माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Maa Dhari Devi Temple Srinagar Pauri Garhwal Uttarakhand)

माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड (Maa Dhari Devi Temple Srinagar Pauri Garhwal Uttarakhand)

माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच कल्यासौर में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित, धारी देवी उत्तराखंड में एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। इस मंदिर में मां धारी देवी की मूर्ति है और इसे वर्ष 2013 में 20 मीटर ऊंची चट्टान से मानव निर्मित संरचना में स्थानांतरित किया गया था। देवी काली की एक अभिव्यक्ति, धारी देवी को चार धामों की रक्षक माना जाता है। काफी समय से यह मंदिर गढ़वाल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। किंवदंती के अनुसार, धारी देवी उत्तराखंड की संरक्षक देवता हैं, जिनकी मूर्ति को बादल फटने से कुछ घंटे पहले 16 जून 2013 को पुजारियों और स्थानीय लोगों द्वारा उनके मंदिर से हटा दिया गया था। विश्वासियों के अनुसार, उत्तराखंड को भी देवी के क्रोध का सामना करना पड़ा था जब उन्हें 330 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना के लिए रास्ता बनाने के लिए उनके 'मूल स्थान' यानी 'मूल निवास' से स्थानांतरित कर दिया गया था, जो बाढ़ के बाद खंडहर हो गई थी।

धारी देवी मंदिर, उत्तराखंड (Dhari Devi Mandir, Uttarakhand)

श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच कल्यासौर में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित, धारी देवी उत्तराखंड में एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। इस मंदिर में मां धारी देवी की मूर्ति है और इसे वर्ष 2013 में 20 मीटर ऊंची चट्टान से मानव निर्मित संरचना में स्थानांतरित किया गया था। देवी काली की एक अभिव्यक्ति, धारी देवी को चार धामों की रक्षक माना जाता है। काफी समय से यह मंदिर गढ़वाल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। किंवदंती के अनुसार, धारी देवी उत्तराखंड की संरक्षक देवता हैं, जिनकी मूर्ति को बादल फटने से कुछ घंटे पहले 16 जून 2013 को पुजारियों और स्थानीय लोगों द्वारा उनके मंदिर से हटा दिया गया था। विश्वासियों के अनुसार, उत्तराखंड को भी देवी के क्रोध का सामना करना पड़ा था जब उन्हें 330 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना के लिए रास्ता बनाने के लिए उनके 'मूल स्थान' यानी 'मूल निवास' से स्थानांतरित कर दिया गया था, जो बाढ़ के बाद खंडहर हो गई थी।

  • माँ धारी देवी मंदिर में दिन में तीन बार रूप बदलती हैं माता की मूर्ति, जानें क्या है
धारी देवी मंदिर, उत्तराखंड (Dhari Devi Mandir, Uttarakhand)

देवी काली को समर्पित मंदिर यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीये है। लोगों का मानना है कि यहाँ धारी माता की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं पहले एक लड़की फिर महिला और अंत में बूढ़ी महिला । एक पौराणिक कथन के अनुसार कि एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनाई सुनी और पवित्र आवाज़ ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया।

हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर को विशेष पूजा की जाती है। देवी काली के आशीर्वाद पाने के लिए दूर और नजदीक के लोग इस पवित्र दर्शन करने आते रहे हैं।मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी मौजूद है ।यह मंदिर दिल्ली-राष्ट्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर श्रीनगर से 15 किमी दूर है ।अलकनंदा नदी के किनारे पर मंदिर के पास तक 1 किमी-सीमेंट मार्ग जाता है।
धारी देवी मंदिर, उत्तराखंड (Dhari Devi Mandir, Uttarakhand)

धारी देवी मंदिर, उत्तराखंड (Dhari Devi Mandir, Uttarakhand)

उत्तराखंड में स्थित यह मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं है. यहं पर मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार रूप बदलती है. सुबह यह मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है. दोपहर के समय मूर्ति का रूप युवती की तरह हो जाता है और शाम को यह बूढ़ी महिला की तरह दिखती है. मंदिर से जुड़ा यह रहस्यमयी नजारा देखने में बहुत ही हैरान करने वाला होता है. ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर चारधाम की रक्षा के लिए है. मंदिर में विराजमान धारी देवी मंदिर चारधाम और तीर्थयात्रियों की रक्षा करती हैं.

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा (Dhari Devi Mandir History)

मंदिर के पुजारीयों का मानना है कि इस मंदिर में माता की यह चमत्कारी मूर्ति द्वापर युग से स्थापित है. ऐसा कहा जाता है कि एक बार बाढ़ में मंदिर बह गया था. माता की मूर्ति भी बाढ़ के साथ बह गई. जिसके बाद यह मूर्ति चट्टान से टकराई और इसमें से ईश्वरीय आवाज आई. जिसने गांव के लोगों को मूर्ति को इस जगह पर स्थापित करने के लिए कहा. तभी गांव के लोगों ने मूर्ति को यहां स्थापित किया. मूर्ति को स्थापित करने के बाद के लोगों ने यहां मंदिर का निर्माण कराया.

ऐसी मान्यता है कि धारी देवी चारधाम और तीर्थयात्रियों की रक्षा करती है. साल 2013 में मंदिर में से मूर्ति को हटाया गया था. मूर्ति को 16 जून 2013 की शाम को हटाया गया था जिसके कुछ देर बाद ही राज्य में आपदा आ गई थी. बाद में माता की मूर्ति को उसी जगह पर स्थापित किया गया. 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा में हजारों लोग मारे गए थे.

धारी देवी की पौराणिक मान्यताये  (Story of Dhari devi Temple, Uttrakhand)   

दोस्तों माँ धारी के 7 भाई थे और अपने भाइयो से माँ धारी बहुत  प्रेम करती थी, लेकिन उनके भाई उनको बिलकुल पसंद नहीं करते  थे , इसके दो कारण  थे,  पहला की उनका रंग  बहुत  ज्यादा सांवला था और दूसरा की उनको पता चल गया था की उनकी बहन के ग्रह उन  भाइयो के लिए अच्छे नहीं है , जब तक ये छोटी बच्ची है तब   तक उनके जीवन को संकट है, माँ पिता  के गुजर जाने के बाद भाइयो ने उनका ध्यान रखा इसलिए वो उन पर अपनी जान छिड़कती थी , लेकिन भाइयो की नफरत और डर बढ़ने लगा, धीरे धीरे समय बीतता  गया और 7 में से 5 भाइयो की अकस्मात्  मौत हो गयी  ये देख कर बाकि के बचे दो भाइयो की अपनी जान का खतरा बन गया , एक दिन  उन दो भाइयो और उनकी पत्नियों ने मिलकर योजना बनाई की इस लड़की को मार देते है जिससे उनकी जान बाच जाये।  फिर एक रत को सबने मिलकर अपनी बहन का गला काट दिया और उसे  अलकनंदा नदी में बहा   दिया , उस छोटी बच्ची का गला बहते  हुए कल्यासौड़ नाम के स्थान पर धारी गांव के पास अलकनंदा नदी के बीच एक पत्थर  से टकराया , जैसे ही गला धारी गांव में पहुंचा तो एक आदमी ने देखा नदी में एक लड़की बहती हुई आ रही है उस लड़के ने लड़की को बचाना चाहा जो सिर्फ एक गला था लेकिन बहाव तेज़ होने की वजह से वो नदी में नहीं जा पा रहा था , तभी एक आकाशवाणी होती है की डरो मत मेरे पास आओ और मुझे बचाओ तुमको कुछ नहीं होगा , तू जहाँ जहाँ पैर रखेगा में वहाँ वहाँ पे तेरे लिए सीढ़ी बना दूँगी, कहा जाता है कि कुछ समय पहले ये सीडिया यहाँ पर दिखाई देती थीं ।

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माँ धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Temple) से जुड़े प्रश्नों के उत्तर तैयार हैं:


माँ धारी देवी मंदिर का इतिहास क्या है?

माँ धारी देवी मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर देवी काली के रूप धारी देवी को समर्पित है। किंवदंती है कि मंदिर में मौजूद देवी की मूर्ति द्वापर युग से स्थापित है। माना जाता है कि एक बाढ़ में मूर्ति बहकर धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराई, और ईश्वरीय आवाज़ के निर्देश पर इसे वहां स्थापित किया गया।


माँ धारी देवी का दिन में तीन बार रूप बदलने का रहस्य क्या है?

माँ धारी देवी की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह यह कन्या, दोपहर में युवती, और शाम को वृद्धा के रूप में दिखाई देती है। यह चमत्कार देवी के दिव्य स्वरूप और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।


2013 की आपदा और धारी देवी मंदिर का क्या संबंध है?

16 जून 2013 को, मंदिर में मौजूद मूर्ति को एक जल विद्युत परियोजना के लिए स्थानांतरित किया गया। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह देवी के क्रोध का परिणाम था कि उसी दिन उत्तराखंड में भारी आपदा आई, जिससे हजारों लोग मारे गए। बाद में मूर्ति को फिर से अपने मूल स्थान पर स्थापित किया गया।


मंदिर तक कैसे पहुँचा जा सकता है?

मंदिर दिल्ली-राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर, श्रीनगर से 15 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए एक किमी लंबा सीमेंट मार्ग है जो मंदिर के करीब तक जाता है।


मंदिर से जुड़ी प्रमुख मान्यताएँ और पौराणिक कथाएँ क्या हैं?

  1. पौराणिक कथा: धारी देवी अपने भाइयों की रक्षा के लिए समर्पित थीं, लेकिन ग्रहों के दुष्प्रभाव के डर से उनके भाइयों ने उनका गला काटकर अलकनंदा नदी में बहा दिया। उनका गला कल्यासौर नामक स्थान पर पहुंचा, जहां इसे एक चट्टान से टकराते हुए पाया गया।
  2. चारधाम की रक्षा: माना जाता है कि माँ धारी देवी उत्तराखंड के चारधाम और तीर्थयात्रियों की रक्षा करती हैं।

मंदिर में विशेष पूजा कब होती है?

नवरात्रि के दौरान माँ धारी देवी की विशेष पूजा और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस अवसर पर भक्त देवी के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने दूर-दूर से आते हैं।


मंदिर के पास अन्य आकर्षण क्या हैं?

मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा है, जो भक्तों के लिए एक और धार्मिक स्थान है।

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