कविता गाँव की मिट्टी पहाड़ी जीवन पर आधारित - kavita gaon ki mitti pahaadi jeevan par aadhaarit

गाँव की मिट्टी

(लेखक: JaiDevBHumi Guest Post /उत्तराखंड)


नदी के पार पहाड़ का वो पुस्तैनी मकान,
जिसमें कमेट से पुती दीवारों का चाख मेरा।
गोबर-मिट्टी से लीपी, घिसी पाल का अपनापन,
लालमाटी-बिस्वार के संयोग से सजी हुई देहरी।
इन्हीं मिट्टीयों में लिपटा-चिपटा था मेरा बचपन,
उनका रंग, गन्ध और स्वाद कहीं मौजूद है मेरे भीतर।

वो चीड़ की दादर, फंटियां, वो देवदार के बाँसों के ऊपर,
भूरी-नीली पाथरों से ढका हुआ सपनों का सुंदर घर।
वही चाख, जहाँ दादी सुनाती थी किस्से-कहानियाँ,
तापते हुए अगेठी के कोयले, बड़े से छाजे के पास।
जहाँ याद होते थे पहाड़े, गिनती, चीखते-चिल्लाते हुए,
पढ़ी जाती थी शब्दों को संबोधित करती हुई वर्णमाला।

रात में आती-जाती रहती थी छिलुके की मशाल,
लैम्प की मध्यम रोशनी, खत्म करती थी अंधेरे का राज।
कैरोसीन की वो गंध समाई है दिलो-दिमाग पर कहीं,
इसी कारण सुलग उठता हूँ कभी मैं इस तरह,
मुखर होते अनसुलझे सवालों के लिए।

एशियन पेंट की रंग-बिरंगी दीवारों के साथ,
चमचमाता कजारिया टाइल्स का सपाट फर्श।
सिस्का की दूधिया रोशनी से जगमग आभिजात्य शहर,
परिपक्व होती है मुलुक की मिट्टी भी समय के सापेक्ष।
स्वाद, रंग और गंध बनने लगती है आवाज,
संदेश भेजती है अपने अंदाज में मुझे।

बाटुली के साथ संवेदित होते हैं ह्रदय के तार,
आँखों में भर आता है मेरा पहाड़, मेरा घर।
ये मुलुक की लाल-सफेद-भूरी मिट्टियाँ,
समाई होती हैं चेतना के मूर्त-अमूर्त विम्बों में।
अक्सर मुखातिब होती हैं मुझसे तन्हा लम्हों में,
पूछती हैं, "कब लोगे मेरी खबरपात-मुलाकात?"

देखना कभी, ये तुमसे भी मुखातिब होंगी,
दोहराएंगी उन्हीं प्रश्नों को फिर एक बार,
डाल में बैठी उदास सुवा की तरह।


भावार्थ:

यह कविता गाँव की मिट्टी से जुड़े भावनात्मक और जीवंत अनुभवों को प्रस्तुत करती है। कवि ने अपने बचपन की यादों को गाँव के घर, उसके वातावरण, और वहाँ की संस्कृति के माध्यम से साझा किया है। गाँव की मिट्टी की सुगंध, वहाँ के घरों की बनावट, और बचपन की सरलता का वर्णन हमें उन दिनों की याद दिलाता है जब जीवन की खुशियाँ इन छोटी-छोटी बातों में छिपी होती थीं।
कविता इस बात का प्रतीक है कि कैसे हमारे गाँव की मिट्टी, उसकी खुशबू, और उसके दृश्य हमारे मन में हमेशा के लिए बस जाते हैं और किसी भी आधुनिकता में उसे मिटा पाना असंभव होता है।

निष्कर्ष:

यह कविता केवल एक भावनात्मक स्मरण नहीं है, बल्कि एक संदेश है कि हमें अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए, चाहे हम दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न चले जाएं। गाँव की मिट्टी और उसकी यादें हमारे अस्तित्व का अटूट हिस्सा होती हैं।

टिप्पणियाँ

upcoming to download post