चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple)

चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple)

चिंतपूर्णी मंदिर - यह मंदिर ऊना में स्थित है। मान्यताओं के अनुसार यहाँ पर सती के चरण गिरे थे।
चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple)
ऊना जिला के तहत मां चिंतपूर्णी मंदिर समुद्र तल से करीब 3300 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मां चिंतपूर्णी भगवती श्री छिन्नमस्तिका देवी का प्राचीन स्थान है। प्रदेश के अलावा अन्य बाहरी राज्यों के श्रद्धालू यहां पर पहुंचते हैं। वैसे तो वर्ष भर में कभी भी इस स्थान की यात्रा की जा सकती है, लेकिन श्रद्धालू दूर-दूर से पूरा साल भर मां की पावन पिंडी के दर्शन करने आते रहते हैं। श्रावण माह में 10 दिन के मेले में अधिक संख्या में श्रद्धालू मां के दरबार पहुंचते हैं। श्रावण अष्टमी मेला यहां धूमधाम से मनाया जाता है। श्रद्धालुओं द्वारा श्रावण अष्टमी मेले के अवसर पर लंगर लगाए जाते हैं। श्रद्धालुओं के जत्थे बड़ी श्रद्धा से मां की भेंटें गाते हुए आते हैं।  हलवा, चुनरी, नारियल व लाल ध्वज (झंडे) हाथों में ले कर माता के जयकारे लगाते हुए मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। मां के चरणों में भेंट अर्पण करके अपना जीवन सफल बनाते हैं। चैत्र व आश्विन के नवरात्रों में भी यहां भीड़ रहती है

 क्यों और कैसे पड़ा छिन्नमस्तिका नाम

श्री मार्कंडेय पुराण में किए गए वर्णन के अनुसार जब मां चंडी ने सब राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त कर ली तो उनकी दोनों सहायक योगिनियां जया व विजया कहने लगी, हे मां आप ने तो विजय प्राप्त कर ली, लेकिन हमारी रुधिर पिपासा अभी शांत नहीं हुई। हमें और रुधिर चाहिए। यह बात सुनकर माता चंडी ने उनकी संतुष्टि के लिए स्वयं अपना ही मस्तक काट दिया। जिसमें से दो रक्त व एक जल धारा निकली। रक्त की धारा से दोनों योगिनियों की रुधिर पिपासा को शांत किया गया। इस से भगवती का नाम छिन्नमस्तिका पड़ गया।
चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple) 

रुद्र महादेव का रहता है संरक्षण

प्राचीन धर्म ग्रंथों व पुराणों में छिन्नमस्तिका देवी के निवास के लिए मुख्य तथ्य यह माना गया है कि उस स्थान की चारों दिशाओं में रुद्र महादेव का संरक्षण प्राप्त होगा। छिन्नमस्तिका देवी का निवास स्थान चार शिव मंदिरों से घिरा रहेगा। यह तथ्य चिंतपूर्णी के स्थान पर शत प्रतिशत सही प्रतीत होता है। चिंतपूर्णी मंदिर की चारों  दिशाओं में शिव मंदिर हैं। पूर्व में कालेश्वर महादेव, पश्चिम में नरहाणा महादेव, उत्तर में मुचकुंद महादेव, दक्षिण में शिव बाड़ी मंदिर है। चारों शिवालय माता चिंतपूर्णी के भवन से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। जिससे श्री छिन्नमस्तिका धाम की पुष्टि भी होती है।
रुद्र महादेव - चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple)

चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple) मंदिर का इतिहास

कहा जाता है कि माईदास नामक दुर्गा माता के एक श्रद्धालू ने इस जगह की खोज की थी। दंत कथा के अनुसार भक्त माईदास जी के पिता जी पटियाला में रहते थे। माईदास के पिता जी बड़े तेजस्वी व दुर्गा माता के परम भक्त थे। इनके तीन लड़के देवीदास, दुर्गादास, माईदास थे। माईदास सबसे छोटा था। उस समय मुसलमानों का अत्याचार जोरों पर था। माईदास के पिता मुसलमानों के अत्याचारों से बहुत दुःखी थे। वह पटियाला के अठूर नामी जगह को छोड़कर ऊना जिला के तहत अंब के रपोह नामक स्थान में बस गए। माईदास जी अपने पिता जी की तरह ही दुर्गा माता के बड़े भक्त थे। भगवती पूजा में अटल विश्वास रखते थे। उन का अधिकांश समय दुर्गा पूजा व भजन कीर्तन में व्यतीत होता था। जिस कारण वह घर के कामकाज में अपने बड़े भाइयों का हाथ नहीं बंटा पाते, जिसके चलते बड़े भाई नाराज रहते थे, लेकिन माईदास के पिता जी माईदास की भक्ति व दुर्गा पूजा से संतुष्ट थे। माईदास जी की शादी पिता के होते हुए ही हो गई थी। कुछ समय के बाद माईदास जी के पिता जी का देहांत हो गया। उसके बाद भाइयों ने माईदास को अलग कर दिया। माईदास जी को अलग होकर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। गरीबी में भी माईदास ने अपनी दुर्गा भक्ति में कोई भी कमी नहीं आने दी। उन्होंने मां चिंतपूर्णी पर पूरा भरोसा रखा। एक दिन माईदास जी अपने ससुराल जा रहे थे।
चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple) 
 चलते- चलते रास्ते में वट वृक्ष के नीचे थकावट के कारण आराम करने बैठ गए। जिस वट वृक्ष के नीचे माईदास जी आराम करने के लिए बैठे, वह जगह छपरोह नामक स्थान था। आज उस स्थान को चिंतपूर्णी के नाम से जाना जाता है। आज वहां भगवती का मंदिर है। उस समय वहां घना जंगल था। माईदास वट वृक्ष के पास आराम करने के लिए लेट गए। कुछ देर बाद थकावट के कारण उनकी आंख लग गई। माईदास जी स्वप्न अवस्था में क्या देखते हैं कि एक छोटी आयु की कन्या जिसके चेहरे पर बड़ा प्रकाश व तेज है, दिखाई देती है और माईदास के कानों में आवाज सुनाई देती है। माईदास तुम यहां पर रह कर मेरी सेवा करो। इसी से तुम्हारा भला होगा। इतने में माईदास जी की आंख खुल गई, लेकिन चारों तरफ देखा तो कुछ दिखाई नहीं दिया। तत्पश्चात माईदास जी उठकर अपने ससुराल की तरफ चल दिए। जब वापस अपने घर की तरफ चले तो वट वृक्ष तक का रास्ता तो आसानी से कट गया, लेकिन जब वह वट वृक्ष के आगे जाते तो कुछ भी दिखाई नहींदेता। उस के बाद माईदास जी वहीं वट वृक्ष के पास बैठ गए।

 सोचने लगे कि वह स्वप्न कहीं माता जी का चमत्कार तो नहीं था। माईदास जी ने मां भगवती से प्रार्थना की कि हे भगवती मां मुझ सेवक को दर्शन देकर कृतार्थ करें। माईदास की प्रार्थना सुनकर भगवती मां कन्या रूप में प्रकट हुइर्ं। कन्या का तेज देखकर माईदास ने पहचानने में देर न की और कन्या के चरणों में गिर पड़ा। यह वही कन्या थी, जो माईदास को स्वप्न में दिखाई दी थी। माईदास ने मां भगवती से प्रार्थना की कि हे भगवती मां मैं मंदबुद्धि जीव हूं ,मुझ सेवक पर दया कर के आज्ञा दीजिए कि मैं आपकी क्या सेवा करूं ताकि मेरा जीवन सफल हो सके। कन्या रूपी मां भगवती बोली, हे वत्स मैं इस वट वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हूं। लोग मुसलमानों और राक्षसों के अत्याचारों के बढ़ने से इस स्थान की महानता को भूल गए हैं। अब मैं इस वट वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में नजर आऊंगी। तुम दोनों समय मेरी पूजा व भजन किया करना। मैं छिन्नमस्तिका के नाम से पुकारी जाती हूं। यहां आने वाले भक्तजनों को चिंता मुक्त करने के कारण भक्त मुझे चिंतपूर्णी के नाम से भी स्मरण करेंगे। माईदास जी ने कहा, मां भगवती मैं अनपढ़ निर्बल इस भयानक जंगल में जहां दिन में भी डर लगता है, रात को किस तरह रहूंगा। न तो यहां पीने का पानी है, न ही आप का स्थान बना है, न ही यहां कोई जीव जंतु है, जिसके सहारे मैं अपना जीवन व्यतीत कर सकूं। मां भगवती ने कहा कि मैं तुम्हें अभय दान देती हूं।
चिंतपूर्णी मंदिर (Chintpurni Temple) 
अब इस जंगल में तुम्हें कोई डर नहीं लगेगा। ॐ हृं क्लीं चामुंडाय विच्चै, मंत्र द्वारा मेरी पूजा किया करना। यह स्थान वैसे भी चारों महरुद्रों के मध्य है। इस सीमा के अंदर तुम बिना डर के रहो। नीचे जाकर जिस पत्थर को उखाड़ोगे वहां पर जल निकल आएगा। जिससे पानी की समस्या हल हो जाएगी। मेरी पूजा का अधिकार तुम को और तुम्हारे वंश को होगा। जिन भक्तों की चिंता मैं दूर करूंगी वह मंदिर भी बनवा देंगे। जो चढ़ावा चढ़ेगा उसका अधिकार तुम को और तुम्हारे परिवार को होगा। इससे तुम्हारा गुजारा हो जाएगा। किसी बात से घबराना नहीं। मेरी पूजा में स्वच्छ सामग्री का इस्तेमाल करना। फिर कभी इस रूप में दर्शन न हो सकें  इसलिए मैं पिंडी रूप में अब आप के यहां रहूंगी। यदि कोई बात करने की जरूरत हुआ करेगी, तो मैं किसी कन्या पर रोशनी डालकर कहलवा दिया करूंगी। भूमि पर सोए हुए सेवक की रक्षा मैं स्वंय करूंगी। ऐसा कहकर माता भगवती जी पिंडी रूप में लोप हो गईं। माता जी के कहे अनुसार माईदास ने नीचे जा कर एक पत्थर उखाड़ा। वहां से पानी निकल आया। माईदास की खुशी का ठिकाना न रहा। वह पत्थर मंदिर में आज भी रखा हुआ है। माईदास ने रहने के लिए उस पानी वाली जगह के पास अपनी कुटिया बना ली व प्रतिदिन नियमपूर्वक भगवती जी की पावन पिंडी का पूजन शुरू कर दिया। आज दिन तक भक्त माईदास जी के वंशज ही माता चिंतपूर्णी की पूजा करते आ रहे हैं।

