हिडिम्बा मंदिर के बारे में रोचक तथ्य (Interesting facts about Hidimba Temple)
माता हिडिम्बा कुल्लु मनाली क्षेत्र की एक प्रमुख देवी है। वहां मौजूद जागृत देवी देवताओं में से एक। कहा जाता है यह कुल्लु-के राजपरिवार की कुलदेवी है।
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हिडिम्बा देवी मंदिर मनाली में हिमाचल प्रदेश |
माता हिडिम्बा देवी ने अपने विवाह और भीम जी के वापस जाने के पश्चात, मनाली के जंगलों में घोर तपस्या की थी। उनके सत से उनकी आराध्या देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें देवी की उपाधि दी। एक राक्षस रूप में जन्म लेकर भी जीवन में इतना ऊँचा उठना ही दैवीय लक्षण है। एक आम इंसान तो मानव जन्म लेकर भी नीचे गिर जाता है। जिस गुफ़ा में माता ने तपस्या की उसी को आज हिडिम्बा देवी के मंदिर के रूप में लोग जानते है। उसके पीछे के वन ही हिडिम्बा देवी की तपस्थली, और घटोत्कच की जन्मस्थली रहा था।
जीवन में अपने अंदर के पर्मात्माअंश को ढूंढना, और उसका विस्तार करना ही देव या देवी की उपाधि कहलाता है। जागृत देवी देवताओं के पूजन से हमारी चेतना भी जागृत होती है। इसलिए हिमाचल और उत्तराखंड में जागृत देवी देवताओं के बहुत से मंदिर मिलेंगे, और उन सभी की एक कहानी भी सुनने को मिलेगी।
हिडिम्बा देवी मंदिर का इतिहास
हिडिम्बा देवी मंदिर का निर्माण हिमालय पर्वतों के कगार पर डुंगरी शहर के पास एक पवित्र देवदार के जंगल के बीच में कराया गया है। माना जाता है कि भीम और पांडव मनाली से चले जाने के बाद हिडिम्बा राज्य की देखभाल के लिए वापस आ गए थे। ऐसा कहा जाता है कि हिडिम्बा बहुत दयालु और न्यायप्रिय शासिका थी। जब उसका बेटा घटोत्कच बड़ा हुआ तो हिडिम्बा ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया और अपना शेष जीवन बिताने के लिए ध्यान करने जंगल में चली गयी। हिडिम्बा अपनी दानवता या राक्षसी पहचान मिटाने के लिए एक चट्टान पर बैठकर कठिन तपस्या करती रही।
कई वर्षों के ध्यान के बाद उसकी प्रार्थना सफल हुई और उसे देवी होने का गौरव प्राप्त हुआ। हिडिम्बा देवी की तपस्या और उसके ध्यान के सम्मान में इसी चट्टान के ऊपर इस मंदिर का निर्माण 1553 में महाराजा बहादुर सिंह ने करवाया था। मंदिर एक गुफा के चारों ओर बनाया गया है। मंदिर बनने के बाद यहां श्रद्धालु हिडिम्बा देवी के दर्शन पूजन के लिए आने लगे।
हिडिंबा देवी की कहानी
हिडिम्बा मंदिर पांडवों के दूसरे भाई भीम की पत्नी हिडिम्बा को समर्पित है। हिडिम्बा एक राक्षसी थी जो अपने भाई हिडिम्ब के साथ इस क्षेत्र में रहती थी। उसने कसम खाई थी कि जो कोई उसके भाई हिडिम्ब को लड़ाई में हरा देगा, वह उसी के साथ अपना विवाह करेगी। उस दौरान जब पांडव निर्वासन में थे, तब पांडवों के दूसरे भाई भीम ने हिडिम्ब की यातनाओं और अत्याचारों से ग्रामीणों को बचाने के लिए उसे मार डाला और इस तरह महाबली भीम के साथ हिडिम्बा का विवाह हो गया। भीम और हिडिम्बा का एक पुत्र घटोत्कच हुआ, जो कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के लिए लड़ते हुए मारा गया था। देवी हिडिम्बा को समर्पित यह मंदिर हडिम्बा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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हिडिम्बा देवी मंदिर मनाली में हिमाचल प्रदेश (Hidimba Devi Temple in Manali, Himachal Pradesh) |
हिडिम्बा मंदिर के बारे में रोचक तथ्य
- हिडिम्बा देवी मंदिर की खासियत यह है कि इस मंदिर का निर्माण पगोडा शैली (Pagoda Style) में कराया गया है जिसके कारण यह सामान्य मंदिर के काफी अलग और लोगों के आकर्षण का केंद्र है।
- यह मंदिर लकड़ी से बनाया गया है और इसमें चार छतें हैं। मंदिर के नीचे की तीन छतें देवदार की लकड़ी के तख्तों से बनी हैं और चौथी या सबसे ऊपर की छत का निर्माण तांबे एवं पीतल से किया गया है।
- मंदिर के नीचे की छत यानि पहली छत सबसे बड़ी, उसके ऊपर यानि दूसरी छत पहले से छोटी, तीसरी छत दूसरे छत से छोटी और चौथी या ऊपरी छत सबसे छोटी है, जो कि दूर से देखने पर एक कलश के आकार की नजर आती है।
- हिडिम्बा देवी मंदिर 40 मीटर ऊंचे शंकु के आकार का है और मंदिर की दीवारें पत्थरों की बनी हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार और दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है।
- मंदिर में एक लकड़ी का दरवाजा लगा है जिसके ऊपर देवी, जानवरों आदि की छोटी-छोटी पेंटिंग हैं। चौखट के बीम में भगवान कृष्ण की एक कहानी के नवग्रह और महिला नर्तक हैं।
- मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं है लेकिन उनके पदचिन्ह पर एक विशाल पत्थर रखा हुआ है जिसे देवी का विग्रह रूप मानकर पूजा की जाती है।
- मंदिर से लगभग सत्तर मीटर की दूरी पर देवी हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच को समर्पित एक मंदिर है।
हिडिम्बा देवी मंदिर में पूजा का समय
यह मंदिर पूरे हफ्ते खुला रहता है और किसी भी दिन बंद नहीं होता है। हिडिम्बा देवी मंदिर में प्रवेश के लिए किसी तरह की फीस नहीं लगती है। मंदिर सुबह आठ बजे खुलता है और शाम को छह बजे तक बंद हो जाता है।
इस दौरान पूजा और दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं और मंदिर को देखने के लिए सैलानी यहां जमा होते हैं। इस मंदिर के अंदर आप बिना किसी रोक टोक के फोटो खींच सकते हैं और दो से तीन घंटे का समय भी बिता सकते हैं।
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