शिव बाड़ी- ऊना हिमाचल प्रदेश (Shiv Bari- Una Himachal Pradesh)
शिव बाड़ी, ऊनाहोशियारपुर-धर्मशाला रोड पर स्थित, शिव बारी स्वान नदी के तट पर स्थित है और इस स्थान को गुरु द्रोणाचार्य के तीरंदाजी विद्यार्थियों के लिए अभ्यास क्षेत्र माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, शिव बारी में भगवान शिव मंदिर का निर्माण गुरु द्रोणाचार्य ने अपनी बेटी जयति के लिए हिंदू भगवान शिव की पूजा करने के लिए किया था। जुलाई और अगस्त के महीने में यहां बड़ी संख्या में लोग शिव लिंग पर गुलदस्ते चढ़ाने के लिए आते हैं।
शिव बाड़ी- ऊना हिमाचल प्रदेश (Shiv Bari- Una Himachal Pradesh) |
सावन माह में की गई शिव पूजा सालों तक किए गए यज्ञ के बराबर फल प्रदान करती है। आज हम आपको मानसिक यात्रा व दर्शन कराएगा शिवबाड़ी मंदिर के जो गगरेट के पास है और बहुत प्रसिद्ध है। चिंतपूर्णी चालीसा में लिखा है की माता चिंतपूर्णी चार शिवलिंग में घिरी हुई हैं जिसकी बहुत कम लोगों को जानकारी है। इनमें से एक मंदिर शिवबाड़ी है।
ऊना जिला के अम्ब उपमंडल के गगरेट से कुछ दूरी पर अम्बोटा नामक स्थान पर हरी-भरी जंगलनुमा विशाल बाड़ी के बीचों-बीच, पावन प्राचीन सोमभद्रा नदी (जो आज स्वां नदी के नाम से जानी जाती है) के किनारे भोले बाबा का प्राचीन मंदिर स्थित है। जिसमें भगवान शिव पावन पिंडी के रूप में विराजमान हैं। यहां लोग पावन शिवलिंग की ॐ नम शिवाय:’ मंत्र जाप के साथ पूजा-अर्चना के साथ जलाभिषेक करके अपने जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं।
शिव बाड़ी- ऊना हिमाचल प्रदेश (Shiv Bari- Una Himachal Pradesh) |
शिवबाड़ी में भगवान शिव का शिवलिंग रूप भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र बिंदु है। इस पावन स्थान पर उमड़ने वाला भारी भक्त समूह अपनी अटूट आस्था को प्रमाणित करता है। पूरा साल भक्त दूर-दूर से संक्रांति, श्रावण मास, सोमवार, शिवरात्रि व अन्य त्यौहारों पर भोले के दरबार में आकर नतमस्तक होते हैं। पर्यावरण संरक्षण की मिसाल इस पावन शिवस्थली को लेकर प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है। प्राचीन काल से मान्यता है कि शिवबाड़ी क्षेत्र से लकड़ी काटना वर्जित है। यहां की लकड़ी का प्रयोग केवल दाह संस्कार के लिए करने की अनुमति है।
इस प्राचीन देवस्थली के इतिहास के बारे में जनश्रुतियों के अनुसार यह क्षेत्र पांडवकाल में गुरु द्रोणाचार्य द्वारा अपने शिष्यों को धनुर्विद्या सिखाने का प्रशिक्षण स्थल हुआ करता था। गुरु द्रोणाचार्य हर रोज स्वां नदी में स्नान करने के लिए जाते और उसके उपरांत भगवान के दर्शनार्थ हिमालय पर्वत को जाया करते थे।
उनकी पुत्री जिसका नाम ‘यज्याती’ था को वह प्रेम से ‘याता’ के नाम से पुकारते थे। वह अपने पिता से रोज पूछा करती थी कि आप स्नान के बाद रोज कहां जाते हैं? वह उनके साथ जाने की जिद्द किया करती। याता के बाल हठ को समझते हुए द्रोणाचार्य ने उसे बताया कि वह रोज भगवान शंकर के दर्शनार्थ जाते हैं और किसी दिन उसे अपने साथ ले जाने का वायदा किया। तब तक याता को ॐ नम शिवाय’ मंत्र का जाप करने को कहा। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा।
यज्याती की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव बाल रूप में शिवबाड़ी क्षेत्र में आकर द्रोण पुत्री के साथ खेलने लगे। भगवान शिव ने उसे हर वर्ष शिवबाड़ी मेले के दिन इस क्षेत्र में विद्यमान रहने की बात कही। यज्याती के भाई ने अपने पिता को इस घटना के बारे में बताया। द्रोण के मन में भी वास्तविकता जानने की जिज्ञासा हुई। वह एक दिन स्नान के बाद आधे रास्ते से लौट आए तथा उन्होंने यह अद्भुत दृश्य देखा।
उसके उपरांत गुरु द्रोण द्वारा इस पावन क्षेत्र में पावन शिवलिंग की स्थापना की गई। शिवबाड़ी में अद्भुत शिवलिंग की विशेषता है कि यह धरती के अंदर की ओर स्थित है जबकि भगवान का शिवलिंग ऊपर की तरफ उठा होता है। शिवबाड़ी में पावन शिवलिंग की पूरी परिक्रमा (फेरी) लेने का विधान प्रचलित है।
मंदिर से कुछ दूरी पर एक जल स्त्रोत में स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। शिवबाड़ी मंदिर परिसर जहां हरी भरी बाड़ी के बीचों-बीच स्थित है, वहीं मंदिर परिसर में तप करने वाले साधकों की अनेक समाधियां हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें