उत्तराखंड का लोक पर्व: घ्यूं त्यार और ओलगी संक्रांति - Folk Festival of Uttarakhand: Ghyun Tiyar and Olgi Sankranti

उत्तराखंड का लोक पर्व: घ्यूं त्यार और ओलगी संक्रांति

उत्तराखंड की भूमि, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, अपने पारंपरिक पर्वों और रीति-रिवाजों के लिए विख्यात है। यहां के पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े होते हैं, बल्कि प्रकृति, कृषि, और पशुपालन के साथ भी गहरे संबंध रखते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण और अनूठा पर्व है घ्यूं त्यार, जिसे कुमाऊं में भादों मास की संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है। इसे ओलगी संक्रांति या ओलकिया संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

उत्तराखंड का लोक पर्व: घ्यूं त्यार और ओलगी संक्रांति

घ्यूं त्यार का महत्व और परंपरा

घ्यूं त्यार के दिन घी खाने की परंपरा है, इसलिए इसे घी संक्रांति भी कहा जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से पहाड़ के कृषि और पशुपालन से जुड़े जीवन का प्रतीक है। भादों मास में जहां फसलों की अच्छी पैदावार होती है, वहीं इस समय गाय-भैंस जैसे दुधारू पशुओं से प्राप्त दूध, दही, मक्खन, और घी की प्रचुरता रहती है।

इस दिन घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें घी का प्रमुख स्थान होता है। बच्चों के सिर पर घी या मक्खन चुपड़ने की परंपरा भी है, जो उनकी सेहत के लिए लाभकारी मानी जाती है।

ओलगी संक्रांति और इसके पकवान

ओलगी संक्रांति के दिन उर्द या मसूर की दाल को भिगोकर, सिलबट्टे पर पीसकर उससे बड़े, पूरी, और लगड़ (पारंपरिक रोटी) बनाए जाते हैं। बेडुआ रोटी खासतौर पर इस दिन बनाई जाती है, जिसमें पिसी हुई उड़द की दाल को आटे की लोई में भरकर तवे पर सेका जाता है और फिर चूल्हे की आग में पकाकर घी में चुपड़कर खाया जाता है।

ओलग भेंट की परंपरा

ओलगी संक्रांति के दिन एक विशेष परंपरा है जिसे ओलग कहते हैं। इस परंपरा के तहत, इष्ट-मित्रों को घी, दही, पापड़, पिनालू के पत्ते, और मौसमी फल उपहार स्वरूप भेंट किए जाते हैं। यह उपहार आपसी मेलजोल और समृद्धि का प्रतीक है। इसके साथ ही, शिल्पकार लोग अपने बनाए हुए शिल्पकला के वस्त्र, छिलुके, पत्तल धागा, और घुइयां के पत्ते भी भेंट में देते हैं।

घ्यूं त्यार और टेक्टा का महत्व

कुमाऊं में जहां घ्यूं त्यार मनाया जाता है, वहीं टिहरी गढ़वाल की जलकुर घाटी में इसी दिन टेक्टा मनाया जाता है। टेक्टा भी एक ऋतु आधारित त्यौहार है, जिसमें दूध, घी, और अन्य द्रव्य पदार्थों का प्रयोग होता है। इस दिन घरों की साफ-सफाई की जाती है और विवाहित बेटियां अपने मायके आती हैं। टेक्टा का प्रमुख उद्देश्य पितरों को भोग लगाना होता है, जिसमें खासतौर पर खीर बनाई जाती है और पुरी या लगड़ तले जाते हैं।

संस्कृति का संरक्षण

बदलते समय के साथ, घ्यूं त्यार और ओलगी संक्रांति जैसे पारंपरिक पर्वों का महत्व कहीं खोता जा रहा है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखें और आने वाली पीढ़ियों को इनके महत्व से अवगत कराएं।


 टॉप 5 हार्दिक शुभकामना संदेश

उत्तराखंड का लोक पर्व: घ्यूं त्यार और ओलगी संक्रांति
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