रहस्यों से भरपूर ऋषि पराशर मंदिर (Rishi Parashar Temple full of mysteries)

रहस्यों से भरपूर ऋषि पराशर मंदिर (Rishi Parashar Temple full of mysteries)

ऋषि पराशर मंदिर
देवभूमि हिमाचल सदियों से ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है। ऋषि-मुनियों की तपस्या के कारण ही वे स्थान धार्मिक स्थल बन गए। इनमें से एक तपोस्थल मंडी में ऋषि पराशर का भी है, जिसे अब पराशर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि ऋषि पराशर अपने अध्यात्म के लिए उचित स्थान तलाश रहे थे। पहले उन्होंने व्यास नदी के तट पर भ्यूली नामक स्थान पर तपस्या करनी चाही, लेकिन  स्थान उपयुक्त नहीं होने से, वह स्थान छोड़ गांव नसलोह पहुंचे। वहां के शांत वातावरण में तपस्या करनी चाही, लेकिन वहां भी उनकी तपस्या में विघ्न पड़ने से ऋषि वहां से उठकर आगे चल पड़े। कहा जाता है कि जहां ऋषि तपस्या करने बैठते पहले वहां पानी निकालते थे। नसलोह गांव से निकलकर ऋषि उस स्थान पर पहुंचे, जिसे अब पराशर कहते हैं। जहां ऋषि ने एक स्थान पर बैठ कर अपना चिमटा मारा, वहां जमीन से पानी निकला, धीरे-धीरे वह पानी बढ़ता गया और झील का रूप धारण कर लिया। इसी तपस्या स्थल पर बाद में मंदिर भी बना दिया गया। इसके निर्माण के बारे में बताया जाता है कि इस मंदिर को बनने में बारह साल लगे है। यह मंदिर देवदार के एक विशाल वृक्ष से ही तैयार हुआ है।
ऋषि पराशर मंदिर
 यह मंदिर तीन मंजिला है और पैगोड़ा शैली में बना है। पराशर मंदिर तथा झील समुद्र तल से 9000 फुट की ऊंचाई पर है। यह स्थान मंडी से 48 किलोमीटर दूर है। पराशर झील के निकट हर वर्ष आषाढ़ की संक्रांति व भाद्रपद की कृष्णपक्ष की पंचमी को विशाल मेला लगता हैं। भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग दूर-दूर से आकर पराशर ऋषि तथा झील के दर्शन करते हैं। पराशर झील के चारों तरफ पर्वतों का घेरा है। इसे देख ऐसा लगता है कि यह चारदीवारी झील की रक्षा कर रही है। मंदिर में पराशर ऋषि की मूर्ति ऐसे रखी है, जिससे सब लोग बाहर से ही आसानी से दर्शन कर लेते हैं। पराशर झील का घेरा एक किलोमीटर का है। झील के अंदर एक बड़ा तैरता भूखंड है। इसे यहां के लोग प्रभु की नाव कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस भूखंड पर बैठ कर झील की परिक्रमा करते हैं। झील की गहराई का पता आज तक नहीं चल पाया है। आज सड़क सुविधा से जुड़ जाने के बाद पराशर ऋषि की यह तपोस्थली धार्मिक ही नहीं पर्यटन स्थली भी बन गई है।  प्रकृति के इस सुंदर स्थान पर पहुंचकर लोग अपनी सारी थकान भूल जाते हैं। पराशर ऋषि मंदिर और झील के प्रति लोगों की गहरी आस्था है।
ऋषि पराशर मंदिर
पराशर 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पराशर झील, घने जंगल और धौलाधर के बर्फ पहने हुए पर्वतों के मनोरम दृश्य के लिए जाना जाता है। “पराशर झील” जिसमें लगभग 300 मीटर की परिधि है। इसमें एक तैरता द्वीप है, इसका स्वच्छ पानी इस सुंदर स्थान के आकर्षण में जोड़ता है। परंपरागत रूप से, ऐसा माना जाता है कि झील का गठन ऋषि पराशर द्वारा रॉड (गुर्ज) के हमले के परिणामस्वरूप किया गया था और पानी निकला और झील का आकार लिया। ऋषि पराशर , मंडी क्षेत्र के संरक्षक देवता को समर्पित एक प्राचीन पगोडा शैली मंदिर, झील के अलावा खड़ा है। 13-14 वीं शताब्दी में राजा बन सेन द्वारा मंदिर का निर्माण किया गया है, जिसमें ऋषि पिंडी (पत्थर) के रूप में मौजूद हैं। यह भी कहा जाता है कि पूरा मंदिर एकल देवदार पेड़ का उपयोग करके बनाया गया था और मंदिर निर्माण को पूरा करने में 12 साल लग गए थे। झील के चारों ओर घूमने से आसपास के शांतता का रहस्यमय अनुभव मिलता है। पराशर की यात्रा आध्यात्मिक यात्रा का एकदम सही मिश्रण है और शांत और सुंदर हिमालय पहाड़ों में खोज रही है। कई शिविर स्थल भी यहां स्थित हैं और यह कई आसान और कठिन ट्रेक के लिए आधार है। मंडी और अन्य आस-पास के जिलों के लोग पराशर ऋषि की पूजा के लिए जगह पर जाते हैं और मानते हैं कि उनकी इच्छा ऋषि के आशीर्वाद से पूरी की जाएगी। जून के महीने में “सरनौहाली” मेला होता है जिसमें मंडी और कुल्लू जिलों की बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भाग लेते हैं। एक वन रेस्ट हाउस, एचपीपीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस और मंदिर समिति के सराय रात के ठहरने के लिए उपलब्ध हैं।

कैसे पहुंचें:
हवाई यात्रा द्वारा
पराशर से निकत्तम एयरपोर्ट लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर भुंतर जिला कुल्लू , हिमाचल प्रदेश में स्थित है 
ट्रेन द्वारा
पराशर से निकत्तम रेल संपर्क जोगिन्दर नगर, जिला मंडी हिमाचल प्रदेश में लगभग 88 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है 
सड़क के द्वारा
पराशर जिला मुख्यालय मण्डी से लगभग से सड़क मार्ग से 50 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है 

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