श्री गणेश चालीसा: विघ्नहर्ता गणपति की महिमा और दिव्य स्तोत्र - shree ganesh chalisa: vighnaharta ganapati ki mahima aur divya stotra

श्री गणेश चालीसा: विध्नहर्ता गणपति की महिमा

श्री गणेश चालीसा हिंदू धर्म में एक अत्यंत पूजनीय स्तोत्र है, जो भगवान गणेश के अद्वितीय गुणों और महिमा का वर्णन करता है। यह चालीसा भक्तों को जीवन में आने वाली हर बाधा को पार करने में सहायता करती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती है।

जय जय गणपति गणराजू

जय जय जय गणपति गणराजू ।
मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता ।
विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥

चालीसा के आरंभ में, भगवान गणेश का वंदन किया जाता है। वे मंगलकर्ता हैं और हर शुभ कार्य के आरंभ में उनकी पूजा की जाती है। उनका विशाल गजमुख और बुद्धिमान स्वरूप सुख और शांति का प्रतीक है।

वक्रतुण्ड महाकाय

वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना ।
तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला ।
स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

भगवान गणेश का वक्रतुण्ड, अर्थात उनकी टेढ़ी सूंड, और तिलक त्रिपुण्ड उन्हें और भी अलौकिक और दिव्य बनाता है। उनके मस्तक पर मुकुट और मणियों की माला उनके ऐश्वर्य का प्रतीक है।

ज्ञान और बुद्धि के स्वामी

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।
मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।
चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

गणेश जी के हाथों में पुस्तक, कुठार (कुल्हाड़ी) और त्रिशूल उनके ज्ञान, शक्ति और साहस का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके चरण पादुका, जो मुनियों के मन को प्रिय हैं, गणेश जी के ध्यान और ज्ञान की गहराई को दर्शाते हैं।

गणेश जी का जन्म

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी ।
अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी ।
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥

चालीसा में गणेश जी के जन्म की कथा का भी वर्णन है। जब गिरिराज हिमालय की पुत्री, माता पार्वती, पुत्र प्राप्ति के लिए कठिन तप करती हैं, तो भगवान गणेश का जन्म होता है। यह कथा अत्यंत पावन और मंगलकारी है।

शनि दोष और गणेश जी का पुनर्जन्म

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।
बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो ।
उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥

चालीसा में शनि देव की दृष्टि के कारण गणेश जी के सिर का अलग हो जाना और फिर भगवान विष्णु द्वारा गजमुख का सिर लाकर गणेश जी को नया जीवन देने की घटना का भी वर्णन किया गया है। इस घटना के बाद ही गणेश जी को गजानन कहा गया।

बुद्धि की परीक्षा

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।
पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई ।
रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥

भगवान शिव ने जब गणेश जी की बुद्धि की परीक्षा ली, तो उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग कर माता-पिता की परिक्रमा करके बुद्धि की श्रेष्ठता सिद्ध की। इससे शिव और अन्य देवता अत्यंत प्रसन्न हुए।

अंत में

अब प्रभु दया दीना पर कीजै ।
अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥

अंत में, चालीसा भगवान गणेश से दया और कृपा की याचना करती है, ताकि भक्तों को उनकी शक्ति और भक्ति प्राप्त हो।

श्री गणेश चालीसा का नियमित पाठ जीवन में सुख-शांति और सफलता लाता है। यह चालीसा भगवान गणेश की महिमा और उनके दिव्य कार्यों का सार है, जो हर भक्त के हृदय को श्रद्धा और विश्वास से भर देता है।

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