श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर (Shri Kamleshwar Mahadev Temple, Srinagar Uttarakhand)

कमलेश्वर महादेव मन्दिर ।। श्रीनगर ।। पौड़ी गढ़वाल ।। उत्तराखण्ड

श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर

श्रीनगर गढ़वाल में अति प्राचीन मंदिरों में से एक भगवान कमलेश्वर का मंदिर है. मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी के दिन निसंतान दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं और उनकी मनोकामना पूरी भी होती है. पौड़ी के श्रीनगर में भगवान शिव का मंदिर है, जिसे कमलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. मंदिर के बारे में मान्यता है कि रावण वध करने के बाद श्रीराम गुरु वशिष्ठ की आज्ञा अनुसार भगवान शिव की उपासना करने के लिए कमलेश्वर मंदिर आए थे. इस स्थान पर आकर उन्होंने 108 कमलों से भगवान शिव की उपासना की थी, जिसके बाद से यहां का नाम कमलेश्वर पड़ गया.

ऐतिहासिक व पौराणिक है कमलेश्वर महादेव मंदिर

श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर
कमलेश्वर महादेव मंदिर श्रीनगर गढ़वाल में स्थित पौराणिक मंदिर है. यह उत्तराखंड के प्राचीन शिवालयों में से एक शिवालय है. मुख्य मंदिर के एक कमरे में सरस्वती, गंगा तथा अन्नपूर्णा की धातु की मूर्तिया है. वहीं नंदी महाराज की एक विशाल कलात्मक पीतल की मूर्ति मुख्य मंदिर परिसर में मौजूद है. मंदिर के पार्श्व भाग में गणेश व शंकराचार्य की मूर्तियां स्थापित की गई है. कहा जाता है कि चारधाम यात्रा से पहले या बाद कमलेश्वर महादेव के दर्शन करना शुभ होता है व यात्रा को सफल बनाता है. यहां भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की भी प्राप्ति हुई थी.

यहां अचला सप्तमी (घृत कमल), महाशिवरात्रि और बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व है, जिसमें दूर दराज से आए निसंतान दंपति जलते दीए को अपने हाथ में रखकर रात भर जाप और जागरण करते हैं. सुबह दीपक को अलकनंदा में प्रवाहित कर मंदिर में पूजा करते हैं. यहां के लोगों की धार्मिक आस्था के अनुसार उनके द्वारा दीप धारित तप साधना से निश्चित रूप से उनकी संतान की मनोकामना पूरी हो जाती है.

श्रीकृष्ण ने किया था व्रत

श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर
कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पूरी ने बताया कि सतयुग में भगवान विष्णु ने शिव को सहस्त्र कमल चढ़ाकर सुदर्शन चक्र को प्राप्त किया था. त्रेतायुग में भगवान रामचंद्र ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव को 108 कमल के पुष्प चढ़ाए. द्वापर युग में कृष्ण ने जामवंती के कहने पर खड़ा दीपक का व्रत किया, जिसके बाद उन्हें स्वाम नामक पुत्र की प्राप्ति हुई और कलयुग में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) को निसंतान दंपति संतान प्राप्ति के लिए यहां खड़ा दीपक (जलते दीपक को रात भर हाथ में रखकर पूजा करना) का व्रत करते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि मंदिर में बैकुंठ चतुर्दशी, (निसंतान दंपति) महाशिवरात्रि, माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी के दिन अचला सप्तमी (घृत कमल पूजा) में भक्तों का तांता लगा रहता है.

पौराणिक कथा

द्वापर युग में, भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी जाम्बबती के साथ इस स्थान का दौरा किया था। उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे यहां आए और भगवान कमलेश्वर की पूजा की। उसके बाद उनके पुत्र शम्बा का जन्म हुआ।
श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर

निसंतान दंपति यहां करते हैं खड़े दिए का अनुष्ठान

बैकुंठ चतुदर्शी के दिन यहां एक विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है. आयोजित अनुष्ठान में निसंतान दंपति प्रतिभाग करते हैं, यहां देश-विदेश से बड़ी संख्या में निसंतान दंपति अनुष्ठान में प्रतिभाग करने के लिए पहुंचते हैं. इन्हें रात भर हाथ पर जलते दीये को लेकर खड़ा रहना पड़ता है, मान्यता है कि यहां खड़े दिये का अनुष्ठान करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. इस दौरान भजन संध्या के साथ मंदिर में आध्यात्मिक माहौल रहता है. प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में यहां निसंतान दंपति अनुष्ठान के लिए पहुंचते हैं. इसके अलावा यहां घृत कमल का अनुष्ठान भी किया जाता है कहा जाता है कि भगवान शिव की काम शक्ति जागृत करने के लिए यह अनुष्ठान किया जाता है.

