तृतीय कोष्ठ का अर्घ्य शतक part 9 (tritiy koshth ka arghya shatak)

 तृतीय कोष्ठ का अर्घ्य शतक

नानाविधि के पुष्प लें, पुष्पांजलि कराय ।
कोमल हो तुम पुष्पसम, वासित जग हो जाय ।। 1 ||
ॐ दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
महाज्योतिष्मति देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ।।
ॐ आं को हीं महाज्योतिष्मत्यै नमः, अर्घ्य ।
मातृ देवी, सर्व विष्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ३ ।।
ॐ आं को हीं मात्रे नमः, अर्घ्य ।
महा देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ||
ॐ आं को हीं मायायै नमः, अर्घ्य ।
माया देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ५।।
ॐ आं को ही महायै नमः, अर्घ्य ।
महासती देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ।।
ॐ आं को हीं महासत्यै नमः, अर्घ्य ।
महादीप्ति देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ||
ॐ आं को ही महादीप्त्यै नमः, अर्घ्य ।
मति देवी, सर्व विप्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ८ ।।
ॐ आं को ह्रीं मत्यै नमः, अर्घ्य ।
मित्रा देवी, सर्व विष्न का नाश करो । 
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। 9  ।।
ॐ आं को ही मित्रायै नमः, अर्घ्य ।
महाचण्डी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार । । 0 ||
ॐ आं को हीं महाचण्ड्रयै नमः, अर्घ्य ।
मंगला देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ११||
ॐ आं को हीं मंगलायै नमः, अर्थ
महिषी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १२ ।।
ॐ आं को हीं महिष्यै नमः, अर्घ्य ।
मानसी देवी, सर्व विष्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।।  १३ ।।
ॐ आं को ह्रीं मानस्यै नमः, अर्घ्य ।
मेध देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १४ ||
ॐ जां कौं ह्रीं मेधायै नमः, अर्घ्य ।
महालक्ष्मी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १५ ।।
ॐ आं काँ हीं महालक्ष्म्यै नमः, अर्घ्य ।
मनोहरा देवी, सर्व विप्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १६ ।।
ॐ आं को ही मनोहरायै नमः, अर्घ्य ।
मदापहारिणी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो ।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १७ ||
ॐ आं को ही पदापहारिण्यै नमः, अर्घ्य ।
मृग्या देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १८ ||
ॐ आं कों हीं मृग्यायै नमः, अर्घ्य ।
मानिनी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। १9 ।।
ॐ आं को हीं मानिष्यै नमः, अर्घ्य ।
मानशालिनी देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २० ।।
ॐ आं को हमें मानशालिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मार्गदात्री देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
मार्गदात्री देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २१ ।।
ॐ आं को हीं मार्गदात्र्यै नमः, अर्घ्य ।
मुहूर्ता देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २२ |
ॐ आं को हीं मुहूतायै नमः, अर्घ्य ।
माधवी देवी, सर्व विष्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २३ ।।
ॐ आं को ही माधव्यै नमः, अर्घ्य ।
मधुमती देवी, सर्व विघ्न का नाश करो
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। २४ ।।
ॐ आं को हीं मधुमत्यै नमः, अर्घ्य ।
मही देवी, सर्व विघ्न का नाश करो।
धर्म ध्यान में लीन रहो, करो जगत उद्धार ।। ५।।
ॐ आं को ह्रीं मयै नमः, अर्घ्य ।
महेश्वरी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। २६ ।।
ॐ आं कों हीं महेश्वर्यै नमः, अर्घ्य ।
महेज्या मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। २७ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महेज्यायै नमः, अर्घ्य ।
मुक्ताहारविभूषिणी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। २८ ।।
ॐ आं कों ह्रीं मुक्ताहारविभूषिण्यै नमः, अर्घ्य ।
महामुद्रा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । । २9 ।।
ॐ आं कों ही महामुद्रायै नमः, अर्घ्य ।
मनोज्ञा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।३० ।।
ॐ आं कों ह्रीं मनोज्ञायै नमः, अर्घ्य ।
महाश्वेता मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महाश्वेतायै नमः, अर्घ्य ।
अतिमोहिनी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३२ ।।
ॐ आं कों हीं अतिमोहिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मधुप्रिया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३३ ।।
ॐ आं को ही मधुप्रियायै नमः, अर्घ्य  
मह्या मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । । ३४ ।।