 माईदास जी के दो पुत्र थे कुल्लू ओर बिल्लू । ये दोनों भी अपने पिता व दादा की भांति मां भगवती के उपासक रहे। कहा जाता है कि बिल्लू जी ने अपने प्राण समाधिस्थ हो कर त्याग दिए थे। कुल्लू जी का वंश अब तक चला आ रहा है, जिसकी शाखाएं बारी के अनुसार प्रतिदिन मां भगवती चिंतपूर्णी की पूजा-अर्चना करती हैं। धीर-धीरे श्रद्धालुओं की चिंता दूर होने पर यहां छोटा सा मंदिर स्थापित हो गया। फिर माता जी के कुछ चमत्कार होने पर भक्तों द्वारा बड़ा मंदिर बनवाया गया। यात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती रही। आज उसी स्थान पर माता श्री चिंतपूर्णी जी का विशाल व भव्य मंदिर बन गया है। हर साल लाखों श्रद्धालू मां के दरबार में पहुंचते हैं और माता चिंतपूर्णी जी की पावन पिंडी के दर्शन करते हैं।

सीमा विवाद :

यह स्थान जहां पर माता श्री चिंतपूर्णी जी का मंदिर है, रियासत अंब व डाडासीबा की सीमा पर था। जिसके कारण दोनों रियासत के राजाओं में आपस में झगड़ा हो गया। दोनों राजा इस स्थान पर अपना-अपना अधिकार बताने लगे। अंत में  इस बात पर सहमति हुई, दुर्गा जी के नाम पर दो बकरे छोड़े जाएंगे। एक महाराज अंब व दूसरा महाराज डाडासीबा का, जो बकरा पहले कांप जाएगा यह स्थान उसकी रियासत में होगा। इस तरह यह स्थान अंब रियासत में निश्चित हुआ।

चिंतपूर्णी का तालाब :

कन्या रूप में मां भगवती ने भक्त माईदास को साक्षात दर्शन दे कर जब उनकी चिंता का निवारण किया और कहा कि जहां तुम पत्थर को उखाड़ोगे वहां से जल निकल आएगा। तब माईदास ने जिस जगह उस पत्थर को उखाड़ा था, आज वहां पर एक सुंदर तालाब बनवा दिया गया है। यह तालाब पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के तत्कालीन दीवान द्वारा बनवाया गया था। जिसके नाम का पत्थर आज भी तालाब के निकट लगा है। तालाब के ठीक ऊपर माता श्री चिंतपूर्णी मंदिर के संस्थापक श्री बाबा माईदास जी की समाधि बनी हुई है।

ऐतिहासिक पत्थर :

जो पत्थर भक्त माईदास जी ने मां भगवती की आज्ञानुसार उखाड़ा था। जिसके उखाड़ने से जल प्रकट हो गया था, वह ऐतिहासिक प्राचीन पत्थर आज भी यात्रियों के दर्शनार्थ माता जी के दरबार में रखा हुआ है।

ऐतिहासिक वट वृक्ष :

