नंदा देवी राजजात यात्रा - ऊर्गम घाटी में नंदा का अनूठा लोकोत्सव!(Nanda Devi Rajajat Yatra - Nanda's unique Lokotsav in the Vegha Valley!)

नंदा देवी राजजात यात्रा - ऊर्गम घाटी में नंदा का अनूठा लोकोत्सव!

मां नंदा और स्वनूल को ससुराल कैलास से मायके लाने की यात्रा, जुगात के जरिए करते हैं विदा..
ऊर्गम घाटी में नंदा का अनूठा लोकोत्सव!

उत्तराखंड में हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा के लोकोत्सवों की अलग ही पहचान है। नंदा के मायके में अलकनंदा नदी के पश्चिमी छोर की सहायक जलधारा बालखिला से कल्प गंगा के बीच के हिस्से को मल्ला नागपुर क्षेत्र कहा गया है। इसी भू भाग में आयोजित होती है मां नंदा का अनूठा लोकोत्सव। इसी परिक्षेत्र में चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाक के उर्गम थात, पंचगाई थात गांवों के लोग हर साल भादौ के महीने मां नंदा और स्वनूल की वार्षिक लोकजात यात्रा आयोजित करते हैं। यह जात नंदा को ससुराल कैलास से मायके लाने की यात्रा है। जिसमें माँ नंदा को मैनवाखाल में नंदीकुड से और स्वनूल को भनाई बुग्याल में सोना शिखर से जागरों के माध्यम से अपने मायके में अष्टमी के लिए बुलाया जाता है। नंदा सप्तमी के दिन यहां पूजा-अर्चना के बाद भगोती नंदा को मायके लाने की मनौती की जाती है। जिसके उपरांत दोनों ध्याण नंदा अष्टमी को अपने मायके ऊर्गम पहुंचती है। 

तत्पश्चात नवमी को भगवान फ्यूंलानारायण के कपाट बंद होने के बाद भर्की चोपता मंदिर में जागरों का गायन किया जाता है जिसमे सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। माँ नंदा और स्वनूल भी सुबह घंटा कर्ण भूमि क्षेत्रपाल उर्गम के साथ अपने छोटे भाई से मिलने भर्की गांव जाते है जहाँ देव मिलन होता है। इस दौरान जागर व दांकुडी गाये जाते है। अंत में दोनों भाई अपनी ध्याण नंदा और स्वनूल को जुगात (जागरों के माध्यम से नंदा को कैलास भेजने की मनौती) के माध्यम से नन्दीकुंण्ड और सोना शिखर के लिए विदा करते है। अपनी ध्याण को विदा करते समय वो वायदा करते हैं कि चैत बैशाख के महीने जब उर्गम में चोपता मेला का आयोजन होगा तो हम तुम्हे जरूर बुलायेंगे। इस दौरान ध्याणियों की आंखे छलछला जाती है और वे फफक कर रो पडते हैं। इस दिन घंटा कर्ण अपने छोटे भाई भर्की भूमियाल व अन्य देवी देवताओं को क्षेत्र की रक्षा और दुःख दूर करनें के लिए कहते है। अपने छोटे भाई से भेंट कर घंटाकर्ण वापस अपने स्थान लौट जाते है और इसी के साथ विराम लेता है नंदा का ये लोकोत्सव। इस अवसर पर होने वाले कौथिग को भर्की दशमी मेला कहा जाता है। आज दशमी का मेला बेहद सादगी के साथ सम्पन्न हुआ। ऊर्गम घाटी के इस नंदा के लोकोत्सव में सबसे बडा आकर्षण का केंद्र होती है तीन दर्जन से अधिक रिंगाल कि पारम्परिक छंतोली और देवपुष्प ब्रह्मकमल, जिन्हें प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को दिया जाता है। ये रिंगाल की छंतोली बरबस ही हर किसी को आकर्षित कर देती हैं।

