वज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ कांगड़ा(Vajreshwari Devi Shaktipeeth Kangra)

वज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ कांगड़ा(Vajreshwari Devi Shaktipeeth Kangra)


Vajreshwari Devi Shaktipeeth kangda

ब्रिजेश्वरी मंदिर

ब्रजेश्वरी मंदिरबृजेश्वरी का मंदिर, भारत के हिमाचल प्रदेश कांगड़ा जिले के कांगड़ा जिले में नगरकोट में स्थित है और कांगड़ा के नजदीकी रेलवे स्टेशन से 11 किमी दूर है। कांगड़ा किला पास स्थित है। एक पौराणिक कथा कहती है कि देवी सती के बाद भगवान शिव के सम्मान में अपने पिता यज्ञ में बलिदान किया था। शिव ने अपने शरीर को अपने कंधे पर ले लिया और तांडव शुरू कर दिया। उसे विश्व को नष्ट करने से रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र के साथ सती का शरीर 51 भागों में विभाजित किया। सती के बायां स्तन इस स्थान पर गिर गए, इस प्रकार यह एक शक्ति पीठ बना। मूल मंदिर महाभारत के समय पांडवों द्वारा बनाया गया था। किंवदंती कहते हैं कि एक दिन पांडवों ने अपने स्वप्न में देवी दुर्गा को देखा था जिसमें उन्होंने उन्हें बताया कि वह नागराकोत गांव में स्थित है और यदि वे चाहते हैं कि वे स्वयं को सुरक्षित रखें तो उन्हें उस क्षेत्र में उनके लिए मंदिर बनाना चाहिए अन्यथा वे नष्ट हो जाएंगे। उसी रात उन्होंने नगरकोट गांव में उनके लिए एक शानदार मंदिर बनाया। यह मंदिर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूट लिया गया था। मोहम्मद गज्नेवी ने इस मंदिर को कम से कम 5 बार लूट लिया, अतीत में इसमें सोने का टन और शुद्ध चांदी से बनने वाले कई घंट थे। 1905 में मंदिर एक शक्तिशाली भूकंप से नष्ट हो गया और बाद में सरकार ने इसे फिर से बनाया।
Vajreshwari Devi Shaktipeeth kangda

मंदिर का इतिहास

कांगड़ा का पुराना नाम नगर कोट था और कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के काल में हुआ था। बज्रेश्वरी देवी जी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति नाम के एक राजा थे, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ किया और भगवान शिव और सती को छोड़कर सभी संतों और देवताओं को आमंत्रित किया। जब सती को यज्ञ के बारे में पता चला तो उन्होंने भगवान शिव के मना करने के बाद भी वहां जाकर उपस्थित होने का फैसला किया। वहां पहुंचने के बाद, सती ने अपने पिता से पूछा कि उन्होंने उन्हें क्यों नहीं बुलाया और जवाब में, राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया। भगवान शिव का अपमान सुनकर देवी सती ने यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे दी। तब भगवान शिव देवी सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूम रहे थे और तांडव (विनाश का नृत्य) करने लगे। उसी समय भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था। जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया। इस स्थान पर सती की बाईं छाती गिरी थी जिसे देवी बज्रेश्वरी या कांगड़ा देवी के रूप में पूजा जाता है।
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पांडवों ने करवाया था मंदिर का निर्माण
माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। बताया जाता है कि पांडवों ने मां को सपने में बताया था कि वह कांगड़ा जिले में स्थित हैं। इसके बाद पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को विदेशियों द्वारा भी काफी लूटा भी गया है। 1009 ईं में गजनवी शासक महमूद ने इस मंदिर को लूटकर नष्ट कर दिया था। बताया जाता है कि मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को पांच बार लूटा था।