माता श्री चिंतपूर्णी जी का मंदिर उसी ऐतिहासिक वट वृक्ष के पास स्थित है। जिस वट वृक्ष के नीचे माईदास ने अपने जाते व वापस  लौटते समय विश्राम किया था। स्वप्नावस्था में फिर प्रत्यक्ष मां भगवती के दर्शन हुए। वट वृक्ष किस युग का है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। मंदिर आने वाले श्रद्धालू मन में कुछ इच्छा धारण कर वट वृक्ष की शाखाओं पर मौली (लाल धागा) बांधते हैं। इच्छा पूरी होने पर मां की पावन पिंडी के दर्शन कर वट वृक्ष की मौली खोलते हैं। ऐसी मान्यता है कि पवित्र व ऐतिहासिक वट वृक्ष पर मौली बांधकर जो भी भक्त सच्चे मन से जो मनोकामना करता है, मां चिंतपूर्णी उस भक्त की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

आवास सुविधा व खान-पान

प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी में ठहरने के लिए कई होटल व धर्मशालाएं हैं। बेहतर कमरे उचित दामों में मिल जाते हैं। कुछ यात्री अपने पुरोहितों के पास भी ठहरते हैं। होटल, ढाबे आदि में उचित मूल्य पर अच्छा खाना भी मिल जाता है। दैनिक उपयोग की लगभग सभी वस्तुएं  यहां के बाजार में मिल जाती हैं। चिंतपूर्णी से दो से तीन किलोमीटर दूर पर भरवाइर्ं में हिमाचल टूरिज्म व विश्राम गृह का निर्माण हुआ है।

होटल, गेस्ट हाउस की बेहतर व्यवस्था

प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए होटल, गेस्ट हाउस की बेहतर व्यवस्था है। वहीं, सराये में भी श्रद्धालू ठहरते हैं। नवरात्र मेलों के दौरान श्रद्धालुओं की भीड़  जुटने के चलते होटलों में ठहरने के लिए एक हजार, पंद्रह सौ, दो हजार रुपए तक कमरा किराये पर मिल जाता है। वहीं, पांच हजार रुपए तक के कमरे में ठहरने की सुविधा भी श्रद्धालुओं को यहां पर मिल जाती है। इसके अलावा जब ऑफ सीजन होता है तो पांच सौ, एक हजार, पंद्रह सौ रुपए के कमरे में श्रद्धालू ठहर सकते हैं।

पहुंचने का रूट चार्ट व किराया

प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी में श्रद्धालू बस और रेल यातायात से भी पहुंच सकते हैं। रेल यातायात की सुविधा श्रद्धालुओं को केवल मात्र अंब तक ही मिल पाती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए इसके आगे तक का सफर श्रद्धालुओं को सड़क मार्ग से तय करना पड़ता है। पंजाब राज्य के अलावा अन्य बाहरी राज्यों के श्रद्वालू होशियारपुर-गगरेट, ऊना-अंब रोड़ से होकर मां के दरबार तक पहुंचते हैं। सड़क मार्ग से चिंतपूर्णी से दिल्ली तक का सफर करीब 400  किलोमीटर तक का है। एचआरटीसी के अलावा अन्य राज्यों की बसें सीधे चिंतपूर्णी रूट पर चलती हैं। एचआरटीसी में चिंतपूर्णी से दिल्ली तक का किराया आर्डिनरी में 445  रुपए है। वहीं, वोल्वो में यह किराया 950 रुपए निर्धारित किया गया है। इसके अलावा चंडीगढ़ के लिए 255 आर्डिनरी और वोल्वो में 650 रुपए है। वहीं, रेल यातायात में अंब से दिल्ली तक का साधारण किराया 250 रुपए है।

मंदिर स्थल पर महत्वपूर्ण स्थान

थानेक पुरा
थनीक पुरा चिंतपूर्णी तीर्थ से लगभग 3 किमी दूर है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा, थानीक पुरा अपने मंदिरों जैसे गुगा ज़हर पीर मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, महिया सिद्ध मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

यहां लोग एक प्राचीन और अनोखा गहरा कुआं भी देख सकते हैं जो लगभग 60 सीढ़ियां नीचे जाता है और उससे भी नीचे एक मुख्य कुआं है। थानीक पुरा एक मेले के लिए भी प्रसिद्ध है, जो कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन शुरू होने वाला एक वार्षिक आयोजन है और यह गुगा नवमी उत्सव के साथ मेल खाता है। एक भव्य यज्ञ और भंडारा का भी आयोजन किया जाता है जो अपनी तरह का सबसे बड़ा आयोजन है। कुश्ती प्रतियोगिता भी इस मेले का एक हिस्सा है जिसमें हिमाचल, पंजाब और अन्य आस-पास के राज्यों के सभी प्रसिद्ध पहलवान भाग लेते हैं। यह मेला तीन दिनों तक चलता है। कृष्ण जन्माष्टमी और शिवरात्रि भी तनीक पुरा में बड़े धार्मिक आयोजन हैं।