ऊर्गम घाटी के लोकसंस्कृतिकर्मी और सामाजिक सरोकारों से जुड़े युवा रघुवीर नेगी कहते हैं कि ऊर्गम घाटी में नंदा लोकजात का उद्देश्य जहां परंपराओं एवं संस्कृति का संरक्षण करना है, वहीं ईको टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है। इस लोकयात्रा के माध्यम से जहां श्रद्धालु व पर्यटक हिमालय के दुर्लभ एवं अभिभूत कर देने वाले सौंदर्य से रूबरू होते हैं, वहीं उन्हें प्रकृति का महत्व भी समझ में आता है। इसलिए सरकार को भी चाहिए कि वह जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित होने वाली नंदा की वार्षिक लोकजात का कैलेंडर तैयार करके इसको अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल कर इसे राज्य के पर्यटन मानचित्र में स्थान दे।

मां नंदा देवी जी की ससुराल भेजने की यात्रा संदर्भ में..👇 एक बार टाइम निकाल के जरूर पढ़े ..🌺🙏🏻
  1. राजजात। मां नंदा को भगवान शिव की पत्नी माना जाता है और कैलास (हिमालय) भगवान शिव का निवास।
  2. मान्यता है कि एक बार नंदा अपने मायके आई थीं। लेकिन किन्हीं कारणों से वह 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें आदर-सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया।
  3. चमोली जिले में पट्टी चांदपुर और श्रीगुरु क्षेत्र को मां नंदा का मायका और बधाण क्षेत्र (नंदाक क्षेत्र) को उनकी ससुराल माना जाता है।
  4. एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा और गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्रीनंदा राजजात अपने में कई रहस्य और रोमांच को संजोए है।

कैसे होगी यात्रा

  1. मां नंदा देवी राजजात यात्रा विश्व की सबसे लंबी पैदल यात्रा है
  2. - चमोली के नौटी से यात्रा उच्च हिमालयी क्षेत्र होमकुंड पहुंचती है
  3. - राजजात का समापन कार्यक्रम 07 सितंबर को नौटी में होगा
  4. - 20 दिन में बीस पड़ावों से होकर गुजरते हैं राजजात के यात्री
  5. - 280 किमी की यह यात्रा कई निर्जन पड़ावों से होकर गुजरती है
  6. - आमतौर पर हर 12वर्ष पर होती है, इस बार 14 वें वर्ष में हो रही
  7. - होमकुंड समुद्र तल से 17500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है
  8. - इसलिए इस यात्रा को हिमालयी महाकुंभ के नाम से भी जानते हैं
  9. - राजजात गढ़वाल-कुमाऊं के सांस्कृतिक मिलन का भी प्रतीक
  10. - जगह-जगह से डोलियां आकर इस यात्रा में शामिल होती हैं

7वीं शताब्दी में हुई शुरुआत

  1. 7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से देवी श्रीनंदा को 12वें वर्ष में मायके से कैलास भेजने की परंपरा शुरू की।
  2. राजा कनकपाल ने इस यात्रा को भव्य रूप दिया। इस परंपरा का निर्वहन 12 वर्ष या उससे अधिक समय के अंतराल में गढ़वाल राजा के प्रतिनिधि कांसुवा गांव के राज कुंवर, नौटी गांव के राजगुरु नौटियाल ब्राह्मण सहित 12 थोकी ब्राह्मण और चौदह सयानों के सहयोग से होता है।

चौसिंगा खाडू

धार्मिक मान्यता के अनुसार चौसिंग्या खाडू को मां नंदा का देव रथ 
धार्मिक मान्यता के अनुसार चौसिंग्या खाडू को मां नंदा का देव रथ माना जाता है। यह 12 वर्ष में नंदा देवी के मायके के क्षेत्र में पैदा होता है।

खाडू की पीठ पर लादकर मां नंदा के सामान को कैलाश तक पहुंचाया जाता है। होमकुंड से खाडू को पूजा-अर्चना के बाद कैलाश के लिए अकेले ही रवाना कर दिया जाता है, जिसका आज भी नंदा के भक्त परंपरा के रूप में निर्वहन कर रहे हैं
  1. चौसिंगा खाडू (काले रंग का भेड़) श्रीनंदा राजजात की अगुवाई करता है। मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाडू को ही यात्रा में शामिल किया जाता है।
  2. राजजात के शुभारंभ पर नौटी में विशेष पूजा-अर्चना के साथ इस खाडू के पीठ पर फंची (पोटली) बांधी जाती है, जिसमें मां नंदा की श्रृंगार सामग्री सहित देवी भक्तों की भेंट होती है। खाडू पूरी यात्रा की अगुवाई करता है।
  3. होमकुंड में इस खाडू को पोटली के साथ हिमालय के लिए विदा किया जाता है।
  4. यात्रा का शुभारंभ स्थल है नौटी
  5. सिद्धपीठ नौटी में भगवती नंदादेवी की स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ रिंगाल की पवित्र राज छंतोली और चार सींग वाले भेड़ (खाडू) की विशेष पूजा की जाती है।
  6. कांसुवा के राजवंशी कुंवर यहां यात्रा के शुभारंभ और सफलता का संकल्प लेते हैं। मां भगवती को देवी भक्त आभूषण, वस्त्र, उपहार, मिष्ठान आदि देकर हिमालय के लिए विदा करते हैं।
  7. वर्ष 1951 में मौसम खराब होने के कारण राजजात पूरी नहीं हो पाई थी। जबकि वर्ष 1962 में मनौती के छह वर्ष बाद वर्ष 1968 में राजजात हुई।

