सिटौला (पहाड़ी मैना पक्षी ) Sitaula (mountain myna bird)

सिटौला (पहाड़ी मैना पक्षी ) Sitaula (mountain myna bird)

यह पक्षी प्रायः हमारे उतराखण्ड के सभी भागों में पाया जाता है। परन्तु यह एशिया के कुछ देशों में ही दिखाई देता है। इसको अंग्रेजी भाषा में भी मैना ही कहते है। मैना भी, गौरेया की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। मैना ज्यादातर पुराने खण्डहर, गांव के मैदानों, खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है। 

     नर और मादा के रूप-रंग में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता है। मजेदार बात यह है कि नर वयस्क मैना का वजन 110 ग्राम और वयस्क मादा मैना का वजन 130 से 140 ग्राम होता है। यह खैरे (black brown) रंग की चिड़िया होती है। इसका सिर, गर्दन, पूंछ व सीना काले रंग का होता है और इसकी पूंछ व पेट के कुछ पंख सफेद होते है और इसकी चौंच, पैर का रंग पीला, आँखों के पीछे तक ओर फीते की तरह पीली खाल बढती रहती है। यह दूसरे पक्षियों के घोंसलों में अपने अंडे देती है। मादा फरवरी से मई के बीच में दो-तीन नीली छौंह हरे रंग के अंडे देती है।  

मैना का मुख्य भोजन तो भारत में कीड़े मकोड़े, दाना व रोटी- बिस्कुट के टुकड़े आदि हैं, लेकिन कही कही यह फूलों का रस भी पीती दिखती है।
किंवदंती यह है कि उन दिनों वहां एक फकीर थे, हजरत शाह मुस्तकबिल. उनके पास अलग-अलग पिंजरों में एक मैना और एक तोता था. वे एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे. रहीम फकीर से मिले और शहर की आबादी के लिए पानी मुहैया कराने की गुजारिश की. फकीर ने कहा, “मैं इन दोनों परिंदों को आजाद कर देता हूं. वे तुम्हें पानी के पास तक राह दिखाएंगे. यही हुआ तोता और मैना पहाड़ की चोटी पर जाकर एक चट्टान पर बैठ गए. चट्टान धंस कर बहुत नीचे पानी के भंडार में गिर गई. मैना और तोता को खोजा गया तो उनके मृत शरीर मिले. दोनों ने अपने पंखों से एक-दूसरे को प्यार से जकड़ा हुआ था. फकीर ने उनको देख कर कहा कि उसे पता है, उन्हें पिंजरे में अलग-अलग रहने के बजाए मर जाना पसंद था. कहते हैं, अब्दुर रहीम खान-ए-खाना ने उनकी समाधि बना दी. अंग्रेज राजदूत थामस रो ने भी अपनी पुस्तक में इस किस्से का जिक्र किया था. इस घटना की याद में रहीम ने यह दोहा लिखा था:

रहिमन खोजत धरती पर पर्वत ताल तलैया
तोता-मैना राह दिखावै चलता जा बौरेया...

ये आती हैं और मुझे मेरे बचपन में लौटा ले जाती हैं. बचपन से ही मैनाएं मेरी यादों का हिस्सा रही हैं. याद आती हैं और मन के आसमान में चहचहा कर उड़ने लगती हैं. वे दिन! पहली बारिश के बाद जब भीग कर खेतों से माटी की खुशबू आने लगती थी, उसमें आद (नमी) आ जाती थी तो गुजारा-सेतुवा बैलों की जोड़ी और जुवा-हल लेकर पिताजी खेतों की ओर चल पड़ते. साथ में टोकरी में काकुनी (मक्का) के बीज लेकर मां, और उसके साथ मैं. खेत में आगे-आगे पिताजी हल चलाते, उनके पीछे मां कूंड़ में मक्का के बीज गिराती, उनके पीछे कुतूहल से चलता मैं और मेरे पीछे गौरेया की तरह दोनों पैरों पर फुदकती, मिट्टी में कीड़े ढूंढती मैनाएं.

बाद में मैनाएं खेतों की दीवारों पर पत्थरों के भीतर बिलों में फिरोजी नीले रंग के अंडे देती थीं. हम बिलों के भीतर झांक कर उन्हें देखते. कभी कोई अंडा हाथ में भी ले लेते. फिर सावधानी से वहीं रख देते. उस बीच मैना माता-पिता हमारे आसपास आकर श्यांक….श्यांक..कीक….कीक! की भाषा में हमसे जैसे कहते – मत करो! मत छेड़ो उन्हें! अंडों से बच्चे निकल आने के बाद हम उनकी चीं…चीं….चीं…कान लगा कर सुनते. मैनाएं उन्हें कोमल, लप-लप कीड़े लाकर खिलाती थीं. Sitola Myna Bird

हमारी गाय-भैंसें खेतों या जंगल में चरने जातीं तो दो-एक मैनाएं उनकी पीठ पर सवारी करतीं. कोई मैना कान में कीड़े खोजती तो कोई उनके पैरों और थनों पर. घर लौटने पर शाम को गांव में मैनाओं के झुंड जंगली गुलाब यानी कुंय या कुंजा की विशाल झाड़ियों के भीतर बैठ कर चहचहाते हुए कुहराम मचा देतीं. फिर थक-थका कर सो जातीं.
मेरा मन पाखी बचपन के उन दिनों की सैर करके लौट आया है. वे दोनों मैनाएं आ गई हैं. सामने कुसम के पेड़ पर चहचहा रही हैं- चुह…चुह…चुर्र…चुर्र! पतंग उड़ाने के शौकीनों को भला क्या पता कि उनका मांझा हर साल मैनाओं और दूसरे पक्षियों की जान भी ले लेता है. हमारे सामने के कुसम के पेड़ की एक ऊंची डाली पर उलझे मांझे की डोर में पंजा फंसने के कारण एक मासूम मैना की जान चली गई थी. शिबौ-शिब.

मैना को सारिका भी कहा जाता है. यों, इसके कई और भी नाम हैं. संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों में इसके कई नामों से इसका वर्णन किया गया है. ‘कालीदास के पक्षी’ पुस्तक के विद्वान लेखक प्रोफेसर हरिदत्त ने बताया है कि सारिका प्राचीनकाल में उच्चकुल के घरों का एक आवश्यक अंग समझी जाती थी. कुलवधू को श्रृंगार सामग्री के साथ सारिका भी दी जाती थी. वे कहते हैं कि “शब्दकल्पद्रुम में मैना के पंद्रह नाम दिए गए हैं. इनमें पांच नाम उसके मनुष्य की वाणी बोलने की विशेषता को प्रकट करते हैं.”

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