भारतीय प्राचीन समय गणना तंत्र और अन्य वैज्ञानिक तत्व - Indian Ancient Time Calculation Mechanism and Other Scientific Elements

भारतीय संस्कृति का अनमोल समय गणना तंत्र और उसकी वैज्ञानिकता

परिचय:

भारतीय प्राचीन काल में समय और जीवन के हर पहलू की गणना के लिए एक अत्यंत विस्तृत और वैज्ञानिक तंत्र विकसित किया गया था। यह तंत्र न केवल समय को मापता है बल्कि जीवन, प्रकृति और सृष्टि के अन्य पहलुओं को भी समझता है। इस ब्लॉग में हम भारतीय समय गणना तंत्र के विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ जीवन के अन्य महत्वपूर्ण तत्वों पर भी ध्यान देंगे।

समय गणना तंत्र:

  • क्रति: सेकंड का 34000वां भाग
  • त्रुति: सेकंड का 300वां भाग (2 त्रुति = 1 लव)
  • लव: 1 लव = 1 क्षण
  • क्षण: 30 क्षण = 1 विपल
  • विपल: 60 विपल = 1 पल
  • पल: 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट)
  • घड़ी: 2.5 घड़ी = 1 होरा (घंटा)
  • होरा: 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार)
  • दिवस: 7 दिवस = 1 सप्ताह, 4 सप्ताह = 1 माह, 2 माह = 1 ऋतू, 6 ऋतू = 1 वर्ष
  • वर्ष: 100 वर्ष = 1 शताब्दी, 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी, 432 सहस्राब्दी = 1 युग
  • युग: 2 युग = 1 द्वापर युग, 3 युग = 1 त्रेतायुग, 4 युग = 1 सतयुग
  • महायुग: सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
  • महायुग का गणना: 76 महायुग = 1 मन्वंतर, 1000 महायुग = 1 कल्प
  • प्रलय: 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन का अंत और फिर आरंभ), 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प (देवों का अंत और जन्म)
  • महाकाल: 730 कल्प (ब्रह्मा का अंत और जन्म)

दो लिंग:

  • नर और नारी

दो पक्ष:

  • शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष

दो पूजा:

  • वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)

दो अयन:

  • उत्तरायन और दक्षिणायन

तीन देवता:

  • ब्रह्मा, विष्णु, शंकर

तीन देवियाँ:

  • महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी

तीन लोक:

  • पृथ्वी, आकाश, पाताल

तीन गुण:

  • सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण

तीन स्थिति:

  • ठोस, द्रव, वायु

तीन स्तर:

  • प्रारंभ, मध्य, अंत

तीन पड़ाव:

  • बचपन, जवानी, बुढ़ापा

तीन रचनाएँ:

  • देव, दानव, मानव

तीन अवस्था:

  • जागृत, मृत, बेहोशी

तीन काल:

  • भूत, भविष्य, वर्तमान

तीन नाड़ी:

  • इडा, पिंगला, सुषुम्ना

तीन संध्या:

  • प्रात:, मध्याह्न, सायं

तीन शक्ति:

  • इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति

चार धाम:

  • बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका

चार मुनि:

  • सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार

चार वर्ण:

  • ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र

चार निति:

  • साम, दाम, दंड, भेद

चार वेद:

  • सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद

चार स्त्री:

  • माता, पत्नी, बहन, पुत्री

चार युग:

  • सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग

चार समय:

  • सुबह, शाम, दिन, रात

चार अप्सरा:

  • उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा

चार गुरु:

  • माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु

चार प्राणी:

  • जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर

चार जीव:

  • अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज

चार वाणी:

  • ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्

चार आश्रम:

  • ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास

चार भोज्य:

  • खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य

चार पुरुषार्थ:

  • धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

चार वाद्य:

  • तत्, सुषिर, अवनद्व, घन

पाँच तत्व:

  • पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु

पाँच देवता:

  • गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सूर्य

पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ:

  • आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा

पाँच कर्म:

  • रस, रूप, गंध, स्पर्श, ध्वनि

पाँच उंगलियां:

  • अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा

पाँच पूजा उपचार:

  • गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य

पाँच अमृत:

  • दूध, दही, घी, शहद, शक्कर

पाँच प्रेत:

  • भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस

पाँच स्वाद:

  • मीठा, खट्टा, चर्खा, खारा, कड़वा

पाँच वायु:

  • प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान

पाँच इन्द्रियाँ:

  • आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन

पाँच वटवृक्ष:

  • सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (प्रयागराज), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)

पाँच पत्ते:

  • आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक

पाँच कन्या:

  • अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी

छह ऋतु:

  • शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर

छह ज्ञान के अंग:

  • शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष

छह कर्म:

  • देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान

छह दोष:

  • काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य

सात छंद:

  • गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती

सात स्वर:

  • सा, रे, ग, म, प, ध, नि

सात सुर:

  • षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद

सात चक्र:

  • सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार

सात वार:

  • रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि

सात मिट्टी:

  • गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब

सात महाद्वीप:

  • जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, राक्षद्वीप, पंडद्वीप, जम्बू

सात पाण्डव:

  • युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव

आठ भुवन:

  • भुवन, पृथ्वी, आकाश, अरण्य, वसुंधरा, द्यूलोक, पाताल, चौराहा

आठ करम:

  • रोटी, दल, सब्जी, दाल, खीर, अचार, सलाद, चटनी

आठ बंधन:

  • कुटुंब, वित्त, शील, धन, मान, अधिकार, आस्था, भक्ति

आठ यंत्र:

  • शक्ति यंत्र, महाकल यंत्र, अष्टकोण यंत्र, सर्वसिद्धि यंत्र, बगलामुखी यंत्र, लक्ष्मी यंत्र, गनेश यंत्र, त्रिपुरा सुंदरी यंत्र

आठ वाणियाँ:

  • वाक, उध्र्व, व्रज, ध्वनि, वेल, विस्फोट, थर, कान्फ्लिक्ट

आठ धर्म:

  • अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, इंद्रिय निग्रह, यम

आठ अष्टकृपा:

  • धन, धर्म, प्रेम, सौंदर्य, संजीवनी, वीज़ा, शांति, संस्कार

आठ लोक:

  • गंधर्व, देव, पितर, दैत्य, यक्ष, नाग, भूत, मनुष्य

आठ स्वरुप:

  • ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गौरी, लक्ष्मी, सरस्वती, रुद्र, माया

नौ ग्रह:

  • सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु

नौ वेद:

  • ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, आयुर्वेद, संगीत वेद, शिल्प वेद, नाट्य वेद, छान्दोग्य वेद

नौ रत्न:

  • माणिक्य, पन्ना, नीलम, हीरा, मोती, पुखराज, लहसुनिया, गोमेद, मूंगा

नौ माँ:

  • काली, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा, यमुन, वसुंधरा, महेश्वरी, राधा

दस महायोग:

  • ध्रुवा, शश, शक्ति, मृग, बुध, काल, शीत, वार, शुक्र, सूर्य

दस नायक:

  • लक्ष्मण, राम, हनुमान, भरत, शत्रुघ्न, पांडव, श्री कृष्ण, अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर

दस चिरकाल:

  • चिरकाल, दीर्घकाल, अल्पकाल, तत्काल, शीघ्रकाल, भविष्यकाल, अतीतकाल, वर्तमानकाल, सर्वकाल

दस ब्रह्मा:

  • ब्रह्मा (सार्वभौम), ब्रह्मा (अधिकृत), ब्रह्मा (अनादि), ब्रह्मा (कल्प), ब्रह्मा (भौतिक), ब्रह्मा (प्रारंभिक), ब्रह्मा (उत्तरण), ब्रह्मा (धर्म), ब्रह्मा (प्रारंभ), ब्रह्मा (उमापति)

नमस्कार:

भारतीय प्राचीन समय गणना तंत्र की यह अद्भुत जानकारी हमें न केवल समय की वास्तविकता को समझने में मदद करती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि भारतीय संस्कृति में समय और जीवन के प्रत्येक पहलू को कितना महत्व दिया गया है। इस वैज्ञानिक तंत्र की गहराई और समृद्धि को समझना, हमारे सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है और इसके माध्यम से हम अपनी विरासत को और बेहतर ढंग से जान सकते हैं।