भविष्य की घटनाओं के बारे में बता देता है मंदिर
मंदिर की खासियत यह है कि मंदिर भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में भक्तों को पहले से ही आगह कर देता है। यहां आसपास में अगर कोई बड़ी समस्या आने वाली होती है तो भैरव बाबा की मूर्ति से आंसुओं का गिरना शुरू हो जाता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आपदा को टालने के लिए निवेदन करते हैं। भैरव बाबा के मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। बताया जाता है कि बाबा भैरव की मूर्ति पांच हजार साल पुरानी है। मंदिर के मुख्य द्वारा के आगे ध्यानु भगत की मूर्ति मौजूद है, जिन्होंने अकबर के समय में देवी को अपना सिर चढ़ाया था।
चमत्कारिक है मां ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर, हर इच्छा होती है पूरी
51 शक्तिपीठों में से एक हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर का प्रसिद्ध है। यहां माता भगवान शिव के रूप भैरव नाथ के साथ विराजमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था। मां का यह धाम नरगकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वर्णन दुर्गा स्तुति में किया गया है। मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है। इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा देखने लायक होती है। मंदिर में आकर भक्त की हर तकलीफ दर्शन मात्र से दूर हो जाती है। आइए जानते हैं ब्रजेश्वरी मंदिर के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
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मंदिर को कई बार लूटा गया
इसके बाद 1337 में मुहम्मद बीन तुगलक और पांचवी शताब्दी में सिकंदर लोदी ने भी इस मंदिर को लूटकर तबाह कर दिया था। एकबार अकबर यहां आए थे और मंदिर के पुन: निर्माण में सहयोग भी किया था। फिर साल 1905 में भूंकप से मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया, जिसे सरकार द्वारा वर्तमान मंदिर को 1920 में दोबारा बनवाया गया।
मंदिर में तीन हैं मां की पिंडी
ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं। यहां माता का प्रसाद तीन भागों में विभाजति करके चढ़ाया जाता है। पहला प्रसदा महासरस्वती, दूसरा महालक्ष्मी और तीसरा महाकाली को चढ़ाकर भक्तों में बांटा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भी तीन पिंडी हैं, पहली मां ब्रजेश्वरी, दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी एकादशी की है।
सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकदाशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता लेकिन इस शक्तिपीठ में मां एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए उनको प्रसाद के रूप में चावल ही चढ़ाया जाता है। कांगड़ा मां के दरबार में पांच बार आरती का विधान है। यहां बच्चों के मुंडन करवाने की भी व्यवस्था है। जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दरबार में पूजा-उपासना करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं।
तीन धर्मों के प्रतिक हैं तीन गुंबद
ब्रजेश्वरी मंदिर में हिंदुओं और सिखों के अलावा मुस्लिम भी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। मंदिर में मौजूद तीन गुंबद तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला गुंबद हिंदू धर्म का है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है, दूसरा सिख संप्रदाय का और तीसरा गुंबद मुस्लिम समाज का प्रतीक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महिषासुर को मारने के बाद मां दुर्गा को कुछ चोटे आई थीं। उन चोटों को दूर करने के लिए देवी मां ने अपने शरीर पर मक्खन लगाया था। जिस दिन मां ने यह मक्खन लगाया था, उस दिन देवी की पिंडी को मक्खन से ढका जाता है और सप्ताह भर उत्सव मनाया जाता है।

मंदिर के रीति-रिवाज और अनुष्ठान

मंदिर में प्रतिदिन पांच बार आरती की जाती है। देवी को पीले चंदन से सजाया जाता है और नए कपड़े और सोने के गहने पहनाए जाते हैं। सुबह मां की आरती चने, पूड़ी और फलों का भोग लगाकर की जाती है. अनोखी बात यह है कि दोपहर की आरती और देवी को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है।

देवी की पिंडी के रूप में पूजा की जाती है। बज्रेश्वरी मंदिर में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं और मंदिर के बाईं ओर भैरव नाथ की मूर्ति विराजमान है। भैरव नाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।

पहुँचने के लिए कैसे करें

बस: ब्रजेश्वरी मंदिर, कांगड़ा तक पहुंचने के लिए बस सबसे अच्छा माध्यम है। यह केवल 1.3 किमी की दूरी पर है।
ट्रेन: कांगड़ा रेलवे स्टेशन से ब्रजेश्वरी मंदिर की दूरी टांडा अस्पताल रोड से 17.9 किमी है।   
वायु मार्ग:  कांगड़ा हवाई अड्डा एनएच 154, गग्गल में है। यह ब्रजेश्वरी मंदिर से 10.1 किमी की दूरी पर है।

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