केदारनाथ: 1882 की तस्वीर और आज का सच - Kedarnath: A picture from 1882 and today's reality.

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केदारनाथ: 1882 की तस्वीर और आज का सच

परिचय: केदारनाथ, उत्तराखंड में स्थित एक पवित्र तीर्थस्थान, जो हिमालय की ऊँचाइयों पर बसा है, सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। इस पावन धाम का महत्व जितना धार्मिक है, उतना ही इसका पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व भी है। 1882 में भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग द्वारा खींची गई केदारनाथ की एक तस्वीर हमें उस समय की याद दिलाती है जब हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप बेहद सीमित था।

प्रकृति के प्रति पुरखों की समझ: हमारे पुरखों का मानना था कि हिमालय जैसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में मानव गतिविधियां अत्यंत संयमित होनी चाहिए। उनका यह विचार न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से भी था। बुग्यालों (उच्च हिमालयी चरागाहों) में जाने के अलिखित नियम थे—जैसे वहां जोर से नहीं बोलना और खांसते समय भी आवाज धीमी रखना। इन नियमों का उद्देश्य उस शांत, पवित्र वातावरण को बनाए रखना था, जिसमें न केवल श्रद्धालु बल्कि प्रकृति भी चैन से रहती थी।

केदारनाथ यात्रा: तब और अब उस समय यात्री गौरीकुंड से सुबह केदारनाथ की यात्रा शुरू करते थे, 14 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई के बाद दर्शन कर शाम तक वापस आ जाते थे। भव्य मंदिर का निर्माण करने वाले हमारे पूर्वज वहां और भी भवन बना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। संभवतः उनका विचार यही था कि जिस भूमि पर गंगा-यमुना जैसी सदानीरा नदियों के स्रोत हों, उसे यथासंभव सुरक्षित रखा जाए।

आधुनिक समय की चुनौतियां: आज केदारनाथ जैसे पवित्र स्थलों में स्थितियाँ बदल चुकी हैं। उन क्षेत्रों में, जहां एक समय जोर से बोलने तक की मनाही थी, अब डायनामाइट से सड़कों और सुरंगों का निर्माण हो रहा है। श्रद्धालुओं की संख्या में हर साल बढ़ोतरी हो रही है, और उन्हें धाम तक पहुंचाने के लिए दिनभर हेलीकॉप्टर चलते रहते हैं। इन गतिविधियों ने हिमालय की शांत प्रकृति में खलल पैदा कर दिया है।

प्रकृति का संदेश: अमरनाथ से केदारनाथ तक, हिमालय में बसे हर तीर्थस्थल पर पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है। नदियों के रास्तों में अवरोध डालकर बनाए गए मकान, जगह-जगह फैली प्लास्टिक की बोतलें और तीर्थ स्थलों पर लाउडस्पीकर पर बजते शोरगुल भरे गाने यह दर्शाते हैं कि पर्यावरण की उपेक्षा हो रही है। यदि हम एक समाज के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझेंगे, तो प्रकृति देर-सबेर अपना प्रकोप दिखाएगी, और हम उसकी क्रूरता का सामना करने को विवश होंगे।

निष्कर्ष: केदारनाथ और अन्य हिमालयी तीर्थस्थलों की पवित्रता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हम अपने व्यवहार में बदलाव लाएं। हमारे पुरखों की पर्यावरण के प्रति आदर और संयमित दृष्टिकोण से हमें सीख लेनी चाहिए और इस अनमोल धरोहर को बचाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस पवित्र और शुद्ध वातावरण का अनुभव कर सकें।

ॐ हिमालये तू केदारम् ॐ

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