पिकनिक के शौकीन लोगों के लिए, जो चिंतपूर्णी मंदिर के दर्शन करने आते हैं, चिंतपूर्णी में थानेक पुरा का चाट बाज़ार एक बड़ा आकर्षण है। यह स्थान चाट वाला मोड़ के नाम से भी प्रसिद्ध है और यहां आने वाले पर्यटक न केवल प्रसिद्ध मसालेदार मिक्स फ्रूट चाट का आनंद ले सकते हैं बल्कि इसके साथ ही यह एक बहुत ही सुंदर स्थान है। यहां का दृश्य अद्भुत है, जहां सुंदर स्वान घाटी और शिवालिक पहाड़ियों पर विशाल देवदार के पेड़ों का जंगल फैला हुआ है। यह आस-पास के राज्यों के लोगों और अन्य पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा अड्डा है।

धर्मसाल महंतन
यह स्थान चिंतपूर्णी से 5 किमी दूर स्थित है जहां बाबा नकोदर दास गद्दी का आध्यात्मिक स्थान बहुत प्रसिद्ध है। पंजाब और हिमाचल प्रदेश से लोग यहां आते हैं। स्थानीय भाषा में सायर और बसोआ नाम के दो वार्षिक मेले बड़े हर्षोल्लास के साथ आयोजित किये जाते हैं। यह स्थान शीतला देवी मंदिर के समान ही चिंतपूर्णी के भी निकट है। धर्मसाल महंतन अपने मंदिरों जैसे दोधा ज़हर पीर मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, गोदाडी सिद्ध मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है। पाप खंडन नामक एक प्राचीन कुआँ भी लोकप्रिय है जहाँ पानी गंगा नदी से आता है।

शीतला देवी मंदिर
यह मंदिर चिंतपूर्णी से लगभग 5 किमी पश्चिम में धर्मशाला महंतन के पास स्थित है। चिंतपूर्णी से एक घुमावदार, सिंगल लेन सड़क आपको वहां ले जाती है।

चामुंडा देवी मंदिर
चामुंडा देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बनेर नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है। प्रसिद्ध मंदिर धर्मशाला-पालमपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा हुआ है।

ज्वालामुखी देवी मंदिर
देवी ज्वालामुखी ज्वलंत मुख की देवी हैं। यह मंदिर ज्वलनशील गैस के प्राकृतिक जेट पर बनाया गया है, जिसे देवी का स्वरूप माना जाता है। चिंतपूर्णी से लगभग 35 किमी उत्तर पूर्व में।

वज्रेश्वरी देवी मंदिर
उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर कांगड़ा शहर में स्थित है। चिंतपूर्णी से लगभग 50 किमी उत्तर में।

धर्मशाला और मैक्लोडगंज
चिंतपूर्णी से लगभग 68 किमी उत्तर में धर्मशाला स्थित है, जो कांगड़ा जिले का प्रमुख शहर है। इसके घने देवदार और देवदार के जंगल, असंख्य नदियाँ, ठंडी स्वस्थ हवा और पास की बर्फ़ रेखा इसे एक आकर्षक स्थान बनाती है। दलाई लामा (अपनी निर्वासित सरकार के साथ) मैकलियोडगंज नामक शहर के ऊपरी हिस्से में रहते हैं।

पौंग बांध पर महाराणा प्रताप सागर
ब्यास नदी पर यह जलाशय और वन्य जीवन अभयारण्य लगभग 450 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। सर्दियों में झील में 200 से अधिक प्रजातियों के प्रवासी पक्षी आते हैं। झील पर नौकायन, वॉटर स्कीइंग और रोइंग जैसे जल खेलों की अनुमति है। चिंतपूर्णी से लगभग 20 किमी पश्चिम में।

नैना देवी मंदिर
श्री नैना देवी जी का मंदिर भारत में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। चिंतपूर्णी से लगभग 115 कि.मी. दक्षिण पूर्व में।

बाबा बालक नाथ सिद्धपीठ
दियोटसिद्ध: हमीरपुर जिले में स्थित बाबा बालक नाथ के इस मंदिर में हर साल लाखों लोग आते हैं। सिद्ध परंपरा की शुरुआत करने वाले गुरु आदि नाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।

टिप्पणियाँ