शूलिनी मंदिर, सोलन जिला ( हिमाचल प्रदेश)Shoolini Temple, Solan District (Himachal Pradesh)

 शूलिनी मंदिर, सोलन जिला ( हिमाचल प्रदेश)Shoolini Temple, Solan District (Himachal Pradesh)

शूलिनी मंदिर - शूलिनी माता का मंदिर सोलन में स्थित है। शूलिनी माता के नाम पर ही सोलन शहर का मकरण हुआ है।
 शूलिनी मंदिर, सोलन जिला

नाम: शूलिनी मंदिर
स्थान:     शिमला से 43 किमी की दूरी पर और सोलन रेलवे स्टेशन से 1.5 किमी की दूरी पर, शूलिनी देवी मंदिर सोलन में स्थित प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

विवरण:

शूलिनी मंदिर देवी शूलिनी माता को समर्पित है जो देवी दुर्गा का अवतार हैं। सोलन शहर का नाम शूलिनी देवी के नाम पर रखा गया था। शूलिनी माता मंदिर सोलन के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर सोलन शहर से पहले बने एक पुराने मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया है। यह मंदिर सुंदर परिदृश्यों के व्यापक दृश्यों से घिरा हुआ है और इस प्रकार भक्तों के लिए एक जादुई वातावरण बनाता है। मंदिर रात में सुंदर दिखता है जब यह पूरी तरह से रोशन होता है और छुट्टियों और त्योहारों पर भीड़ होती है।

शूलिनी देवी मंदिर हर साल जून के आखिरी सप्ताह में मनाए जाने वाले वार्षिक शूलिनी उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। 3 दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार और मेला राज्य के हजारों पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करता है। सोलन मेले के रूप में भी जाना जाता है, सोलन में शूलिनी देवी उत्सव का मुख्य आकर्षण नृत्य, गायन और कुश्ती हैं। देवी की मूर्ति को पालकी में ले जाया जाता है और शहर के चारों ओर एक विशाल जुलूस निकाला जाता है।
 शूलिनी मंदिर, सोलन जिला

शूलिनी देवी को भगवान शिव की शक्ति माना जाता है। कहते हैं जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि-मुनि तंग हो गए थे, तो वे भगवान शिव और विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी थी। तो भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा प्रकट हुई थी। जिससे सभी देवता खुश हो गए थे और अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट करके दुर्गा मां का सम्मान किया था। इसके बाद भगवान शिव ने त्रिशूल से एक  शूल देवी मां को भेंट किया था, जिसकी वजह से देवी दुर्गा मां का नाम शूलिनी पड़ा था…

 शूलिनी मंदिर, सोलन जिला

जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि- मुनि तंग हो गए थे, तो वे भगवान शिव और विष्णु जी के पास गए और उनसे सहायता मांगी थी। तो भगवान शिव और विष्णु के तेज से भगवती दुर्गा प्रकट हुई थी। जिससे सभी देवता खुश हो गए थे और अपने अस्त्र-शस्त्र भेंट करके दुर्गा मां का सम्मान किया था। इसके बाद भगवान शिव ने त्रिशूल से एक शूल देवी मां को भेंट किया था, जिसकी वजह से देवी दुर्गा मां का नाम शूलिनी पड़ा था। ये वही त्रिशूल है, जिससे मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था जोकि मां शूलिनी की अपार कृपा से दिन-प्रतिदिन समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है। सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करता था। इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी तदोपरांत कोटी और बाद में सोलन बनी। राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे। रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है। जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे। बदलते समय के दौरान यह मेला आज भी अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार चल रहा है। माता शूलिनी के इस मंदिर का पुराना इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। बघाट रियासत के लोग माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते थे, तभी से माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों के लिए उनकी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। वर्तमान समय में माता शूलिनी का भव्य मंदिर सोलन शहर के दक्षिण दिशा में बना हुआ है। इस मंदिर के अंदर माता शूलिनी के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती है जैसे कि शिरगुल देवता,माली देवता इत्यादि तथा मंदिर के अंदर इनकी बड़ी प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं। कहते हैं कि इस मेले के जरिये मां शूलिनी शहर के भ्रमण पर निकलती हैं और जब वापस आती हैं, तो अपनी बहन के पास दो दिन के लिए रुकती हैं। इसके बाद मां शूलिनी मंदिर वापस आती है, यही वजह है कि मेले का आयोजन किया जाता है। साथ ही पूरे शहर में भंडारों का आयोजन भी किया जाता है। हर साल मेले की शुरुआत मां शूलिनी देवी की शोभा यात्रा से होती है, जिसमें माता की पालकी के अलावा विभिन्न धार्मिक झांकियां भी निकाली जाती हैं। इस यात्रा में हजारों की संख्या में लोग माता शूलिनी के दर्शन करके सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मां शूलिनी के दर से कोई भक्त निराश नहीं लौटता,  क्योंकि शिव की शक्ति होने से देवी शूलिनी भी दया व कृपा  ही बरसाती हैं। नवरात्रों में लाखों भक्त मां के दरबार में नतमस्तक होने पहुंचते हैं।

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