर्घ्य ।
मनस्विनी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । । ३७ ।।
ॐ आं को हीं मनस्विन्यै नमः, अर्घ्य ।
माहिष्मती नात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों को सेवा करो, करो धर्म प्रचार । ।३८ ।।
ॐ आं कों ही माहिष्मत्यै नमः, जर्थ्य।
महावेगा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।३६ ।।
ॐ आं कों हीं महत्वेगायै नमः, अर्घ्य।
मानदा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।४० ।।
ॐ आं कों ह्रीं मानदायै नमः, अर्घ्य ।
मानहारिणी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । ।४१ ।।
ॐ आं कों हीं मानहारिण्य नमः, अर्घ्य ।
महाप्रभा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महाप्रभायै नमः, अर्घ्य ।
मदना मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४३ ।।
ॐ आं को हीं मदनायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रवश्या मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४४ ।।
ॐ आं कों ही मंत्रवश्यायै नमः, अर्घ्य ।
ॐ आं कों हीं मुनिप्रियायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्ररूपा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४६ ।।
ॐ आं को ही मंत्ररूपायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रज्ञा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४७ ।।
ॐ आं को ही मंत्रज्ञायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रदा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४८ ।।
ॐ आं कों हीं मंत्रदायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रसागरा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४६ ।।
ॐ जां कों ही मंत्रसागरायै नमः, अर्थ ।
मनःप्रिया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ५० ।।
ॐ आं कों हीं मनःप्रियायै नमः, अर्घ्य ।
महाकाया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ५१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महाकायायै नमः, अर्घ्य ।
महाशीलवती देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५२ ।।
ॐ आं को हीं महशीलायै नमः, अर्घ्य ।
महाभुजा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५३ ।।
ॐ आं को हीं महाभुजायै नमः, अर्घ्य ।
महाशया देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।।५४ ।।
ॐ आं को हीं महशयायै नमः, अर्घ्य ।
महारक्षा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५५ ।।
ॐ आं को हीं महारक्षायै नमः, अर्घ्य ।
मनोभेदा देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५६ ।।
ॐ आं की ही मनोभेदायै नमः, अर्घ्य ।
महाक्षमा देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५७ ।।
ॐ आं को ही महाक्षमायै नमः, अर्थ।
महाकान्तिधरा देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५८ ।।
ॐ आं को ही महाकान्तिधरायै नमः, अर्घ्य ।
मुक्ता देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५६ ।।
ॐ आं को हीं मुक्तायै नमः, अर्घ्य ।
महाव्रतसहायिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६० ।।
ॐ आं को ही महाव्रतसहायिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मधुस्रवा देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६१ ।।
ॐ आं कों हीं मधुम्रवायै नमः, अर्घ्य ।
मूर्च्छना देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६२ ।।
ॐ आं को ह्रीं मूर्च्छनायै नमः, अर्घ्य ।
मृगाक्षी देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६३ ।।
ॐ आं को हीं मृगाक्ष्यै नमः, अर्घ्य ।
मृगावती देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६४ ।।
ॐ आं को हीं मृगावत्यै नमः, अर्घ्य ।
मृणालिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६५ ।।
ॐ आं को ही मृणालिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मनःपुष्टि देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६६ ।।
ॐ आं को ही मनःपुष्टयै नमः, अर्घ्य ।
महाशवती देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो। ।। ६७ ।।
आं को ह्रीं महाशवत्यै नमः, अर्थ।
महार्थदा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६८ ।।
आं कौ हीं महत्र्थदायै नमः, अर्घ्य ।
मूलाधारा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६६ ।।
ॐ आं को ही मूलाधारायै नमः, अर्घ्य ।
मृडानी देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ७० ۱۱
ॐ आं की ही मृडान्यै नमः, अर्घ्य ।
मत्ता देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ७१।।
ॐ आं को ह्रीं मत्तायै नमः, अर्घ्य ।
मातंगगामिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ७२ ।।
ॐ आं को हीं मातंगगामिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मंदाकिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो । । ७३ ।।
ॐ आं को ह्रीं मंदाकिन्यै नमः, अर्घ्य ।
महाविद्या देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो
ॐ आं कों हीं महाविद्यायै नमः, अर्घ्य ।
मर्यादा देवी, इस जग में आनन्द करती हो। ||७४ ||
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो। ७५ ।।
ॐ आं कों ही मर्यादायै नमः, अर्घ्य ।
मेघमालिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ७६ ।।
ॐ आं को ही मेषमालिन्यै नमः, अर्घ्य ।
माता है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।| ७७ ।।
ॐ आं को ही मात्रे नमः, अर्घ्य ।
मातामही है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।७८ ।।
ॐ ही मातामहूयै नमः, अर्घ्य ।
मन्दगति है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।७६ ।।
ॐ आं को हीं मंदगत्यै नमः, अर्घ्य ।
महाकेशी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । |८० ।।
ॐ आं को ही महाकेस्यै नमः, अर्घ्य ।
महीधरा है तब नाम, शीघ्र करो तुम अबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । १८१।।
ॐ आं को हीं महीधरायै नमः, अर्घ्य ।
महोत्साहा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।८२ ।।
ॐ आं को ही महोत्साहायै नमः, अर्घ्य ।
महादेवी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ८३ ।।
ॐ आं को ही महादेव्यै नमः, अर्घ्य । महिला है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।८४ ।।
ॐ आं को हीं महिलायै नमः, अर्घ्य ।
मानवर्द्धिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ८५ ।।
ॐ आं को हीं मानवर्द्धिन्यै नमः, अर्घ्य । महाग्रहा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ८६ ।।
ॐ आं को ही महाग्रहायै नमः, अर्घ्य ।
महाहरा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । ।८७ ।।
ॐ आं कों ही महाहरायै नमः, अर्घ्य ।
महामाया है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । १८८ ||
ॐ आं कौं हीं महामायायै नमः, अर्घ्य ।
मोक्षमार्गप्रकाशिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । १८६ ।।
ॐ आं को ही मोक्षमार्गप्रकाशिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मान्या है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
ॐ आं कॉ हीं मान्यायै नमः, अर्घ्य ।
मानवती है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६१ ।।
ॐ आं की ही मानवत्यै नमः, अर्घ्य ।
मानी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६२ ।।
ॐ आं की हीं मान्यै नमः, अर्घ्य ।
मणिनूपुरशोभिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६३ ।।
ॐ आं को ही मणिनूपुरतोषिन्यै नमः, अध्यं ।
मणिकान्तिधरा है रा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६४ ।।
ॐ आं कों हीं मणिकान्तिधरायै नमः, अर्घ्य ।
मीना है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६५ ।।
ॐ आं को ही मीनायै नमः, अर्घ्य ।
महामतिप्रकाशिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६६ ।।
ॐ आं को हीं महामतिप्रकाशिन्यै नमः, अर्घ्य ।
महातन्त्रा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६७ ।।
ॐ आं को हीं महातन्त्रायै नमः, अर्घ्य ।
महादक्षा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६८ ।।
ॐ आं को ही महादक्षायै नमः, अध्यं ।
मेध है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ६६ ।।
ॐ आं की हीं मेधायै नमः, अर्घ्य ।
मुग्धा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।| १०० ।।
ॐ आं को ही मुग्धायै नमः, अर्घ्य ।
महागुणा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। १०१ ।।
ॐ आं को ही महागुणायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्र जाप्य १०८ लौंग से ।
ॐ ह्रीं श्री पद्मवती देवी मम इच्छितफलप्राप्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
पूर्ण अर्ध्य
जलफलादि समस्त मिलायके, यजत हूँ देवि गुण गायके ।
भगतवत्सल दीन दयाल हो, करहु भक्त को, सुखी हे मात जी ।।
ॐ आं को हीं महाज्योतिष्मत्यादि महागुणान्तशतनामधारिण्यै अर्ध्य समर्पयामि ।
शांतिधारा, पुष्पांजलंक्षिपेत ।
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