चांदी से सजेगा गर्भगृह

श्री कमलेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर
अब इन दिनों कमलेश्वर महादेव मंदिर के सौंदर्यीकरण व जीर्णोद्धार को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है. मंदिर के महंत आशुतोष पूरी ने बताया कि पहले चरण में मंदिर के गर्भगृह में बने लकड़ी की समग्री को बदल कर उसके सथान पर चांदी की सामग्री लगवाई जाएगी. वहीं दूसरे चरण में मंदिर के फर्श का निर्माण भी विशेष पत्थरों से करवाने की योजना बन रही है.

पौराणिक कथा 

  1. इस मंदिर से जुड़ी कुछ दिलचस्प पौराणिक कहानियाँ हैं, और वे हिंदू युग के चार "युगों" तक फैली हुई हैं।
  2. सत्ययुग में देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। देवता पराजित हो गए और उन्हें स्वर्ग छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
  3. देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु सहमत हो गए, लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास कोई उचित हथियार नहीं था।
  4. इसलिए वह एक स्थान पर गए और 1000 "कमल" यानी कमल के फूलों से भगवान शिव की पूजा की। भगवान शिव प्रकट हुए और भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया जिससे विष्णु ने असुरों को हराया।
  5. भगवान शिव उस स्थान पर एक पत्थर के लिंग के रूप में रुके थे, जिसका नाम कमल के फूल के नाम पर कमलेश्वर महादेव रखा गया (कमलेश्वर का शाब्दिक अर्थ है "कमल का भगवान")।

पौराणिक कथा द्वितीय

  1. त्रेता युग में भगवान राम केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों की यात्रा के दौरान यहां आये थे।
  2. भगवान राम ने रावण का वध किया, जो राक्षस होने के बावजूद एक ब्राह्मण था और भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था।
  3. भगवान राम को एक ब्राह्मण की हत्या के कारण श्राप मिला था। इसलिए भगवान राम उच्च हिमालय में केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों के दर्शन करने आये। अपने रास्ते में, वह 1000 कमल या लोटस फूलों के साथ भगवान कमलेश्वर की पूजा करने के लिए यहां रुके।

युग काल

  1. वर्तमान कलियुग में लोग मुख्यतः दो कारणों से यहाँ आते हैं।
  2. संतान प्राप्ति के लिए निःसंतान दंपत्ति हजारों की संख्या में भगवान कमलेश्वर महादेव की पूजा करने के लिए यहां आते हैं, और भगवान केदारनाथ और भगवान बद्रीनाथ के मंदिरों की यात्रा पर जाने वाले लोग भगवान राम के नक्शेकदम पर अपनी यात्रा (तीर्थयात्रा) पूरी करने के लिए भगवान कमलेश्वर की पूजा करने के लिए यहां आते हैं।

कमलेश्वर मंदिर

  1. यह वास्तव में एक मंदिर-परिसर है जिसमें एक दीवार के अंदर कई मंदिर हैं। एक तरफ एक बड़ा "दीप दान" (लैंप स्टैंड) है। परिसर के अंदर पीतल की घंटियों की कतारें लटकी हुई हैं।
  2. मुख्य मंदिर में भगवान कमलेश्वर का स्वयंभू (स्वयं प्रकट) लिंगम है, साथ ही दो अन्य शिव लिंगम हैं जो भैरव (भगवान शिव का अवतार) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  3. शिव लिंगम काले पत्थर का एक टुकड़ा है, जिसका आकार असमान है, जिसे पीतल से बने गौरी-पट्ट या योनि-पीठ के केंद्र में रखा गया है।
  4. उसी परिसर में भगवान गणेश, देवी भवानी, पंचमुखी हनुमना (पंच मुखी हनुमना) और देवी अन्नपूर्णा को समर्पित अन्य छोटे मंदिर भी हैं।
  5. मुख्य मंदिर के सामने भगवान शिव के वाहन नंदी बैल की दो मूर्तियाँ हैं, एक पत्थर से बनी है और दूसरी पीतल से।
  6. एक कोने पर, एक "यज्ञशाला" है, एक ऐसा स्थान जहाँ यज्ञ, या अग्नि पूजा की जाती है।
  7. कार्तिक माह में शिवरात्रि और चतुर्दशी के अवसर पर, हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं।
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भगवान् शिव या भोलेनाथ / महादेव 
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  5. भगवान् शिव या भोलेनाथ / महादेव - भगवान शिव मंत्र (Lord Shiva or Bholenath / Mahadev - Lord Shiva Mantra)
  6. द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम (Lord Shiva / Mahadev Dwadash Jyotirlinga Stotram)
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  14. भगवान् शिव या भोलेनाथ / महादेव - शिवरात्रि आरती (Lord Shiva or Bholenath / Mahadev - Shivaratri Aarti)

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