वापसी की राह
हमारे बुज़ुर्ग हमसे वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे थे,
थक हार कर वापस उनकी ही राह पर आना पड़ रहा है।
मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक,
और फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक।
अंगूठाछाप से दस्तखतों पर और फिर अंगूठाछाप पर आना,
जैसे पुरानी राह पर लौट कर हम पुनः पहचान पाते हैं।
फटे हुए सादा कपड़ों से साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़ों पर,
और फिर फैशन के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ लेना।
सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट और फिर वापस सूती पर आना,
हमारी सादगी की ओर लौटते हुए जैसे पुरानी यादें ताजा हों।
ज्यादा मेहनत वाली ज़िंदगी से घबरा कर पढ़ना लिखना,
और फिर IIM MBA करके आर्गेनिक खेती पर पसीने बहाना।
क़ुदरती से प्रोसेस्ड फूड पर और फिर बीमारियों से बचने के लिए,
दोबारा क़ुदरती खानों पर आना, जैसे जीवन की सच्चाई को अपनाना।
पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके ब्रांडेड पर,
और फिर आखिरकार जी भर जाने पर पुरानी चीज़ों की ओर लौटना।
बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में खेलने से रोकना,
और फिर घर में बंद करके फिसड्डी बनाना, फिर मिट्टी से खिलाना।
गांव, जंगल से डिस्को पब और चकाचौंध की दुनिया की ओर भागते हुए,
फिर मन की शांति और स्वास्थ्य के लिए शहर से जंगल गांव की ओर आना।
इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि तकनीक ने जो दिया,
वो प्रकृति ने पहले से ही दे रखा था।
जैसे इस धरा की सबसे पहली पूजा पद्धति सूर्य पूजा है,
जिसमें कोई मंत्र, कोई मूर्ति की पूजा नहीं, सिर्फ सूर्य की पूजा।
सूर्य, जो इस धरती को ही नहीं, इस ब्रह्माण्ड को ऊर्जा का साधन है,
आज लोग पुनः इस आदि पूजा के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
भारत में ही नहीं, विदेशों में भी यह पूजा हो रही है,
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी भी सूर्य पूजा करते हैं।
सूर्य ही सनातन है, सनातन ही धर्म है, यह धर्म हमारी परंपरा है,
यह लेख ज्ञानवर्धन है, कृपया इसे आगे भी भेजें, ज्ञान बढ़ाने से ज्ञान बढ़ता है।
अर्थ:
कविता में लेखक यह बताते हैं कि कैसे मानव सभ्यता ने प्राचीन परंपराओं से नई तकनीक की ओर कदम बढ़ाए, लेकिन फिर से उन पुरानी परंपराओं की ओर लौट आया है जिनकी वास्तविक मूल्य और लाभ समय के साथ प्रकट हुए हैं। वे मिट्टी के बर्तनों से लेकर ब्रांडेड वस्त्रों तक, और फिर से पुरानी वस्तुओं की ओर लौटने की प्रक्रिया को दर्शाते हैं। लेखक यह भी बताते हैं कि कैसे सूर्य पूजा जैसी प्राचीन पूजा विधियां आज भी प्रासंगिक हैं और विदेशों में भी मनाई जा रही हैं, जो यह संकेत देती हैं कि पुरानी परंपराएं और प्रकृति से जुड़ी विधियां आज भी महत्वपूर्ण हैं।
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