तारकेश्वर महादेव मंदिर (Tarakeshwar Mahadev Temple Pauri Garhwal)
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तारकेश्वर महादेव मंदिर (Tarakeshwar Mahadev Temple Pauri Garhwal)
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यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ‘गढ़वाल राइफल’ के मुख्यालय लांसडाउन से यह मंदिर 36 किलोमीटर दूर है। देवदार और पाइन के घने जंगलों से घिरा यह स्थान उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौंदर्य की तलाश करते हैं। शिवरात्रि के दौरान यहाँ पैर एक विशेष पूजा की जाती है। मंदिर समिति आवास के लिए एक धर्मशाला की सुविधा प्रदान करता है
लैंसडाउन में ताड़केश्वर महादेव मंदिर
एकांत, अछूता लेकिन भगवान शिव भक्तों की पवित्र आस्था से परिपूर्ण, ताड़केश्वर महादेव मंदिर "भगवान शिव को भोले नाथ क्यों कहा जाता है?" का एक अच्छा उदाहरण है।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का सिद्धपीठ
भगवान शिव 'महादेव' के साथ एक राक्षस का नाम 'तारकेश्वर या ताड़केश्वर' जोड़कर जाना जाता है, तारकेश्वर महादेव भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था और भक्ति का मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार, तारकासुर एक राक्षस था जिसने वरदान के लिए इस स्थान पर भगवान शिव का ध्यान और पूजा की थी।
तारकासुर की अपार भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने तारकासुर के अनुरोध के अनुसार उसे अमरता का वरदान दिया, सिवाय भगवान शिव के पुत्र के। इस विचार से संतुष्ट होकर कि भगवान शिव 'वैराग्य (सांसारिक चीजों और भावनाओं से अलगाव) का पालन करते हैं, तारकासुर ने भगवान शिव से अमरता की वरदान शर्त स्वीकार कर ली।
तारकासुर ने संतों की हत्या करके और पृथ्वी पर शांतिपूर्ण वातावरण को नष्ट करके दुष्टता शुरू कर दी थी। साधु-संतों ने भगवान शिव से मदद मांगी. तारकासुर के गलत कार्यों से परेशान होकर भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और कार्तिकय का जन्म हुआ। कार्तिकय ने जल्द ही तारकासुर को मार डाला लेकिन मृत्यु के समय तारकासुर ने भगवान शिव से प्रार्थना की और क्षमा मांगी। महादेव ने तब अपना नाम उस मंदिर से जोड़ लिया जहां तारकासुर ने एक बार तपस्या की थी और उसे कलयुग में भी प्रार्थना करने का वरदान दिया था। उस स्थान का नाम ताड़केश्वर महादेव रखा गया।
ताड़केश्वर महादेव मंदिर में पहले एक शिवलिंग मौजूद था, लेकिन अब तांडव नृत्य करते हुए भगवान शिव की मूर्ति की पूजा की जाती है। भगवान शिव की यह मूर्ति कुछ साल पहले उसी स्थान पर खोजी गई थी जहां पर शिवलिंग मौजूद था। मंदिर में एक आश्रम और धर्मशाला मौजूद है। पहले से यात्रा की पूर्व सूचना देकर, कोई भी रुक सकता है और धर्मशाला में आश्रम के नियमों के अनुसार नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना परोसा जा सकता है।
महाशिवरात्रि के दिन ताड़केश्वर महादेव मंदिर दूर-दूर से आए भक्तों से खचाखच भर जाता है। कई भक्तों का मानना था कि भगवान शिव अभी भी वहीं हैं और गहरी नींद में हैं। मंदिर के चारों ओर हजारों घंटियाँ हैं जो भक्तों द्वारा चढ़ाई जाती हैं।
मान्यताएं | Beliefs
कहते है कि ताड़केश्वर महादेव (Tadkeshwar Mahadev) ने अपने भक्तों के सपनों में आकर कहा था कि यह मंदिर उनका आवास है और देवदार का सुंदरवन उनका उद्यान है। यह भी मान्यता है कि एक विशेष जाति के लोगों का यहां आना वर्जित है। इस मंदिर में सरसों का तेल भी नहीं चढ़ाया जाता है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर में पहले शिवलिंग थी लेकिन अब यहां भगवान शिव की मूर्ति है जिसमें वह तांडव करते हुए दिखाए गए हैं।
कहा जाता है कि जहां शिवलिंग थी वहां कुछ साल पहले भगवान शिव की यह मूर्ति मिली थी। शिवलिंग अभी भी मंदिर के आँगन में है। शिवलिंग में जो जल चढ़ाया जाता है वह मंदिर परिसर में जिस कुंड का है उसके बारे में कहा जाता है कि इसे मां लक्ष्मी ने बनाया था। मंदिर में नारियल और तिल का तेल चढ़ाया जाता है। मुख्य मंदिर के समीप एक अन्य मंदिर है जो मां पार्वती का है। मंदिर परिसर में ही हवन कुंड है जहां पर अग्नि प्रज्वलित रहती है। यहां पर भक्तगण धूप अर्पित करते है। ताड़केश्वर मंदिर में लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और जिस भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है वह मंदिर में घंटी चढ़ाता है। प्रवेश द्वार से मंदिर तक इन घंटियों को देखा जा सकता है।
मंदिर के समीप आश्रम और धर्मशाला भी बनाई गई है जहां पर खानपान की व्यवस्था है। यहां पर हर साल भंडारे का आयोजन किया जाता है। यहां पर एक देवदार का वृक्ष है जो 4 शाखाओं में विभाजित है उसे आप कहीं से भी देखें तो त्रिशूल की आकृति दिखाई देती है।
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Frequently Asked Questions (FQCs): तारकेश्वर महादेव मंदिर (Tarakeshwar Mahadev Temple Pauri Garhwal)
1. तारकेश्वर महादेव मंदिर कहाँ स्थित है?
तारकेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह लैंसडाउन से 36 किलोमीटर दूर और घने देवदार तथा पाइन के जंगलों के बीच स्थित है।
2. यह मंदिर किस देवता को समर्पित है?
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसे भगवान शिव का सिद्धपीठ भी माना जाता है।
3. मंदिर का नाम "तारकेश्वर" कैसे पड़ा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस तारकासुर ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी और अमरता का वरदान प्राप्त किया। बाद में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। मृत्यु के समय, तारकासुर ने भगवान शिव से प्रार्थना की, जिसके बाद भगवान शिव ने अपना नाम इस स्थान से जोड़ लिया और इसे "तारकेश्वर महादेव" कहा गया।
4. मंदिर से संबंधित प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
- भगवान शिव ने अपने भक्तों के सपनों में आकर कहा कि यह स्थान उनका निवास है और आसपास के देवदार के वृक्ष उनके उद्यान हैं।
- यह भी माना जाता है कि यहां सरसों का तेल चढ़ाना वर्जित है।
- भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने पर वे मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं।
5. मंदिर में शिवलिंग और मूर्ति का क्या महत्व है?
- पहले मंदिर में शिवलिंग की पूजा होती थी। अब भगवान शिव की एक मूर्ति की पूजा की जाती है, जिसमें वे तांडव नृत्य करते हुए दिखाए गए हैं।
- शिवलिंग अभी भी मंदिर के आंगन में मौजूद है।
- शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है, वह पास के कुंड से लिया जाता है, जिसे मां लक्ष्मी द्वारा बनाया गया माना जाता है।
6. मंदिर में कौन-कौन से पूजनीय स्थल हैं?
- मुख्य मंदिर: भगवान शिव को समर्पित।
- मां पार्वती का मंदिर: मुख्य मंदिर के पास स्थित।
- हवन कुंड: जहां भक्त हवन और धूप अर्पित करते हैं।
- त्रिशूल के आकार वाला देवदार का वृक्ष: इसे त्रिशूल के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
7. यहां कौन-कौन से अनुष्ठान और त्यौहार मनाए जाते हैं?
- महाशिवरात्रि: इस दिन मंदिर में विशेष पूजा होती है और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
- भंडारा: हर साल मंदिर परिसर में भंडारे का आयोजन किया जाता है।
8. मंदिर तक पहुँचने के क्या साधन हैं?
मंदिर तक पहुँचने के लिए लैंसडाउन से 36 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। यह स्थान सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
9. भक्तों के ठहरने और भोजन की क्या व्यवस्था है?
मंदिर परिसर में एक आश्रम और धर्मशाला उपलब्ध है। यहां नाश्ता, दोपहर का भोजन, और रात का खाना आश्रम के नियमों के अनुसार परोसा जाता है।
10. मंदिर में पर्यटकों और भक्तों के लिए क्या विशेष आकर्षण है?
- घने देवदार और पाइन के जंगलों का प्राकृतिक सौंदर्य।
- शिवलिंग और तांडव नृत्य करती भगवान शिव की मूर्ति।
- त्रिशूल के आकार वाला देवदार का वृक्ष।
- शांत और एकांत वातावरण जो अध्यात्म और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करता है।
11. ताड़केश्वर महादेव मंदिर कब जाना सबसे अच्छा रहता है?
मार्च से जून तक का समय सबसे उपयुक्त है। इस दौरान मौसम सुहावना होता है और जंगल बुरांश के फूलों से भर जाते हैं।
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भगवान् शिव या भोलेनाथ / महादेव
पौड़ी गढ़वाल मंदिर (उत्तराखंड / उत्तराँचल / जय देव भूमि )Pauri Garhwal Temple (Uttarakhand / Uttarachal / Jai Dev Bhoomi)
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