यह हैं यात्रा के पड़ाव

पहला पड़ाव : ईड़ाबधाणी
नौटी से यात्रा के शुरू होते ही श्रद्धा का सैलाब उमड़ता रहता है। ढोल-दमाऊं और पौराणिक वाद्य यंत्रों के साथ ईड़ाबधाणी पहुंचने पर मां श्रीनंदा का भव्य स्वागत किया जाता है।
दूसरा पड़ाव : नौटी
ईड़ाबधाणी से दूसरे दिन राजजात रिठोली, जाख, दियारकोट, कुकडई, पुडियाणी, कनोठ, झुरकंडे और नैंणी गांव का भ्रमण करते हुए रात्रि विश्राम के लिए नौटी पहुंचती है। यहां मंदिर में मां नंदा का जागरण होता है।
तीसरा पड़ाव : कांसुवा
नौटी से मां श्रीनंदा तीसरे पड़ाव कांसुवा गांव पहुंचती हैं, जहां राजवंशी कुंवर माई नंदा और यात्रियों का भव्य स्वागत करते हैं। यहां भराड़ी देवी और कैलापीर देवता के मंदिर हैं। भराड़ी चौक में चार सिंग के मेढ और पवित्र छंतोली की पूजा होती है।
चौथा पड़ाव : सेम
कांसुवा से सेम जाते समय चांदपुर गढ़ी विशेष राजजात का आकर्षण का केंद्र रहता है। यहां से महादेव घाट मंदिर होते हुए उज्ज्वलपुर, तोप की पूजा प्राप्त कर देवी सेम गांव पहुंचती है। यहां गैरोली और चमोला गांव की छंतोलियां शामिल होती हैं।
पांचवां पड़ाव : कोटी
सेम से धारकोट, घड़ियाल और सिमतोली में देवी की पूजा होती है। सितोलीधार में देवी की कोटिश प्रार्थना की जाती है, इसलिए धार के दूसरे छोर पर स्थित गांव का नाम कोटी पड़ा। कोटी पहुंचने पर देवी की विशेष पूजा होती है।
छठा पड़ाव : भगोती
भगोती मां श्रीनंदा के मायके क्षेत्र का सबसे अंतिम पड़ाव है। यहां केदारु देवता की छंतोली यात्रा में शामिल होती है।
सातवां पड़ाव : कुलसारी
मायके से विदा होकर मां श्रीनंदा की छंतोली अपनी ससुराल के पहले पड़ाव कुलसारी पहुंचती हैं। यहां पर राजजात हमेशा अमावस्या के दिन पहुंचती है।
आठवां पड़ाव : चेपड्यूं
कुलसारी से विदा होकर थराली पहुंचने पर भव्य मेला लगता है। यहां कुछ दूरी पर देवराड़ा गांव है, जहां बधाण की राजराजेश्वरी नंदादेवी वर्ष में छ: माह रहती है। चेपड्यूं बुटोला थोकदारों का गांव है। यहां मां नंदादेवी की स्थापना घर पर की गई है।
नौवां पड़ाव : नंदकेशरी
वर्ष 2000 की राजजात में नंदकेशरी राजजात पड़ाव बना। यहां पर बधाण की राजराजेश्वरी नंदादेवी की डोली कुरुड से चलकर राजजात में शामिल होती है। कुमाऊं से भी देव डोलियां और छंतोलियां शामिल होती हैं।
दसवां पड़ाव : फल्दियागांव
नंदकेशरी से फल्दियागांव पहुंचने के दौरान देवी मां पूर्णासेरा पर भेकलझाड़ी यात्रा में विशेष महत्व है।
पूजा-अर्चना के बाद मुंदोली पहुंचती है राजजात
ग्यारहवां पड़ाव : मुंदोली
ल्वाणी, बगरियागाड़ में पूजा-अर्चना के बाद राजजात मुंदोली पहुंचती है। गांव में महिलाएं और पुरुष सामूहिक झौंड़ा गीत गाते हैं।
बारहवां पड़ाव : वाण
लोहाजंग से देवी की राजजात अंतिम बस्ती गांव वाण पहुंचती है। यहां पर घौंसिंह, काली दानू और नंदा देवी के मंदिर हैं।
तेरहवां पड़ाव : गैरोलीपातल
द्धाणीग्वर और दाडिमडाली स्थान के बाद गरोलीपातल आता है। यह पहाड़ यात्रा का पहला निर्जन पड़ाव है।हैं।
चौदहवां पड़ाव : वैदनी
इस वर्ष की राजजात में वैदनी को पड़ाव बनाया गया है। मान्यता है कि महाकाली ने जब रक्तबीज राक्षस का वध किया था, तो भगवान शंकर ने महाकाली को इसी कुंड में स्नान कराया था, जिससे वे पुन: महागौरी रूप में आ गई थी।
15वां पड़ाव : पातरनचौंणियां
वेदनी कुड से यात्री दल पातरनचौंणियां पहुंचती है। यहां पर पूजा के बाद विश्राम होता है।
सोलहवां पड़ाव : शिला समुद्र
पातरनचौंणियां के बाद तेज चढ़ाई पार कर कैलवाविनायक पहुंचा जाता है। यहां गणेश जी की भव्य मूर्ति है। इस दौरान बगुवावासा, बल्लभ स्वेलड़ा, रुमकुंड आदि स्थानों से होकर मां नंदा की राजजात शिलासमुद्र पहुंचती है।
सत्रहवां पड़ाव : चंदनियाघाट
होमकुंड में राजजात मनाने के बाद नंदा भक्त रात्रि विश्राम के लिए चंदनियाघाट पहुंचते हैं। यहां पहुंचने का रास्ता काफी खतरनाक है।
अठारहवां पड़ाव : सुतोल
राजजात पूजा के बाद श्रद्धालु रात्रि विश्राम के लिए सुतोल पहुंचते हैं। इस गांव के रास्ते में तातड़ा में धौसिंह का मंदिर है।
उन्नीसवां पड़ाव : घाट
नंदाकिनी नदी के दाहिने किनारे चलकर सितैल से नंदाकिनी का पुल पार कर श्रद्धालु घाट पहुंचते हैं।
वापसी नौटी
घाट और नंदप्रयाग से होते हुए श्रद्धालु सड़क मार्ग से कर्णप्रयाग पहुंचते हैं। यहां ड्यूड़ी ब्राह्मण राजकुंवर और बारह थोकी के ब्राह्मणों को विदा करते हैं। नौटी पहुंचते हैं। अन्य को भी सुफल देते हुए राजकुंवर और राज पुरोहित के साथ शेष यात्री नंदाधाम नौटी पहुंचते हैं।
गढ़ी जा रही हैं नई परंपराएं।
  1. मान्यता है कि नंदा जब अपने ससुराल के लिए निकली तो इस गांव के लोगों ने नंदा का खूब स्वागत किया था। तब से नंदा की जात ईड़ा बधानी जरूर जाती है। पर दूर से सीधी और सरल दिखने वाली जात स्थानीय स्तर पर उतनी ही उलझी हु़ई है।
  2. नंदा को विदा करने की इस जात का गांव से गहरा नाता है और यह दिख भी रहा है। 175 परिवार वाले नौटी गांव में करीब सौ परिवार ही गांव में रहते हैं, पर जात के लिए बाकी केपरिवार वापस गांव पहुंच रहे हैं। नौटी में चहल-पहल खासी बढ़ गई है। गाड़ियों का तांता लग चुका है और नौटी में सड़क पर जाम की स्थिति है।

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