माँ बृजेश्वरी देवी (Mata Brijeshwari Devi Temple)

माँ बृजेश्वरी देवी - नगरकोट वाली माता (Mata Brijeshwari Devi Temple)

  • बज्रेश्वरी माता मंदिर कांगड़ा / कांगड़ा देवी मंदिर
  • स्थान: मंदिर रोड, न्यू कांगड़ा, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश 176001
  • समय: सुबह 05:00 बजे से रात 09:00 बजे तक (अप्रैल से सितंबर तक)
  • शाम 06:30 से 08:00 बजे तक (अक्टूबर से मार्च तक)
  • माँ बृजेश्वरी देवी 
  • नोट: विशेष अवसरों पर मंदिर का समय बढ़ाया जा सकता है।

मंदिर के बारे में

कांगड़ा का बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है जहां देवी के दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख दूर हो जाते हैं। सती की दाहिनी छाती गिरी थी और जहां माता की तीन पिंडियों को तीन धर्मों के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। सुबह होते ही पहाड़ों पर नहाती सूर्य देव की पवित्र किरणें और सोने की तरह चमकती कांगड़ा की विशाल पर्वत श्रृंखला को देखकर ऐसा लगता है मानो किसी निपुण जौहरी ने घाटी पर सोने की चादर बिछा दी हो।

देवी बज्रेश्वरी देवी, जिन्हें नगर कोट की देवी और कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है; इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है। बज्रेश्वरी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश का सबसे भव्य मंदिर है । मंदिर में रखे स्वर्ण कलश दूर से ही नजर आते हैं।

ज्वाला जी में माता के दर्शन के बाद हमने बिना समय गवाएं, जल्दी से पार्किंग से गाड़ी निकाली और काँगड़ा की तरफ़ चल दिए जहाँ हमने बृजेश्वरी देवी यानि काँगडे वाली माता के दर्शन करने थे । काँगड़ा यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है, मात्र 35 किलोमीटर ही है। काँगड़ा तक सड़क भी अच्छी बनी है इसलिए हम लगभग एक घंटे से भी कम समय में वहां पहुँच गए। मंदिर के आसपास कहीं पार्किंग नज़र नहीं आई तो एक सामने ही एक गली में गाड़ी साइड में लगा दी, मतलब पचास रूपये बचा लिये। मंदिर जाने के लिये गलियों से गुज़र कर जाना पड़ता है । मुख्य सड़क से मंदिर दिखायी भी नहीं देता सिर्फ़ एक छोटा सा गेट बना है और सारा रास्ता तंग गलियों से होकर है । मंदिर तक पहुंचना एक भूल भुलैया जैसा ही है ।

मंदिर का पौराणिक इतिहास एवं जानकारी      

बृजेश्वरी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में स्थित है। माना जाता है कि इसी स्थान पर माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था और माता यहाँ शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गईं। यह मंदिर काँगड़ा क्षेत्र के लोकप्रिय मंदिरों में से एक है।माता बृजेश्वरी देवी मंदिर को नगर कोट की देवी व कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है और इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है। इस स्थान का वर्णन माता दुर्गो स्तुति में भी किया गया हैः-

सोहे अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगर कोट में तुम्हीं बिराजत। तिहूँ लोक में डंका बाजत।।

ऐसा माना जाता है माँ बृजेश्वरी देवी व कांगड़ा देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक है। माँ वजेश्वरी देवी के दर्शनों के लिए भक्त पूरे भारत से आते है। नवरात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है।
माँ बृजेश्वरी देवी 
ऐसा माना जाता है कि वजेश्वरी मंदिर 10वीं शाताब्दी तक बहुत ही समृद्ध था। इस मंदिर को विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार लुटा था सन 1009 में मौम्मद गजनी ने इस मंदिर को पूरी तरह तबाह कर दिया था, इस मंदिर के चाँदी से बने दरवाजें तक उखाड कर ले गया था।  ऐसा भी माना जाता है कि मौम्मद गजनी ने इस मंदिर को पांच बार लुटा था। उसके बाद 1337 में मौम्मद बीन तुकलक और पांचवी शाताब्दी में सिंकदर लोदी ने लुटा तथा नष्ट कर किया, यह मंदिर कई बार लुटा व टूटाता रहा और बार बार इसका पुनः निर्माण होता रहा। ऐसा भी कहा जाता है कि सम्राट अकबर यहां आयें और इस मंदिर के पुनः निर्माण में सहयोग भी दिया था। 1905 में आये बहुत बडे़ भुकम ने इस मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण 1920 में किया गया था।

तीन गुंबद वाले और तीन संप्रदायों की आस्था का केंद्र कहे जाने वाले माता बृजेश्वरी के इस धाम में माँ की पिण्डियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिण्डी माँ बृजेश्वरी की है। दूसरी माँ भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिण्डी माँ एकादशी की है। कहते हैं जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर माँ के इस दरबार में पहुंचता है, उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। फिर चाहे मनचाहे जीवन साथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। माँ अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं।

आरती मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की इच्छा हर भक्त के मन में होती है। माँ बृजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन माँ की पांच बार आरती होती है। सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले माँ की शैय्या को उठाया जाता है। उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही माँ की मंगला आरती की जाती है। मंगला आरती के बाद माँ का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद पीले चंदन से माँ का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं। प्रात: काल की आरती चना, पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर संपन्न होती है।
माँ बृजेश्वरी देवी 
दोपहर की आरती और भोग चढ़ाने की रस्म को यहाँ गुप्त रखा जाता है। दोपहर की आरती के लिए मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, दोपहर के बाद मंदिर के कपाट दोबारा भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और भक्त माँ का आशीर्वाद लेने पहुंच जाते हैं। कहते हैं एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन इस शक्तिपीठ में माँ एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए यहां भोग में चावल ही चढ़ाया जाता है। सूर्यास्त के बाद इन पिण्डियों को स्नान कराकर पंचामृत से इनका दोबारा अभिषेक किया जाता है। लाल चंदन, फूल व नए वस्त्र पहनाकर माँ का श्रृंगार किया जाता है और इसके साथ ही सांय काल आरती संपन्न होती है। शाम की आरती का भोग भक्तों में प्रसाद रूप में बांटा जाता है। रात को माँ की शयन आरती की जाती है, जब मंदिर के पुजारी माँ की शैय्या तैयार कर माँ की पूजा-अर्चना करते हैं।

या देवी सर्व भूतेषु,शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै नमो नमः।।
।। जय माता दी ।।

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