ॐ आं कों कीं महूयायै नमः, अर्घ्य ।
माया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।३५ ।।
ॐ आं कों ह्रीं मायायै नमः, अर्घ्य ।
मोहनी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ३६ ।।
ॐ आं कों ही मोहब्दयै नमः, अर्घ्य ।
मनस्विनी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । । ३७ ।।
ॐ आं को हीं मनस्विन्यै नमः, अर्घ्य ।
माहिष्मती नात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों को सेवा करो, करो धर्म प्रचार । ।३८ ।।
ॐ आं कों ही माहिष्मत्यै नमः, जर्थ्य।
महावेगा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।39।।
ॐ आं कों हीं महत्वेगायै नमः, अर्घ्य।
मानदा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।।४० ।।
ॐ आं कों ह्रीं मानदायै नमः, अर्घ्य ।
मानहारिणी मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार । ।४१ ।।
ॐ आं कों हीं मानहारिण्य नमः, अर्घ्य ।
महाप्रभा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४२ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महाप्रभायै नमः, अर्घ्य ।
मदना मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४३ ।।
ॐ आं को हीं मदनायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रवश्या मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४४ ।।
ॐ आं कों ही मंत्रवश्यायै नमः, अर्घ्य ।
ॐ आं कों हीं मुनिप्रियायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्ररूपा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४६ ।।
ॐ आं को ही मंत्ररूपायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रज्ञा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४७ ।।
ॐ आं को ही मंत्रज्ञायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रदा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ४८ ।।
ॐ आं कों हीं मंत्रदायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्रसागरा मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। 49 ।।
ॐ जां कों ही मंत्रसागरायै नमः, अर्थ ।
मनःप्रिया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ५० ।।
ॐ आं कों हीं मनःप्रियायै नमः, अर्घ्य ।
महाकाया मात तुम, सब जग में विख्यात ।
मुनियों की सेवा करो, करो धर्म प्रचार ।। ५१ ।।
ॐ आं कों ह्रीं महाकायायै नमः, अर्घ्य ।
महाशीलवती देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५२ ।।
ॐ आं को हीं महशीलायै नमः, अर्घ्य ।
महाभुजा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५३ ।।
ॐ आं को हीं  महाभुजायै  नमः, अर्घ्य ।
महाशया देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।।५४ ।।
ॐ आं को हीं महशयायै नमः, अर्घ्य ।
महारक्षा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५५ ।।
ॐ आं को हीं महारक्षायै नमः, अर्घ्य ।
मनोभेदा देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५६ ।।
ॐ आं की ही मनोभेदायै नमः, अर्घ्य ।
महाक्षमा देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५७ ।।
ॐ आं को ही महाक्षमायै नमः, अर्थ।
महाकान्तिधरा देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ५८ ।।
ॐ आं को ही महाकान्तिधरायै नमः, अर्घ्य ।
मुक्ता देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। 59 ।।
ॐ आं को हीं मुक्तायै नमः, अर्घ्य ।
महाव्रतसहायिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६० ।।
ॐ आं को ही महाव्रतसहायिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मधुस्रवा देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६१ ।।
ॐ आं कों हीं मधुम्रवायै नमः, अर्घ्य ।
मूर्च्छना देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६२ ।।
ॐ आं को ह्रीं मूर्च्छनायै नमः, अर्घ्य ।
मृगाक्षी देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६३ ।।
ॐ आं को हीं मृगाक्ष्यै नमः, अर्घ्य ।
मृगावती देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६४ ।।
ॐ आं को हीं मृगावत्यै नमः, अर्घ्य ।
मृणालिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६५ ।।
ॐ आं को ही मृणालिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मनःपुष्टि देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६६ ।।
ॐ आं को ही मनःपुष्टयै नमः, अर्घ्य ।
महाशवती देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो। ।। ६७ ।।
आं को ह्रीं महाशवत्यै नमः, अर्थ।
महार्थदा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ६८ ।।
आं कौ हीं महत्र्थदायै नमः, अर्घ्य ।
मूलाधारा देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। 69 ।।
ॐ आं को ही मूलाधारायै नमः, अर्घ्य ।
मृडानी देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ७० ۱۱
ॐ आं की ही मृडान्यै नमः, अर्घ्य ।
मत्ता देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ७१।।
ॐ आं को ह्रीं मत्तायै नमः, अर्घ्य ।
मातंगगामिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो ।। ७२ ।।
ॐ आं को हीं मातंगगामिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मंदाकिनी देवी, इस जग में आनन्द करती हो।
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती  हो । । ७३ ।।
ॐ आं को ह्रीं मंदाकिन्यै नमः, अर्घ्य ।
महाविद्या देवी, इस जग में आनन्द करती हो ।
दुःख दूर  करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो
ॐ आं कों हीं महाविद्यायै नमः, अर्घ्य ।
मर्यादा देवी, इस जग में आनन्द करती हो। ||७४ ||
दुःख दूर करो इस जग का, सबको आनन्द करती हो। ७५ ।।
ॐ आं कों ही मर्यादायै नमः, अर्घ्य ।
मेघमालिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ७६ ।।
ॐ आं को ही मेषमालिन्यै नमः, अर्घ्य ।
माता है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।| ७७ ।।
ॐ आं को ही मात्रे नमः, अर्घ्य ।
मातामही है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।७८ ।।
ॐ ही मातामहूयै नमः, अर्घ्य ।
मन्दगति है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।79 ।।
ॐ आं को हीं मंदगत्यै नमः, अर्घ्य ।
महाकेशी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । |८० ।।
ॐ आं को ही महाकेस्यै नमः, अर्घ्य ।
महीधरा है तब नाम, शीघ्र करो तुम अबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । ८१।।
ॐ आं को हीं महीधरायै नमः, अर्घ्य ।
महोत्साहा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।८२ ।।
ॐ आं को ही महोत्साहायै नमः, अर्घ्य ।
महादेवी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ८३ ।।
ॐ आं को ही महादेव्यै नमः, अर्घ्य । महिला है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।।८४ ।।
ॐ आं को हीं महिलायै नमः, अर्घ्य ।
मानवर्द्धिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ८५ ।।
ॐ आं को हीं मानवर्द्धिन्यै नमः, अर्घ्य । महाग्रहा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। ८६ ।।
ॐ आं को ही महाग्रहायै नमः, अर्घ्य ।
महाहरा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । ।८७ ।।
ॐ आं कों ही महाहरायै नमः, अर्घ्य ।
महामाया है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । ८८ ||
ॐ आं कौं हीं महामायायै नमः, अर्घ्य ।
मोक्षमार्गप्रकाशिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल । 89 ।।
ॐ आं को ही मोक्षमार्गप्रकाशिन्यै नमः, अर्घ्य ।
मान्या है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 90 ।।
ॐ आं कॉ हीं मान्यायै नमः, अर्घ्य ।
मानवती है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 91 ।।
ॐ आं की ही मानवत्यै नमः, अर्घ्य ।
मानी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 92 ।।
ॐ आं की हीं मान्यै नमः, अर्घ्य ।
मणिनूपुरशोभिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 93 ।।
ॐ आं को ही मणिनूपुरतोषिन्यै नमः, अध्यं ।
मणिकान्तिधरा है रा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 94 ।।
ॐ आं कों हीं मणिकान्तिधरायै नमः, अर्घ्य ।
मीना है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 95 ।।
ॐ आं को ही मीनायै नमः, अर्घ्य ।
महामतिप्रकाशिनी है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 96 ।।
ॐ आं को हीं महामतिप्रकाशिन्यै नमः, अर्घ्य ।
महातन्त्रा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 97 ।।
ॐ आं को हीं महातन्त्रायै नमः, अर्घ्य ।
महादक्षा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 98 ।।
ॐ आं को ही महादक्षायै नमः, अध्यं ।
मेध है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। 99 ।।
ॐ आं की हीं मेधायै नमः, अर्घ्य ।
मुग्धा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।| 100 ।।
ॐ आं को ही मुग्धायै नमः, अर्घ्य ।
महागुणा है तव नाम, शीघ्र करो तुम सबका काम ।
जन-जन पूजे मिल भक्ति भाव, हरो सभी का संकट जाल ।। १०१ ।।
ॐ आं को ही महागुणायै नमः, अर्घ्य ।
मंत्र जाप्य १०८ लौंग से ।
ॐ ह्रीं श्री पद्मवती देवी मम इच्छितफलप्राप्तिं कुरु कुरु स्वाहा
पूर्ण अर्ध्य
जलफलादि समस्त मिलायके, यजत हूँ देवि गुण गायके ।
भगतवत्सल दीन दयाल हो, करहु भक्त को, सुखी हे मात जी ।।
ॐ आं को हीं महाज्योतिष्मत्यादि महागुणान्तशतनामधारिण्यै अर्ध्य समर्पयामि
शांतिधारा, पुष्पांजलंक्षिपेत ।

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