निष्कर्ष:

भारतीय समय गणना तंत्र के विभिन्न पहलुओं को जानना और समझना हमें न केवल हमारे पूर्वजों के ज्ञान का आदर करने की प्रेरणा देता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे प्राचीन भारतीय समाज ने समय और जीवन के हर पहलू को व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से समझा। इससे हमें अपने सांस्कृतिक और वैज्ञानिक धरोहर को संजोने का महत्व समझ में आता है।


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1. भारतीय प्राचीन समय गणना तंत्र क्या है?

उत्तर: भारतीय प्राचीन समय गणना तंत्र एक वैज्ञानिक प्रणाली है जो समय को विभिन्न भागों में विभाजित करती है, जैसे कि क्रति, त्रुति, लव, क्षण, और आगे। यह तंत्र न केवल समय की गणना करता है बल्कि सृष्टि और जीवन के चक्र को भी समझाता है।

2. क्रति और त्रुति का क्या अर्थ है?

उत्तर: क्रति सेकंड का 34,000वां भाग है और त्रुति सेकंड का 300वां भाग है। 2 त्रुति मिलकर 1 लव बनता है, और एक लव को एक क्षण कहा जाता है।

3. भारतीय समय गणना तंत्र में युग की गणना कैसे की जाती है?

उत्तर: भारतीय समय गणना तंत्र में युग को चार भागों में विभाजित किया गया है: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग। एक महायुग इन चार युगों का योग है। 76 महायुग मिलकर एक मन्वंतर बनता है, और 1,000 महायुग मिलकर एक कल्प बनता है।

4. भारतीय समय गणना तंत्र में महाकाल क्या होता है?

उत्तर: महाकाल ब्रह्मा के जीवनकाल के अंत और पुनर्जन्म के समय को मापता है। इसे 730 कल्पों के बराबर माना जाता है।

5. भारतीय समय गणना तंत्र में प्रलय की अवधारणा क्या है?

उत्तर: भारतीय समय गणना तंत्र में दो प्रकार के प्रलय होते हैं: नित्य प्रलय, जो कि 1 महायुग के अंत में धरती पर जीवन के समाप्त होने और पुनः आरंभ को दर्शाता है, और नैमितिका प्रलय, जो 1 कल्प के अंत में देवताओं के समाप्त होने और जन्म को दर्शाता है।

6. भारतीय संस्कृति में समय और जीवन के विभिन्न पहलुओं का क्या महत्व है?

उत्तर: भारतीय संस्कृति में समय और जीवन के विभिन्न पहलुओं का गहरा महत्व है। यह तंत्र न केवल समय की गणना करता है बल्कि जीवन के हर चरण, जैसे कि चार आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, और संन्यास), चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष), और विभिन्न देवताओं, देवियों, और तत्वों के महत्व को भी समझाता है।

7. भारतीय समय गणना तंत्र की वैज्ञानिकता क्या है?

उत्तर: भारतीय समय गणना तंत्र की वैज्ञानिकता इसमें छिपी जटिलता और सूक्ष्मता में है। यह तंत्र समय को बहुत छोटे इकाइयों में मापता है और जीवन के चक्र को समझने में मदद करता है, जो प्राचीन भारतीय समाज की गहरी सोच और खगोलशास्त्रीय ज्ञान को दर्शाता है।

8. भारतीय समय गणना तंत्र में “महायुग” का महत्व क्या है?

उत्तर: महायुग एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जिसमें चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग) का योग होता है। यह सृष्टि के चक्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे समझना भारतीय समय गणना की गहराई को दर्शाता है।

9. भारतीय समय गणना तंत्र का उपयोग आज के समय में कैसे किया जा सकता है?

उत्तर: आज के समय में, भारतीय समय गणना तंत्र का उपयोग सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठानों, ज्योतिष, और पारंपरिक कैलेंडरों में किया जाता है। यह तंत्र हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और समझने में मदद करता है।

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